द्वारा शिवनाथ झा
(भाग-46 क्रमशः)
नई दिल्ली / दरभंगा : विगत दिनों दिल्ली स्थित केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग का एक निविदा देखा। यह निविदा आमंत्रित किया गया था भारत सरकार के गृह मंत्रालय के एक विभाग में एक नई स्प्लिट एसी लगाने के लिए। उसी विभाग द्वारा एक और निविदा आमंत्रित किया गया था जो एक भवन में आगंतुक – कक्ष और शौचालय के उन्नयन और नवीनीकरण से संबंधित था। लेकिन जब स्थान देखा जहाँ के लिए निविदाएं आमंत्रित की गयी थी तो चौंक गया। सभी स्थान 7, मानसिंह रोड या फिर 25, अकबर रोड स्थित भवनों के लिए था जो कुछ वर्ष पूर्व तह दरभंगा के महाराजा (दिवंगत) रामेश्वर सिंह और उनके पुत्र महाराजाधिराज (दिवंगत) कामेश्वर सिंह का था – दरभंगा हाउस। वैसे महाराजाधिराज की मृत्यु के बाद विगत 60 वर्षों में अगर कुछ भी “जीवित” है, तो वह “दरभंगा हॉउस” का नाम ही जीवित है, जो अब दरभंगा राज का नहीं है।
आप विश्वास नहीं करेंगे। जब दिल्ली के 7, मानसिंह रोड और 25 अकबर रोड को देखते हैं, कलकत्ता के 42 चौरंगी (दरभंगा हॉउस) को देखते हैं, मुंबई के दरभंगा मैंशन को देखते हैं, या फिर मुंबई के ही दरभंगा हॉउस आयकर कॉलोनी को देखते हैं, रांची स्थित सेन्ट्रल कोलफील्ड लिमिटेड के मुख्यालय को देखते हैं, पटना विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर विभाग को देखते हैं, शिमला के कैथू में दरभंगा हॉउस को देखते हैं, बनारस में दरभंगा पैलेस को देखते हैं, इलाहाबाद में दरभंगा हॉउस और दरभंगा कैसल को देखते हैं या दार्जिलिंग में दरभंगा हॉउस को देखते हैं – तो अन्तःमन से उन तमाम जीवित अथवा पार्थिव लोगों को, अधिकारियों को धन्यवाद देते हैं जो आजतक “दरभंगा” शब्द को जीवित रखे हैं। क्योंकि असली दरभंगा में जो तत्कालीन दरभंगा राज की, दरभंगा हॉउस की, लाल कोठी की या फिर महाराजाओं के गौरवों से जुड़ी चल और अचल सम्पत्तियों का हाल है, उसे देखकर मिथिला का प्रत्येक नागरिक, चाहे शुद्धता के साथ मैथिली बोलता हो या तुतलाकर, महाराजा का नाम सुना हो अथवा नहीं, महाराजाधिराज और उनके पिता का नाम पढ़-लिख सकता हो अथवा नहीं – “अश्रुपूरित” अवश्य हो जाता है। यह बात उन लोगों पर लागू नहीं होता जो महाराजाधिराज के अंतिम वसीयत और फिर फैमिली सेटेलमेंट के बाद उनकी चल-अचल सम्पत्तियों के लाभार्थी बने । वजह यह है कि अगर वे भी “अश्रुपूरित” होते तो शायद दरभंगा राज का विनाश नहीं हुआ होता।
विगत दिनों विरासत संरक्षण समिति की सलाह पर नई दिल्ली नगरपालिका परिषद के तत्कालीन चेयरपर्सन द्वारा तैयार विरासत भवनों, विरासत परिसर औरसूचीबद्ध प्राकृतिक विशेषता क्षेत्रों सहित, 8 जून, 2005 को समाचार पत्र में सार्वजनिक नोटिस के रूप में प्रकाशित किया गया था, जिसमें सभी से आपत्तियां और सुझाव आमंत्रित किए गए थे। सूचना के प्रकाशन की तारीख से तीस दिनों की अवधि के भीतर इस अधिसूचना से प्रभावित होने वाले सभी व्यक्तियों से आपत्तियां और सलाह माँगा गया था, ताकि जनता द्वारा प्राप्त आपत्तियों, सुझाव के मद्दे नजर विरासत संरक्षण समितिद्वारा उन विरासत भवनों, विरासत परिसरों पर विधिवत विचार किया जा सके।
