सुभाष निगम
नई दिल्ली । पांच राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के लिये चुनावी बिगुल फूंका जा चुका है। किसान आंदोलन और आसमान छूते पेट्रोल/डीजल के भाव के बीच देश की सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी की प्रतिष्ठा भी दांव पर है। पार्टी की मानें तो असम,पश्चिम बंगाल,पुडुचेरी और केरल में भगवा झंडा फहराने के लिये जी-तोड़ मेहनत कर रही है। इसी कड़ी में केरल से बीजेपी ने मेट्रो मेन के नाम से मशहूर ई श्रीधरन को सीएम केंडिडेट घोषित किया है। जिससे सत्ताधारी वामदल और कांग्रेस तक हतप्रभ है। इस घोषणा के बाद ही केरल में एक बार फिर सियासी हलचल तेज हो गयी है ।
इस बाबत केंद्रीय मंत्री वी मुरलीधरन ने कहा है कि केरल में जनता परिवर्तन चाहती है। तो लिहाजा जनता के आकांक्षा के अनुरुप पार्टी ने श्रीधरन पर विश्वास जताया है।
हालांकि श्रीधरन के बीजेपी के तरफ से सीएम केंडिडेट के तौर पर घोषित होने के अटकलों को तब बल मिला जब खुद 88 वर्षीय मेट्रोमेन ने संकेत दिया कि वे राजनीति में उतरना चाहते है। उन्होंने खुलकर पीएम नरेंद्र मोदी की तारिफ की। उन्होंने यहां तक कहा कि यदि बीजेपी सीएम उम्मीदवार घोषित करेगी तो पार्टी को निराश नहीं करेंगे। केरल में बिल्कुल हाशिये पर खड़ी पार्टी के लिये यह बयान किसी संजीवनी से कम नहीं रहीं। बीजेपी ने लपक कर श्रीधरन के स्वागत में रेड कार्पेट तक बिछा दी। बीते सप्ताह ही मेट्रोमेन बीजेपी की सदस्यता ग्रहण की।
अब देखना दिलचस्प होगा कि लालकृष्ण आडवाणी के उम्र के समकक्ष श्रीधरन जब राजनीति की शुरुआत करेंगे तो बीजेपी के लिये केरल में सत्ता की राह कितनी आसान होगी? यहीं नहीं हमेशा से अपने काम में राजनीतिक हस्तक्षेप के प्रबल विरोधी श्रीधरन क्या राजनीति के नए फॉर्मेट में फिट बैठेंगे या नहीं-इस पर कुछ भी कहना जल्दबाजी होगा।
लेकिन इतना साफ है कि भले ही असम और बंगाल में बीजेपी सत्ता पाने की हसरतें पाले हुई हो लेकिन केरल में कमल खिलाना पार्टी के लिये आसान भी नहीं है। भले ही श्रीधरन पर सबसे बड़ा दांव ही पार्टी ने क्यों न खेला हो। इसके वाबजूद बीजेपी के लिये केरल में खोने के लिये कुछ भी नहीं है। यह तो दीवार पर साफ लिखी हुई दिख रही है। वहीं सत्ताधारी एलडीएफ और यूडीएफ के लिये जरुर मुश्किल फिर से बीजेपी ने खड़ी कर दी है। बीजेपी हमेशा से राजनीति में प्रशासनिक छवि के लोगों को प्रोत्साहित करती रही है। ऐसा ही प्रयोग दिल्ली में किरण बेदी को सीएम केंडिडेट घोषित करके भी किया था। लेकिन सख्त मिजाज की किरण बेदी बीजेपी के कद्दावर नेताओं से ही कदमताल नहीं कर पाई तो पार्टी की बुरी हार तक हो गई।