विजय शंकर
पटना| जनता दल यूनाइटेड के पूर्व विधान पार्षद व बीएन कॉलेज के भूविज्ञान विभाग के शिक्षक प्रो. रणबीर नंदन ने कहा कि देश में लोहे के भंडार अकूत मात्रा में हैं। एक अनुमान के अनुसार, भारत में लौह अयस्क के कुल वसूली योग्य भंडार लगभग हैमेटाईट के 9602 मिलियन टन और मैग्नेटाईट के 3408 मिलियन टन हैं। मध्य प्रदेश, कर्नाटक, झारखंड, उड़ीसा, गोवा, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, केरल, राजस्थान और तमिलनाडु लौह अयस्क के मुख्य भारतीय उत्पादक हैं। इसके बावजूद अगर लोहे की कीमत लगातार बढ़ी ही है तो इसके लिए जिम्मेदार सिर्फ केंद्र सरकार की नीति है। उन्होंने कहा कि अगर केंद्र सरकार सरिया के दामों को नियंत्रित करे तो आम लोगों के अपने घर का सपना साकार होगा। टाटा कंपनी का लोहा अप्रैल 50 रुपए प्रति किलो था आज 80रुपए का हो गया है। वहीं जिंदल का लोहा 48 रुपए था और आज 71 रुपए प्रति किलो हो गया है।
प्रो. नंदन ने कहा कि लौह अयस्क के ठेके में बदली व्यवस्था का असर दिख रहा है। दरअसल, खनिज दो तरह हैं, मेजर मिनरल्स व माइनर मिनरल्स। मेजर मिनरल्स के दायरे में लोहा, बॉक्साइट, सोना, चांदी आदि आते हैं। पहले मेजर मिनरल्स में माइनिंग का लीज 25 साल के लिए दिया जाता था। इसके लिए इच्छुक व्यक्ति माइनिंग वाले स्थान की जानकारी व नक्शा बनवाकर लाते थे। 2500 रुपए के फॉर्म के साथ माइनिंग ऑफिस में जमा करते थे। इसके बाद प्रक्रियाओं को पूरा करने व टेक्निकल रिपोर्ट के बाद जिलाधिकारी के स्तर से राज्य सरकार को प्रस्ताव भेजते थे। कैबिनेट के निर्णय के बाद उन्हें माइनिंग के लिए स्थान एलॉट कर दिया जाता था।
प्रो. नंदन ने कहा कि इससे बड़ी संख्या में स्थानीय लोग माइनिंग का ठेका लेते थे। माइनिंग में स्थानीय स्तर पर रोजगार का भी सृजन होता था। लेकिन, वर्ष 2015 में व्यवस्था बदल गई। मेजर मिनरल्स में केंद्र सरकार के स्तर पर निर्णय लिया गया था। केंद्र सरकार ने अपने स्तर पर ऑक्सन करने का निर्णय लिया। भारत सरकार ने राजस्व प्राप्ति में वृद्धि के लिए ऑक्सन रूल बना दिया। इसका असर यह हुआ कि छोटे-मोटे माइनिंग पट्टा लेने वाले प्लेयर इस प्रक्रिया से बाहर हो गए। ऑक्सन में बड़े प्लेयर आने लगे हैं और अब वे अपने हिसाब से दाम पर नियंत्रण कर रहे हैं।
प्रो. रणबीर नंदन ने कहा कि ऑक्सन प्रक्रिया में भाग लेने के लिए न्यूनतम दर ही 25 करोड़ रुपए रख दिया गया है। इससे बड़े औद्योगिक घरानों ही लौह अयस्क पट्टा लेने के लिए ऑक्सन प्रक्रिया में भाग ले पा रहे हैं। यह ऑक्सन रूल बड़े घरानों को खुश करने की कोशिश दिखती है। हाल ही में झारखंड में हुए ऑक्सन में ठेका जिंदल व हिंडाल्को जैसी कंपनी को आयरन ओर व कोयला का ठेका मिला है। अब वे अपने हिसाब से कीमतों को नियंत्रित कर रहे हैं। उन्हें अपना फायदा भी देखना है। दाम पर भारत सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है। ऐसे में बिहार जैसे राज्य में चल रहे कंस्ट्रक्शन के कार्यों पर व्यापक असर हुआ है और कई प्रोजेक्ट महंगाई के बोझ तले दब गए हैं। जरूरत है कि केंद्र सरकार इस मामले में एक स्पष्ट नीति बनाए और ऐसे सामान के रेट निर्धारित किए जाएं।