साहित्य सम्मेलन में मनाया गया मेधा-पुरुष का स्मृति-पर्व
देशरत्न के जीवन चरित्र पर सम्मेलन द्वारा प्रकाशित अमरेन्द्र नारायण की पुस्तक ‘पावन चरित’ का लोकार्पण

विजय शंकर
पटना । अद्वितीय मेधा और साधु चरित्र के स्वामी थे देशरत्न डा राजेंद्र प्रसाद । स्वतंत्रता-संग्राम में महात्मा गांधी के साथ, उनका अवदान अत्यंत आदर के साथ स्मरण किया जाता है । वे ‘गांधी-दर्शन’ को अपने जीवन में उतारने वालों में प्रथम और उनके अत्यंत निकट के सहयोगियों में रहे । उनका जीवन स्फटिक के समान पारदर्शी, पावन और प्रेरणादायी रहा । उनकी जयंती को ‘राष्ट्रीय मेधा दिवस’ घोषित किया जाना चाहिए । उनके पावन जीवन चरित्र पर बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन ने सुख्यात साहित्यकार अमरेन्द्र नारायण की पुस्तक ‘पावन चरित, देशरत्न डा राजेंद्र प्रसाद’ का प्रकाशन कर एक अत्यंत मूल्यवान और प्रशंसनीय कार्य किया है । समृद्ध सामग्रियों और दुर्लभ चित्रों से परिपूर्ण यह संपूर्ण रंगीन पुस्तक विद्यार्थियों और सामान्य पाठकों के लिए तो लाभकारी है ही, विद्वानों के लिए भी उपयोगी है ।

बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन में आयोजित देशरत्न के स्मृति-दिवस पर समारोह तथा सम्मेलन द्वारा प्रकाशित, अमरेन्द्र नारायण की पुस्तक ‘पावन चरित’ के लोकार्पण के अवसर पर विद्वानों ने ये विचार व्यक्त किए ।
पुस्तक के लोकार्पण-कर्ता और बिहार विधान सभा के अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा ने इन पंक्तियों के साथ अपना व्याख्यान आरंभ किया कि “निज गौरव पर जिसको न हो अभिमान, वह नर रहीं वह है नर-पिशाच !” उन्होंने कहा कि बिहार के लोग इतिहास रचने वाले हैं । हमने उनको उचित सम्मान नहीं दिया । हमें एक नया इतिहास लिखना होगा । यह विदेह जनक और माता सीता की भूमि है । हमारा गौरवशाली इतिहास रहा है । बिहार विधान मंडल भवन के १०० वर्ष पूरे होने पर हम जो साहित्य प्रकाशित करने जा रहे हैं, उनमे बिहार के अपने पूर्वज साहित्यकारों और महापुरुषों की जीवनी देकर उनको उचित मान देने जा रहे हैं ।
आयोजन के मुख्यअतिथि पद्मश्री डा सी पी ठाकुर ने कहा कि, छात्र-जीवन में हम सभी उनके भाषण सुनने जाते थे । बड़ी अच्छी भाषा थी उनकी । सरल और शुद्ध । राजेंद्र बाबू भारतवर्ष की महान विभूति थे । उनकी जयंती को अवश्य ही ‘राष्ट्रीय मेधा-दिवस’ के रूप में मनायी जानी चाहिए।

डॉ राजेंद्र प्रसाद को देश ने वह प्रतिष्ठा नहीं दी जिस प्रतिष्ठा के वह हकदार थे : प्रो तारा सिन्हा
देशरत्न की पौत्री और विदुषी प्राध्यापिका प्रो तारा सिन्हा ने कहा कि सादगी और विचार की उच्चता राजेंद्र बाबू की विशिष्टता थी । भारत की स्वतंत्रता और देश के नव जागरण में उनका आदरणीय योगदान रहा । जीवन के हर पहलू में उनकी विशिष्ट छाप दिखाई देती है । वे एक विद्वान लेखक भी थे । उनकी स्मरण-शक्ति और शैक्षणिक उपलब्धियाँ चकित करती हैं । उन्होंने अपना सारा जीवन देश पर अर्पित कर दिया । पुस्तक के लेखक ने उनके इन्हीं गुणों को आधार बनाकर अत्यंत मूल्यवान सृजन किया है। डॉ. तारा सिन्हा ने कहा कि डॉ राजेंद्र प्रसाद को देश ने वह प्रतिष्ठा नहीं दी जिस प्रतिष्ठा के वह हकदार थे । डॉ राजेंद्र प्रसाद संविधान समिति के चेयरमैन थे मगर इनकी चर्चा देश में उतनी नहीं होती जबकि संविधान की ड्राफ्टिंग कमिटी के चेयरमैन भीमराव अंबेडकर की चर्चा सदैव होती है । उन्होंने कहा कि देश में जिसतरह लौह पुरुष को याद किया जाता है, जवाहरलाल नेहरू को याद किया जाता है उस तरह देशरत्न डॉ राजेंद्र प्रसाद को ठीक से याद नहीं किया जाता । उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार से उन्होंने कई दफा पत्र लिखकर डॉ राजेंद्र प्रसाद की जयंती को मेघा दिवस के रूप में मनाने की मांग रखी थी, मगर इस मांग को पूरा नहीं किया गया । यह न सिर्फ डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है बल्कि पूरे देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है । उन्होंने कहा कि राजेंद्र बाबू के साथ हमेशा साजिशें होती रही हैं, यह देश के लिए शर्म की बात है । उन्होंने मंच से केंद्र सरकार से मांग की कि देशरत्न डॉ राजेंद्र प्रसाद की जयंती को मेघा दिवस के रूप में पूरे देश में मनाया जाए तभी डॉ राजेंद्र प्रसाद को पूरा सम्मान मिल सकेगा ।