दस्तावेजों के अनुसार, विरासत संरक्षण समिति (एचसीसी) द्वारा नई दिल्ली नगरपालिका परिषद (एनडीएमसी) को प्रेषित 147 विरासत भवनों और परिसरों की मूल सूची में से,दो भवनों / परिक्षेत्रों को एनडीएमसी द्वारा सूचीबद्ध करने के लिए उपयुक्त नहीं पाया गया था । साथ ही, और चार भवनों / परिक्षेत्रों का अध्ययन किया जा रहा था और उन पर एनडीएमसी द्वारा पुनर्विचार किया जाना था । आपत्तियों,सुझावों के बाद उप-नियमों द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए 23.1 और 23.5 दिल्ली भवन उप-नियम,1983 के उप-अनुभाग (17 ) के साथ पठित नई दिल्ली नगर परिषद अधिनियम 1994 की धारा 2,के अधीन सरकार 141 विरासत स्थलों की सूची प्रकाशित किया। उन्हीं विरासत भवनों और विरासत परिसरों में दरभंगा हॉउस और परिसर, 7, मानसिंह रोड, नई दिल्ली भी था। नई दिल्ली नगरपालिका परिषद के सूत्रों के अनुसार उक्त विरासत भवन या विरासत परिसर के लिए किसी भी प्रकार से “अधिपत्य” ज़माने के बात नहीं की गयी। सूत्र का यह भी कहना था कि इस बात पर किसी भी प्रकार की चर्चा भी नहीं की गई कि उक्त विरासत भवन या परिसर अपने स्थापना का 100 -वर्ष पूरा है अथवा नहीं। इस अवधि के पूरा नहीं होने पर सरकार उसे ले सकती है अथवा नहीं। यह भी नहीं जताया गया कि सन 1923 और उसके बाद उन भवनों, परिसरों के लिए नई दिल्ली नगरपालिका परिषद को ‘कर-स्वरुप’ अद्यतन भुगतान किया गया अथवा नहीं। किसी कोने से किसी भी प्रकार का अधिपत्य ज़माने की बात या बहस ना तो नई दिल्ली नगरपालिका परिषद से की गई, ना ही केंद्रीय सरकार से और ना ही दिल्ली के न्यायालय में किसी भी प्रकार का याचिका दायर किया गया दरभंगा राज की सम्पत्तियों के किसी भी लाभार्थियों के द्वारा।
जबकि, दिल्ली की तरह ही, दिल्ली की अधिसूचना जारी होने के कोई पांच साल बाद जब बिहार सरकार दरभंगा के रामबाग पैलेस को विरासत भवन की श्रेणी में अनुबंध करने के लिए कुछ इसी तरह की अधिसूचना जारी की थी, तो दरभंगा के लाल किले के अंदर के लोग प्रदेश सरकार के विरुद्ध पटना उच्च न्यायालय पहुँच गए थे । आखिर दो तरह की नीतियां क्यों? कहीं ऐसा तो नहीं कि दिल्ली स्थित विरासत भवन और विरासत परिसर पर दरभंगा के अंतिम राजा महाराजाधिराज सर कामेश्वर सिंह की तीसरी और अंतिम ‘जीवित पत्नी’ का अधिपत्य था और इसलिए उन्हें जीवन के अंतिम वसंत में अकेला छोड़ दिया गया ? आज महारानी कामसुन्दरी को 90 वर्ष में प्रवेश कर रहीं हैं। आखिर कुछ तो वजह होगा जिसके कारण दिल्ली के विरासत भवन / विरासत परिसर और दरभंगा के रामबाग स्थित विरासत भवन/विरासत परिसर हो “दो अलग-अलग नजरों से आँका गया” – जबकि सच्चाई यह है कि दोनों तत्कालीन दरभंगा राज का, दरभंगा के दो दिवंगत राजाओं का – महाराजा रामेश्वर सिंह और महाराजाधिराज सर कामेश्वर सिंह – गौरव गाथा और गरिमा का प्रतिक था।
नई दिल्ली नगरपालिका परिषद की तत्कालीन अधिसूचना (Delhi, the 1st October, 2009 : F. No. 4/2/2009/UD/l 6565) कहता है: “Whereas a list of 147 Heritage Sites including Heritage Buildings,Heritage Precincts and Listed Natural Feature Areas prepared by theChairperson, New Delhi Municipal Council, on the advice of the HeritageConservation Committee, was published in the newspaper on June 8, 2005 as a public notice inviting objections and suggestions from all persons likely to be affected thereby within a period of thirty days from the date of publication of the notice.”
