बंगाल ब्यूरो
कोलकाता। पश्चिम बंगाल में चुनाव की अधिसूचना जारी होने में अभी दो महीने से अधिक का वक्त बचा है। इसके पहले राज्य चुनाव आयोग के सूत्रों ने बताया है कि पश्चिम बंगाल में सात चरणों में मतदान हो सकते हैं। केंद्रीय चुनाव आयोग ने इस संबंध में राज्य चुनाव आयोग को यही संकेत दिया है। इतने अधिक चरणों में चुनाव कराने का मकसद बस इतना है कि बंगाल में मतदान के दौरान हिंसा पर लगाम लगाई जा सके। अधिक चरणों में मतदान होने से एक दिन में कम से कम विधानसभा क्षेत्रों में वोट डाले जाएंगे और अधिक से अधिक संख्या में केंद्रीय बलों की तैनाती हो सकेगी। आयोग की योजना है कि इस बार ना केवल मतदान केंद्रों पर बल्कि विभिन्न क्षेत्रों में भी सुरक्षा व्यवस्था समेत कानून व्यवस्था बहाल रखने की जिम्मेवारी केंद्रीय बलों को दी जाएगी।
दरअसल पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा का इतिहास रहा है और मतदान के दौरान विभिन्न क्षेत्रों में सत्तारूढ़ पार्टी के कार्यकर्ताओं द्वारा बेलगाम हिंसा होती रही है। राज्य प्रशासन पर हिंसा करने वालों की ना केवल सुरक्षा बल्कि संरक्षण देने के भी आरोप लगते हैं। इसलिए भारतीय जनता पार्टी समेत राज्य के अन्य विपक्षी पार्टियों ने राज्य में शांति पूर्वक और पारदर्शी तरीके से मतदान कराने के लिए अधिक से अधिक संख्या में केंद्रीय बलों की तैनाती करने की मांग की है। उसी के मुताबिक इस बार राज्य में सभी मतदान केंद्रों पर केंद्रीय बलों की तैनाती के साथ साथ विभिन्न क्षेत्रों में भी केंद्रीय बलों को लगाने का निर्णय लिया गया है। सात चरणों में मतदान होने से इन केंद्रीय बलों को विभिन्न इलाकों में तैनात करने में मदद मिलेगी। खबर है कि पूरी मतदान प्रक्रिया में एक महीने से अधिक का वक्त लग सकता है। मई महीने में पश्चिम बंगाल के साथ-साथ चार राज्यों में विधानसभा का चुनाव होना है। भारतीय जनता पार्टी राज्य की सत्ता पर आरूढ़ होने का लक्ष्य लेकर चल रही है। उसके अलावा कोविड-19 की वजह से शारीरिक दूरी का पालन किया जाना भी चुनाव आयोग के लिए बड़ी चुनौती है।
पश्चिम बंगाल में फिलहाल 77000 बूथ हैं। खबर है कि इस बार संक्रमण रोकथाम और भीड़ कम करने के लिए केंद्रीय चुनाव आयोग ने 28000 अतिरिक्त बूथ बढ़ाने का निर्णय लिया है। यानी बूथों की संख्या बढ़कर एक लाख हो जाएगी। इसके पहले 2016 का विधानसभा चुनाव और 2019 का लोकसभा चुनाव भी सात चरणों में संपन्न हुआ है। हालांकि इसके बावजूद चुनाव में हिंसा नहीं टाली जा सकी थी।