विजय शंकर
पटना : जदयू प्रवक्ता अभिषेक झा ने कहा की पढ़ाई के लिए बिहार से विद्यार्थियों का बाहर पलायन करना बिहार के लिए एक बड़ी समस्या थी। इंजीनियरिंग या अन्य प्रोफेशनल कोर्स की पढ़ाई करने हेतु बिहार के बच्चे बिहार के बाहर जाया करते थे क्योंकि बिहार में इंजीनियरिंग काॅलेज का अभाव था। कोई भी व्यक्ति देश के किसी भी प्रदेश में जाकर नौकरी या पढ़ाई कर सकता है, यह उनका संवैधानिक अधिकार है लेकिन लगातार हो रहे पलायन से बिहार को राजस्व का भी नुकसान होता था।
श्री झा ने कहा कि जब बिहार के इतने विद्यार्थी इंजीनियरिंग, मेडिकल और अन्य कोर्स की पढ़ाई करने बाहर जाने लगे तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी ने यह निर्णय लिया की बिहार में ही बहुत सारे इंजीनियरिंग और मेडिकल काॅलेज खोले जाएंगे। श्री नीतीश कुमार चाहते तो निजीकरण को बढ़ावा दे सकते थे परंतु उन्होंने इस चुनौती को स्वीकार किया और आज स्थिति अलग है।
बिहार में 1960 से 2005 तक एक भी इंजीनियरिंग काॅलेज नहीं खुला, निजी क्षेत्र के तीन इंजीनियरिंग काॅलेज भी लालू राबड़ी राज में बंद हो गए। 2005 से 2020 तक बिहार में 39 इंजीनियरिंग काॅलेज खुले। 1954 से 2005 तक राज्य में सरकारी क्षेत्र में 3 इंजीनियरिंग काॅलेज थे और उनकी प्रवेश क्षमता 800 थी। आज के दिन में यह प्रवेश क्षमता बढ़कर 9,275 हो चुकी है।
बिहार के इंजीनियरिंग काॅलेज का फीस ₹10 प्रति माह और एनुअल डेवलपमेंट फीस 2,500 रुपए प्रति वर्ष है यानी कुल पढ़ाई का खर्च लगभग ₹14,800 मात्र है। इतने पैसे तो बाहर जाकर पढ़ने में सिर्फ ट्रेन के रिजर्वेशन में खर्च हो जाते हैं।
आज के दिन में किसी भी प्राइवेट इंजीनियरिंग काॅलेज में पढ़ने की फीस 4 साल में लगभग 15 से 16 लाख रुपए है लेकिन बिहार में सिर्फ ₹14,800 फीस में कोई विद्यार्थी इंजीनियर बन सकता है।
बिहार के बच्चों को बिहार में उच्च तकनीकी शिक्षा देना तथा स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड योजना के माध्यम से आर्थिक अड़चनों को दूर करना नीतीश कुमार जी की प्राथमिकता में रहा है और उनके इस कदम से बिहार के बच्चों को लाभ मिला है।