अधिसूचना के अनुसार: “And whereas copies of the said notice were made available to the public on 8th June, 2005. And whereas all objections and suggestions received in respect to the above mentioned public notice have been duly considered by the Heritage Conservation Committee. And whereas out of the original list of 147 heritage buildings and precincts referred to the NDMC by the HCC, two buildings/precincts have not been found suitable for listing by the NDMC (Annexure-B) and four buildings/ precincts are being studied and reconsidered by the NDMC.
और अंत में: “Now, therefore, in exercise of the powers conferred by Bye-laws 23.1 and 23.5 of Delhi Building Bye-laws, 1983 read with sub-section (17) of Section 2 of the New Delhi Municipal Council Act 1994, the Government hereby publishes the following list of 141 Heritage Sites including Heritage Buildings, Heritage Precincts and Listed Natural Feature Areas for general information.” यह अधिसूचना राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के उपराज्यपाल के नाम पर जारी होता है जिस पर तत्कालीन संयुक्त सचिव आर सी मीणा का हस्ताक्षर है।
क्योंकि, कोई सात साल पहले, बिहार सरकार द्वारा बिहार के एन्सिएंट मोनुमेंट्स एंड आर्किओलॉजिकल साईट्स के अधीन दरभंगा के रामबाग पैलेस को एन्सिएंट मोन्यूमेंट की श्रेणी में रखने से पूर्व लोगों से उनका विचार, ऑब्जेक्शन मांगी थी। यह अधिसूचना बिहार सरकार के डिप्टी सेक्रेटरी, आर्ट, कल्चर और यूथ डिपार्टमेंट द्वारा दिनांक 17 अगस्त, 2010 को जारी एक अधिसूचना, जिसमें उपरोक्त अधिकारी ने ‘आर्ट ट्रेजर्स एक्ट, 1976 के अधीन लोगों से ‘ऑब्जेक्शन’ मांगे थे की दरभंगा स्थित महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह के दरभंगा राज फोर्ट को क्यों नहीं “बिहार एन्सिएंट मोनुमेंट्स एंड आर्किओलॉजिकल साईट्स रिमेंस” के अधीन ले लिया जाय। ऑब्जेक्शन मांगने के पीछे लोगों का विचार आमंत्रित करना था, ताकि विभाग और सरकार इस दिशा में समुचित कार्रवाई कर सके। यदि किसी को इस दिशा में आपत्ति होगी, स्वाभाविक है, उनके विचार को भी विभाग और सरकार बहुत ही प्राथमिकता से अध्ययन और जांच करेगी ताकि निर्णय लेने में सरकार के तरफ से कोई चूक या भूल नहीं हो जाय ।
जैसे ही लोगों से आपत्ति मांगने से संबंधित सूचना के प्रकाशन के साथ ही दरभंगा राज फोर्ट में रहने वाले लोगों में खलबली मच गई। कोर्ट-मुकदमा हो गया। कला, संस्कृति और युवा विभाग, बिहार सरकार के सचिव, विभाग के उप-सचिव, पुरातत्व विभाग के निदेशक, अधीक्षक (पटना अंचल), दरभंगा के जिला मजिस्ट्रेट, सब-डिविजनल अधिकारी और अंचल अधिकारी प्रतिवादी बन गए। महाराजाधिराज के भतीजे दिवंगत कुमार शुभेश्वर सिंह के दोनों पुत्र – राजेश्वर सिंह और कपिलेश्वर सिंह – पटना उच्च न्यायालय में याचिका दायर किये। न्यायालय से अनुरोध करते हैं कि बिहार सरकार के डिप्टी सेक्रेटरी, आर्ट, कल्चर और यूथ डिपार्टमेंट द्वारा दिनांक 17 अगस्त, 2010 को जारी एक अधिसूचना, जिसमें उपरोक्त अधिकारी ने ‘आर्ट ट्रेजर्स एक्ट, 1976 के अधीन लोगों से ‘ऑब्जेक्शन’ मांगे थे की दरभंगा स्थित महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह के दरभंगा राज फोर्ट को क्यों नहीं “बिहार एन्सिएंट मोनुमेंट्स एंड आर्किओलॉजिकल साईट्स रिमेंस” के अधीन ले लिया जाय, निरस्त कर दिया जाय।
