लेखक : आर ०के० सिन्हा
पूर्व सांसद राज्यसभा
डॉ सच्चिदानन्द सिन्हा, भारत के प्रसिद्ध सांसद, शिक्षाविद, अधिवक्ता तथा पत्रकार थे। वे भारत की संविधान सभा के प्रथम अध्यक्ष थे। वे 1910 के चुनाव में चार महाराजाओं को परास्त कर केन्द्रीय विधान परिषद में प्रतिनिधि निर्वाचित हुए थे। वे प्रिवी कौंसिल के सदस्य भी थे। 10 नवंबर 1871 को मुरार गांव, (चौंगाईं- डुमराव) ज़िला आरा ( अब बकसर) के एक मध्यम वर्गीय सम्मानित कायस्थ परिवार में उनका जन्म हुआ और प्रारम्भिक शिक्षा गांव में ही हासिल कर मैट्रिक की परीक्षा उन्होंने ज़िला स्कूल आरा से अच्छे नम्बरों से पास किया। इसी बीच 26-29 दिसम्बर 1888 के दौरान इलाहाबाद में हुए कांग्रेस अधिवेशन में उनकी गहरी रुचि को देखते हुए उनके परिवार ने उन्हें 1889 में बैरिस्टर की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड भेज दिया। वे पहले बिहारी कायस्थ थे, जो पढ़ने के लिए विदेश गए। वहाँ उनकी जान पहचान मज़हरुल हक़ और अली इमाम से हुई, और वे उनकी संस्था अंजुमन-ए- इस्लामिया की बैठकों में भाग लेने लगे। जब वे बैरिस्टर बनकर भारत वापस लौट रहे थे तभी पानी के जहाज़ में उनकी बहस कुछ लोगों से हो गयी जब उन्होंने अपना परिचय “ बिहारी “ के रूप में दिया। उन्हें चिढ़ाने के लिये लोगों ने पूछा कि “ बिहार कहाँ है? नक़्शे पर दिखाओ?” जब उन्होंने भारत के नक़्शे पर आरा दिखाया तब लोगों ने मज़ाक़ किया , “ अरे , यह तो बंगाल राज्य के सबसे पिछड़े इलाक़ों में एक है। डॉक्टर सिन्हा ने उसी समय ठान लिया कि वे बिहार को बंगाल से अलग राज्य बनवाकर ही दम लेंगें। 1893 में भारत वापिस आ कर उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट में प्रैक्टिस शुरू कर दी। 1894 में उनकी मुलाक़ात जस्टिस ख़ुदाबख़्श ख़ान से हुई, और वे उनसे जुड़ गए, और जब जस्टिस साहब का तबादला हैदराबाद हो गया तो उनके द्वारा शुरू की गयी ख़ुदाबख्श लाईब्रेरी की ज़िम्मेदरी सिन्हा साहेब ने ले ली और 1894-1898 तक ख़ुदाबख़्श लाईब्रेरी के सेक्रेटरी रहे। भारत वापस आते ही उन्होंने अलग बिहार राज्य के लिये आंदोलन शुरू कर दिया और वकालत के अतिरिक्त पूरा समय उसीमें देने लगे।अपनी वकालत की ज़्यादा आमदनी भी बिहार आंदोलन पर ही खर्च करते। अंततः 1912 में उन्होने बिहार को बंगाल से अलग करवा कर ही दम लिया। इसीलिये उन्हें “बिहार निर्माता” के नाम से भी जाना जाता है। उन्होने बिहार आन्दोलन को गति प्रदान करने के लिये ही “द बिहार टाइम्स” के नाम से एक अंग्रेज़ी अख़बार भी निकाला जो 1906 के बाद “बिहारी” के नाम से जाना गया। 1908 में बिहार प्रोविंसयल कांफ़्रेंस का गठन हुआ और 1910 में हुए चुनाव में सच्चिदानन्द सिन्हा इंपीरियल विधान परिषद मे बंगाल कोटे से निर्वाचित हुए। फिर 1921 में वे केन्द्रीय विधान परिषद के मेम्बर के साथ इस परिषद के उपाध्यक्ष भी रहे। उनकी अनुशॅंसा पर ही सर अली इमाम को लौ मेम्बर बनाया गया, फिर काफ़ी जद्दोजहद के बाद जब हिंदुस्तान की राजधानी कलकत्ता से हटाकर दिल्ली कर दी गयी और 22 मार्च 1912 को बिहार को बंगाल से अलग कर दिया गया। फिर 1916 से 1920 तक डा. सिन्हा बिहार प्रादेश कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष रहे। 1918 में उन्होंने अंग्रेज़ी का अख़बार सर्चलाइट निकाला, तथा 1921 में 5 वर्षों के लिए अर्थ सचिव और कानून मंत्री बनाए गए। वे पहले हिंदुस्तानी थे जो इस पद तक पहुँचे। फिर वे पटना विश्वविध्यालय के प्रथम उपकुलपति बनाए गए। 1924 में उन्होंने अपनी स्वर्गीय पत्नी राधिका सिन्हा की याद में राधिका सिन्हा इॅंस्टीट्यूट और सिन्हा लाइब्रेरी की बुनियाद रखी, और 10 मार्च 1926 को एक ट्रस्ट की स्थापना कर लाइब्रेरी की संचालन का जिम्मा ट्रस्ट को सौंप दिया। 1929 को दिल्ली मे हुए ऑल इंडिया कायस्थ कांफ़्रेंस की उन्होंने अध्यक्षता की। उन्होंने एमिनेंट बिहार कौनटेम्पोररीस और सम एमिनेंट इंडीयन कौनटेम्पोररीस के नाम से दो किताबें भी लिखीं। 9 दिसम्बर 1946 को जब भारत के संविधान का निर्माण प्रारम्भ हुआ तो उन्हें उनकी क़ाबिलियत की वजह से ही सर्वसम्मति स् उसका अध्यक्ष मनोनीत किया गया। उन्होने ही डॅा. भीमराव अम्बेडकर को ड्राफ्टिंग कमेटी का सॅंयोजक चुना। जब संविधान की मूल प्रति तैयार हुई उस समय उनकी तबियत काफ़ी ख़राब हो गई थी , तो मूल प्रति को दिल्ली से विशेष विमान से पटना लाया गया और 14 फरवरी 1950 को उन्होंने उस मूल प्रति पर सॅंविधान सभा के अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद के सामने हस्ताक्षर किए। 6 मार्च 1950 को 79 साल की उम्र में उनका देहांत हो गया। औरंगाबाद का सच्चिदानंद सिन्हा कॉलेज उनके नाम पर है। सन् 1924 में उन्होंने पटना में जो अपना विशाल आवास बनवाया था, उसमें आज बिहार स्कूल शिक्षा बोर्ड का कार्यालय है। वहीं पास में सिन्हा लाइब्रेरी भी है। बिहार विधान सभा, बिहार विधान परिषद् और पटना एयरपोर्ट की जगह उन्होने ही दान स्वरूप दी थी।
आज उनकी जयंती पर उन्हें शतशः नमन। ???