जातीय गणना को रोकने की साजिश के तहत दायर याचिका को सुप्रीम कोर्ट दवारा खारिज करना सामाजिक न्याय की विरोधी भाजपा के लिए है तमाचा

नीतीश सरकार पूर्ण पारदर्शिता के साथ सामाजिक न्याय एवं विकास की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की रखती है ईमानदार मंशा

Vijay shankar

पटना।जनता दल यूनाइटेड के प्रदेश अध्यक्ष श्री उमेश सिंह कुशवाहा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा जाति आधारित गणना को रोकने के लिए दायर याचिका को खारिज किया जाना जातीय गणना को रोकने की साजिश करने वाली सामाजिक न्याय की विरोधी भाजपा के लिए एक करारा तमाचा है। उन्होंने आगे कहा कि कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि इस प्रकार के सर्वे के बगैर विभिन्न श्रेणियों में कितना आरक्षण देना है इसका निर्णय कैसे होगा। शैक्षणिक या राजनीतिक क्षेत्र में इसके बिना आरक्षण तय नहीं हो पाएगा। इस याचिका को खारिज कर सुप्रीम कोर्ट ने हमारे विजनरी नेता माननीय मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार के अथक प्रयासों से प्रारंभ जातीय गणना पर अपनी मुहर लगा दी है।
प्रदेश अध्यक्ष ने कहा की समेकित एवं नियोजित विकास के लिए अति आवश्यक है की भौतिक एवं मानव संसाधनों का आंकलन किया जाएस मानव संसाधनों के आकलन और जातीय गणना के बगैर सभी का समुचित विकास संभव ही नहीं है। यही कारण है की शुरू से ही हमारे आदरणीय नेता श्री नीतीश कुमार जी जाति आधारित जनगणना के पक्षधर रहे हैं। उन्होंने केंद्र सरकार से लगातार इसकी मांग की पर श्री नरेंद्र मोदी की भाजपा साकार ने हिंदू वोट बैंक के बंटने के डर से इस अति महत्वपूर्ण संवैधानिक जिम्मेदारी से ही अपना पल्ला झाड़ लियास इससे भाजपा का सामाजिक न्याय एवं समेकित विकास विरोधी चाल- चरित्र और चेहरा सबके सामने उजागर हो गया।
उमेश सिंह कुशवाहा ने कहा कि जनगणना कराना केंद्र सरकार की संवैधानिक जिम्मेदारी है, क्योंकि यह सातवीं अनुसूची में वर्णित केंद्र सूची में शामिल है। जहां तक जाति आधारित जनगणना का प्रश्न है तो संविधान भी इसका पक्षधर है। क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 340 में विभिन्न जातियों के सामाजिक एवं आर्थिक स्थितियों का पता लगाने वाला प्रावधान शामिल है। परन्तु भाजपा इन संवैधानिक जिम्मेदारी के बावजूद मात्र वोट बैंक के चक्कर में इस महत्वपूर्ण मुद्दे को नजरअंदाज करती रही। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी एवं नागराजन के केस में जाति आधारित डेटा की आवश्यकता पर बल दिया था। इसी प्रकार अल्पसंख्यकों के सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक स्थितियों का पता लगाने हेतु गठित सच्चर आयोग एवं ओबीसी के उप वर्गीकरण हेतु गठित रोहिणी आयोग ने भी आंकड़ों के अनुपलब्धता की बात कही थी। इन सबके बावजूद केंद्र सरकार मात्र राजनीतिक लाभ के लिए इस मुद्दे को नजरअंदाज करती रही एवं सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर जाति आधारित जनगणना नहीं कराने की अपनी मंशा स्पष्ट कर दी।
प्रदेश अध्यक्ष ने कहा की भाजपा हमारे सर्वमान्य नेता के इस महान प्रयास के विरुद्ध लगातार भ्रम फैलाती रही है। जबकि हमारे नेता का यह स्पष्ट मानना है की समतामूलक समाज की स्थापना के लिए जातीय गणना अत्यावश्यक है। जिससे कि सभी जाति, वर्ग एवं धर्म के लोगों के आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक स्थितियों की वास्तविक जानकारी प्राप्त हो सके तथा इससे सभी जातियों के वंचित एवं पिछड़े लोगों के उत्थान हेतु सरकार विशेष कल्याणकारी योजनाएं बना सके ताकि समतामूलक समाज की स्थापना हो एवं जातीय भेदभाव समाप्त हो सके। हालांकि हमारे नेता ने बिहार में जातीय भेदभाव को समाप्त करने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाये हैं। उदाहरण स्वरूप अंतरजातीय विवाह करने वाले लोगों को सरकार एक लाख रुपए दे रही है, जिससे कि जातियों के बीच विद्यमान भेदभाव कम हो सके।
उन्होंने कहा कि वर्तमान सर्वे में सामान्य प्रशासन विभाग ने 2 दर्जन से अधिक प्रश्नावली तैयार कर प्रत्येक तथ्यों के बारे में सविस्तार जानकारी प्राप्त कर रही है, इससे समाज के सभी वर्ग एवं जातियां चाहे वह सवर्ण जाति के हों या पिछड़ी- अतिपिछड़ी जाति के हों सभी को लाभ प्राप्त होगा। इससे एक और जहां मिथिलांचल में ब्राह्मणों की वास्तविक स्थितियों का पता चलेगा वहीं दूसरी ओर पिछड़े एवं अति पिछड़े वर्गों के आर्थिक सामाजिक एवं राजनीतिक स्थितियों की भी जानकारी प्राप्त होगी। इससे सरकार विकास के समायोजन की प्रक्रिया को और भी प्रभावी रूप से क्रियान्वित कर सकेगी। आने वाले समय में यह सर्वे बिहार के सभी जाति, धर्म एवं वर्गों के लिए कल्याणकारी साबित होगा एवं बिहार में सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक मौन क्रांति की स्थिति उत्पन्न होगी।
उमेश सिंह कुशवाहा ने कहा कि भाजपा को लोगों के हित एवं उनके कल्याण से कोई लेना-देना नहीं है। वह जातीय गणना को अगड़ी एवं पिछड़ी जाति की राजनीति के चश्मे से देखना और प्रचारित- प्रसारित करना चाहती है, जो काफी दुखद एवं दुर्भाग्यपूर्ण हैस भाजपा की इस मंसा से समाज को सचेत रहने एवं उन्हें सचेत रखने की आवश्यकता है। क्योंकि कुछ राज्यों ने पूर्व में जो सर्वे करवाया है वह आधा-अधूरा है, परंतु हमारे नेता माननीय मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार ने बार-बार स्पष्ट किया है कि बिहार में सर्वे के दौरान एक-एक चीज की जानकारी ली जाएगी ताकि सभी के संबंध में समुचित जानकारी प्राप्त हो सके। साथ ही उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा है कि इससे प्राप्त तमाम जानकारियों को सार्वजनिक किया जाएगा। क्योंकि सरकार पूर्ण पारदर्शिता के साथ सामाजिक न्याय एवं विकास की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की ईमानदार मंशा रखती हैं दूसरी ओर केंद्र सरकार जनगणना से प्राप्त आंकड़ों को सार्वजनिक ही नहीं करती।

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