वादी के तरफ से यह कहा जाता है कि उक्त विभाग द्वारा जारी इस सूचना और आमंत्रण का कोई महत्व नहीं है। यह भी कहा जाता है कि उक्त कानून के सेक्शन 2 (a) के आलोक में उक्त दरभंगा राज फोर्ट को ‘एन्सिएंट मोनुमेंट्स’ के रूप में नहीं माना जा सकता है। वादी पक्ष यह भी तर्क दिए कि नियमानुसार उसी स्थान / भवनों को उक्त नियमों के तहत ‘एन्सिएंट मोनुमेंट्स’ के रूप में नहीं माना जा सकता है जो न्यूनतम 100-वर्ष पूरे नहीं किये हों। और इस नियम के तहत, वादी के अनुसार, चूँकि दरभंगा राज फोर्ट 100 वर्ष की आयु के नहीं हैं, अतः नियमनुसार यह ‘एन्सिएंट मोनुमेंट्स’ के रूप में नहीं माना जा सकता। वादी का कहना था कि नियमानुसार उसी स्थान / भवनों को उक्त नियमों के तहत ‘एन्सिएंट मोनुमेंट्स’ के रूप में नहीं माना जा सकता है जो न्यूनतम 100-वर्ष पूरे नहीं किये हों। और नियमानुसार, दरभंगा राज फोर्ट 100 वर्ष की आयु के नहीं हैं, अतः नियमनुसार यह ‘एन्सिएंट मोनुमेंट्स’ के रूप में नहीं माना जा सकता। नियमों के अनुसार, कोई भी ऐसी चीज जो 100 साल या इससे अधिक पुरानी हो तो वह ‘पुरातात्विक’ है। इस ऐतिहासिक निर्णय का श्रेय भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के एंटीक्वटीज एंड आर्ट ट्रेजर्स एक्ट, 1972 को जाता है । यह कानून 1976 से लागू हुआ।
प्रतिवादी के तरफ से यह कहा गया कि विभाग और सरकार के तरफ से अभी महज “ओब्जेक्शन’ आमंत्रित किये गए हैं की दरभंगा राज फोर्ट को आर्ट ट्रेजर्स एक्ट, 1976 के अधीन क्यों नहीं “बिहार एन्सिएंट मोनुमेंट्स एंड आर्किओलॉजिकल साईट्स रिमेंस” के अधीन ले लिया जाय ? सन 1976 के इस कानून का मुख्य मकसद भारतीय सांस्कृतिक विरासत की बहुमूल्य वस्तुओं की लूट और उन्हें गैर-कानूनी माध्यमों से देश से बाहर भेजने पर रोक लगाना था। वैसे, इसके सिर्फ नकारात्मक और अनपेक्षित परिणामों का अतिरेक ही सामने आया। ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि यह कानून इतने कड़े और अभावग्रस्त नियमों से भरा हुआ है कि बेईमान ‘कला के सौदागर’ सरकारी अधिकारियों और कस्टम अधिकारियों के साथ मिलीभगत कर अपना रास्ता निकाल ही लेते है।
नियमों के अनुसार, कोई भी ऐसी चीज जो 100 साल या इससे अधिक पुरानी हो तो वह ‘पुरातात्विक’ है। इस ऐतिहासिक निर्णय का श्रेय भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के एंटीक्वटीज एंड आर्ट ट्रेजर्स एक्ट, 1972 को जाता है। यह कानून 1976 से लागू हुआ। इसका मकसद भारतीय सांस्कृतिक विरासत की बहुमूल्य वस्तुओं की लूट और उन्हें गैर-कानूनी माध्यमों से देश से बाहर भेजने पर रोक लगाना था। वैसे, इसके सिर्फ नकारात्मक और अनपेक्षित परिणामों का अतिरेक ही सामने आया। ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि यह कानून इतने कड़े और अभावग्रस्त नियमों से भरा हुआ है कि बेईमान ‘कला के सौदागर’ सरकारी अधिकारियों और कस्टम अधिकारियों के साथ मिलीभगत कर अपना रास्ता निकाल ही लेते है।अधिनियम के अनुच्छेद 2(1) (अ) के अनुसार कोई भी ऐसी चीज जो ‘ऐतिहासिक महत्व’ की हो या 100 साल या इससे अधिक पुरानी हो तो वह ‘पुरातात्विक’ है। और हर किसी को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पास ऐसी प्रत्येक वस्तु का पंजीकरण कराना और उसके चित्र खिंचवाना अनिवार्य होता है फिर भले ही चाहे वह कोई व्यक्ति हो, कोई संगठन हो या कोई संस्थान (उदाहरण के तौर पर कोई मंदिर) । कानून का अनुच्छेद 11 पुरावशेषों और कलाकृतियों के आयात, निर्यात और देश के भीतर भी एक जगह से दूसरी जगह लाने-ले जाने को नियंत्रित करता है और किसी भी व्यक्ति के ऐसा करने पर प्रतिबंध लगाता है। ऐसा करने का अधिकार सिर्फ केंद्र सरकार या उसकी किसी एजेंसी को होता है। यदि कोई व्यक्ति ऐसा करना चाहे तो उसे (यदि वस्तु को देश के भीतर ही एक जगह से दूसरी जगह ले जाता है) इसके लिए जिला मजिस्ट्रेट की अनुमति लेनी होगी. यदि उस वस्तु का आयात या निर्यात किया जाना है तो विदेश व्यापार के महानिदेशक एवं कस्टम विभाग से अनुमति लेनी होगी।
अदालत का मानना था कि नियम के सेक्शन 3 (1) के तहत राज्य सरकार को यह अधिकार है कि वह ऐसी स्थिति में किसी भी प्रकार की सूचना जारी करें। इन बातों का कोई महत्व नहीं है की किस नियम के किस सेक्शन, सब-सेक्शन के तहत क्या लिखा है। यह महज लोगों से आपत्ति लेने सम्बन्धी सूचना है। अदालत का कहना था कि अगर वादी पक्ष यह मानता है कि दरभंगा राज फोर्ट की आयु 100 वर्ष नहीं हुई है, और इसे किसी भी कानून के तहत एन्सिएंट मोनुमेंट्स’ की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है तो उन्हें स्वतंत्रता है कि वे इस सम्बन्ध में अपना सम्पूर्ण विचार, आपत्ति, सम्बद्ध विभाग के अधिकारी के पास प्रस्तुत करें। अदालत यह भी स्वीकार किया कि उस समय इस मामले में अदालत का हस्तक्षेप ठीक नहीं होगा। और, मई 4, 2015 को पटना उच्च न्यायालय राजेश्वर सिंह और कपिलेश्वर सिंह द्वारा दायर याचिका निरस्त कर देता है।
ज्ञातव्य हो कि भारत सरकार के पुरातत्व विभाग ने 1977-78 में इस किले की ऐतिहासिक महत्वता को स्वीकार करते हुए (किले की तुलना दिल्ली के लाल किले से की जाती है) एक सर्वेक्षण किया था। किले के अन्दर रामबाग पैलेस स्थित होने के कारण इसे ‘राम बाग़ का किला’ भी कहा जाता है । किले के निर्माण से काफी पूर्व यह इलाका इस्लामपुर नामक गाँव का एक हिस्सा था जो की मुर्शिमाबाद राज्य के नबाब, अलिबर्दी खान, के नियंत्रण में था । बाब अलिबर्दी खान ने दरभंगा के आखिरी महाराजा श्री कामेश्वर सिंह के पूर्वजों यह गाँव दे दिया था । सके उपरांत सन 1930 ई० में जब महाराजा कामेश्वर सिंह ने भारत के अन्य किलों की भांति यहाँ भी एक किला बनाने का निश्चय किया तो यहाँ की मुस्लिम बहुल जनसँख्या को जमीन के मुआवजे के साथ शिवधारा, अलीनगर, लहेरियासराय, चकदोहरा आदि जगहों पर बसाया । किले की दीवार काफी मोटी है। दीवार के उपरी भाग में वाच टावर और गार्ड हाउस बनाए गए थे। (क्रमशः)