सुप्रीम कोर्ट ने पासपोर्ट जमा करने और हर पखवाड़े में स्थानीय थाना में उपस्थिति दर्ज कराने का दिया आदेश
कोर्ट ने मामले को 27 फरवरी को अंतिम सुनवाई के लिए किया सूचीबद्ध
नवराष्ट्र मीडिया नेशनल ब्यूरो
नई दिल्लीः जीवन के उत्तरार्ध में भी पूर्व लोकसभा सांसद आनंद मोहन की मुश्किल कम होने का नाम नहीं ले रही है। कहना गैरजरूरी है कि आईएएस अधिकारी जी कृष्णैया की हत्या के दोषी आनंद मोहन को सुप्रीम कोर्ट ने पासपोर्ट जमा करने और हर पखवाड़े स्थानीय थाना में अपनी उपस्थिति दर्ज करने को कहा है।
उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति सूर्यकांत व न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने केंद्र को मोहन को दी गई छूट पर अपना हलफनामा दाखिल करने का आखिरी मौका दिया, जो 1994 के तत्कालीन गोपालगंज जिला मजिस्ट्रेट जी कृष्णैया की हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहा था। पीठ ने आदेश दिया कि “प्रतिवादी (आनंद मोहन) को अपना पासपोर्ट तुरंत स्थानीय पुलिस स्टेशन में जमा करना चाहिए और हर पखवाड़े पुलिस स्टेशन में अपनी उपस्थिति दर्ज करनी चाहिए।”
हालांकि पीठ ने कहा कि वह मामले को 27 फरवरी को अंतिम सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर रही है और बहस पूरी करने के लिए दोनों पक्षों को अधिकतम 60 मिनट का समय देगी। आनंद मोहन के वकील ने पीठ से पासपोर्ट जमा करने और स्थानीय पुलिस स्टेशन में उपस्थिति दर्ज कराने के निर्देश पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया। लेकिन पीठ ने कहा कि उसने प्रतिवादी (मोहन) की अन्य मामलों में संलिप्तता को देखते हुए यह आदेश पारित किया है।
उल्लेखनीय है कि तेलंगाना के रहने वाले तत्कालीन गोपालगंज जिला मजिस्ट्रेट जी कृष्णैया को 1994 में भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला था। मुजफ्फरपुर में गैंगस्टर छोटन शुक्ला के अंतिम संस्कार के जुलूस जा रहा था और वह अपने वाहन ने उस जुलूस से आगे निकलने की कोशिश कर रहे थे। उस समय आनंद मोहन विधायक थे और वह उस जुलूस का नेतृत्व कर रहे थे। आईएएस जी कृष्णैया की गाड़ी आगे निकलने के लिए लगातार हॉर्न बजा रही थी। आनंद मोहन पर आरोप था कि उन्होंने भीड़ को जी कृष्णैया की हत्या के लिए उकसाया था और इसी का नतीजा था कि भीड़ ने जी कृष्णैया को गाड़ी से खींचकर पीटते हुए जान ले ली।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में आवेदन आईएएस जी कृष्णैया की पत्नी उमा कृष्णैया ने दाखिल किया है। कृष्णैया की 1994 के दौरान आनंद की ओर से नेतृत्व की जा रही भीड़ ने पीट-पीटकर जान ले ली थी। इस घटना के लिए आनंद मोहन को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। हालांकि 24 अप्रील 2023 को बिहार सरकार की ओर से छूट देते हुए सहरसा जेल से बाहर कर दिया गया था।
अपने आवेदन में उमा कृष्णैया ने कहा है कि बिहार सरकार की ओर से राज्य छूट नीति में संशोधन के बाद मोहन को रिहा कर दिया गया। हालांकि इससे पूर्व की नीति के मुताबिक लोक सेवक की हत्या के आरोपी को 20 साल के बाद ही छोड़ा जा सकता है। आवेदन में यह भी कहा गया है कि छूट नीति में बदलाव के कारण लोक सेवक के सम्मान को ठेस पहुंचा है।
कोर्ट में बहस के दौरान केंद्र सरकार के अधिवक्ता ने इस मामले में प्रति शपथ-पत्र दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय मांगा। लेकिन आवेदनकर्ता के वकील सिद्धार्थ लुथरा ने कहा कि केंद्र को पिछले 08 मई को ही नोटिस दिया जा चुका है और मामले को बार-बार टाला नहीं जाना चाहिए।