राजेंद्र बाबू का पावन चरित्र उन्हें बालपन से आकर्षित करता रहा: अमरेंद्र नारायण 

जबलपुर से गूगलमीट से जुड़े पावन चरित्र देशरत्न डॉ राजेंद्र प्रसाद पुस्तक के लेखक अमरेंद्र नारायण ने कहा कि, राजेंद्र बाबू का पावन चरित्र उन्हें बालपन से आकर्षित करता रहा है । उनपर एक ऐसे ग्रंथ के प्रणयन की इच्छा थी, जो छात्र-छात्राओं के लिए और प्रबुद्ध पाठकों के लिए भी समान रूप से उपयोगी हो । नई पीढ़ी देशरत्न के जीवन से अनुप्राणित होती रहेगी, ऐसा मेरा विश्वास है। यह पुस्तक देशरत्न डॉ राजेंद्र प्रसाद के जीवन चरित्र पर केंद्रित है ।

पुस्तक में तथ्यपूर्ण विशिष्ट सामग्रियों और दुर्लभ चित्रों से अलग पहचान बनेगी : डा अनिल सुलभ
सभा की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि मेधा-पुरुष और देश के गौरव देशरत्न बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के सभापति भी थे । अखंडित भारतवर्ष में हिन्दी भाषा के व्यापक प्रचार में उनका वैसा ही योगदान गिना जाना जाता है जो उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में दिया । उनके पावन दिव्य चरित्र पर, बहुत परिश्रम और शोधकर, मनीषी साहित्यसेवी अमरेन्द्र नारायण जी की इस पुस्तक का प्रकाशन कर हिन्दी साहित्य सम्मेलन को अत्यंत गौरव है । यह पुस्तक अपनी तथ्यपूर्ण विशिष्ट सामग्रियों और दुर्लभ चित्रों के कारण, देशरत्न पर लिखी गई अनेकों पुस्तकों में अपना अलग स्थान रखती है । देशरत्न के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि तभी हो सकती है, जब भारत की सरकार उनकी जयंती को ‘मेधा-दिवस’ घोषित करे।
सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी एम धर्माधिकारी, थाईलैंड समेत अनेक राष्ट्रों में भारत के राजदूत रहे अशोक सज्जनहार, डा राजेंद्र प्रसाद अकादमी के निदेशक प्रो अनिल मिश्र, वरिष्ठ कवयित्री पद्मश्री डा शांति जैन, सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा तथा ने भी अपने विचार व्यक्त किए ।
अतिथियों का स्वागत सम्मेलन के प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा कल्याणी कुसुम सिंह ने किया । मंच का संचालन सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने किया । इस अवसर पर राँची विश्व विद्यालय के हिन्दी विभाग के पूर्व अध्यक्ष डा जंग बहादुर पाण्डेय, डा किरण शरण, पद्मश्री विमल जैन, डा मेहता नगेंद्र सिंह, कृष्ण रंजन सिंह, डा शालिनी पाण्डेय, डा सागरिका राय, पूनम आनंद, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, सुनील कुमार दूबे, कुमार अनुपम, राज कुमार प्रेमी, बच्चा ठाकुर, डा मीना कुमारी, लता प्रासर, डा नागेश्वर प्रसाद यादव, नरेंद्र झा, माधुरी भट्ट, रमेश कँवल, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, रमाकान्त पाण्डेय, पं गणेश झा, प्रेमलता सिंह, लता प्रासर, कमल नयन श्रीवास्तव, प्रो सुशील झा, उर्मिला नारायण, इन्दु उपाध्याय, नीता सिन्हा समेत बड़ी संख्या में प्रबुद्ध जन उपस्थित थे।

देशरत्न डॉ राजेंद्र प्रसाद एकमात्र युगपुरुष थे, जिनको राष्ट्रपति पद देकर देश सम्मानित हुआ : कमल नयन 

चित्रगुप्त सामाजिक संस्थान के एक बयान में संस्थान के प्रधान सचिव कमलनयन श्रीवास्तव ने कहा कि देशरत्न डॉ राजेंद्र प्रसाद एकमात्र युगपुरुष थे जो राष्ट्रपति का पद पाकर महान नहीं हुए बल्कि राष्ट्रपति का पद देकर राष्ट्र गौरवान्वित हुआ । उन्होंने कहा, देश के सर्वोच्च पद पर होते हुए भी उन्होंने कभी अपने परिवार को लेकर कोई राजनीति नहीं की और न ही उसको राजनीति में स्थान दिलाया जैसा कि आज की राजनीति में सभी कर रहे हैं । उन्होंने कहा कि आज के नेताओं को डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद से प्रेरणा लेनी चाहिए क्योंकि उनका व्यक्तित्व साधारणता वाला था पर असाधारण था जिसे देश कभी भूल नहीं पाएगा ।

By admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *