ललित नारायण मिथिला विवि दरभंगा

आरा संवाददाता
आरा। वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय आरा में नियुक्त और कार्यरत कुलपति प्रो.देवी प्रसाद तिवारी पर लगे आरोपो को राजभवन द्वारा गठित जांच समिति के सदस्यों द्वारा आरा पहुंच जिस तरह से जांच की प्रक्रिया शुरू करने की कोशिश की गई वह सफल तो नही हुआ उल्टे जांच समिति के सदस्य पर ही अब कई सवाल खड़े होने लगे हैं।जांच समिति के सदस्यों के जांच के दौरान राजभवन द्वारा निर्धारित की गई सूची से बाहर जाकर जिस तरह से लोगो को बुला बुला कर कुलपति प्रो.तिवारी के विरुद्ध बयान दर्ज कराए जाने की कोशिश शुरू हुई तभी इस बात को बल मिलने लगा था कि जांच समिति के सदस्य कहीं न कहीं कथित पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर जांच की प्रक्रिया को आगे बढ़ाना चाहते थे।जांच समिति के सदस्य राजभवन द्वारा भेजी गई सूची से बाहर जाकर लोगो से बातचीत कर रहे थे और उनसे संपर्क में थे।जांच समिति के सदस्य की मानसिकता का अहसास होते ही जांच कार्य मे सहयोग के लिए बैठे विवि के कुछ अधिकारियों ने आपत्ति जतानी शुरू कर दी और नतीजा हुआ कि बिना जांच कार्य को पूरा किये ही सदस्यों को वापस लौटना पड़ा था।इस बीच कुलपति प्रो.तिवारी ने भी सदस्यों को कह दिया कि आप की निष्पक्ष जांच पर संदेह है और राजभवन को इस संबंध में पत्र भेजकर अवगत करा दिया गया है कि कनीय होकर वरीय की जांच करना न्यायोचित नही है।
अब जांच समिति के सदस्य और ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. सुरेन्द्र प्रताप सिंह की कुलपति के पद पर नियुक्ति में कथित गड़बड़ी की बातें सामने आ रही है।वाराणसी के लंका निवासी डॉ. सोमेश शशि ने शपथ पत्र के साथ बिहार के राज्यपाल सह कुलाधिपति को पत्र भेजकर ललित नारायण मिथिला विवि के कुलपति प्रो.एसपी सिंह की कुलपति नियुक्ति के नोटिफिकेशन को रद्द करते हुए उनकी कुलपति के पद पर हुई नियुक्ति को निरस्त करने की मांग की है।
डॉ. सोमेश शशि ने राज्यपाल सह कुलाधिपति को भेजे शपथ पत्र के साथ के पत्र की कॉपी देश के राष्ट्रपति,प्रधानमंत्री,बिहार सरकार के शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव के साथ ही ललित नारायण मिथिला विवि के कुलपति डॉ. एसपी सिंह और वीर कुंवर सिंह विवि आरा के कुलपति प्रो.देवी प्रसाद तिवारी को भी भेजा है।
डॉ. सोमेश शशि ने शपथ पत्र के साथ राज्यपाल से लेकर राष्ट्रपति तक जो पत्र भेजा है वह अत्यंत ही गंभीर है और उसमे लगाए गए आरोप भी बहुत गंभीर है।
उन्होंने पत्र में इस बात का उल्लेख करते हुए जांच और कार्रवाई की मांग की है कि ललित नारायण मिथिला विवि दरभंगा में नियुक्त कुलपति डॉ. एसपी सिंह प्रोफेसर के पद पर नही है और न ही प्रोफेसर के पद पर रहते दस वर्षों का कार्यानुभव ही उनके पास है। कथित रूप से उन्होंने आरोप लगाया है कि लखनऊ विवि में कुलपति रहते शिक्षक नियुक्ति में गड़बड़ी को लेकर उनपर एफआईआई दर्ज है और इस एफआईआर में तीसरे नम्बर पर आरोपी के रूप में उनका नाम दर्ज है।
डॉ. शशि ने अपने आवेदन में स्पष्ट किया है कि कुलपति और प्रतिकुलपति की नियुक्ति में प्रोफेसर के पद पर रहते हुए इस पद पर दस वर्षों के कार्यानुभव का होना जरूरी है।इसी योग्यता को पूरा नही करने की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए पटना उच्च न्यायालय ने प्रो. अजहर हुसैन की वीर कुंवर सिंह विवि में हुई कुलपति के पद पर नियुक्ति को रद्द करते हुए उन्हें कुलपति के पद से बर्खास्त कर दिया था।प्रो.अजहर इस फैसले के बाद उच्चतम न्यायालय भी गए जहां उनकी याचिका को खारिज कर दिया गया।
उधर सूत्र बताते हैं कि लखनऊ विवि में कुलपति के पद पर नियुक्ति कराने के बाद डॉ. एसपी सिंह व अन्य की नियुक्ति को चुनौती देते हुए प्रो.नरसिंह ने वर्ष 2017 में एक याचिका दायर की थी।
उन्होंने यह याचिका कुलपति की नियुक्ति में प्रोफेसर के पद पर रहे बिना कुलपति के पद पर नियुक्ति कराने को लेकर इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ बेंच में दायर की थी।इस याचिका में डॉ. एसपी सिंह का नाम भी शामिल था।
सूत्र बताते हैं कि याचिका के पारा 23 से स्पष्ट है कि उस समय डॉ. एसपी सिंह प्रोफेसर नही रहे हैं।
उनके प्राचार्य के पद पर होने की बात दिखाई गई है।प्राचार्य का पद प्रशासनिक पद है जबकि प्रोफेसर का पद एकेडमिक पद है जो विद्वता और विद्वता के दस वर्षों के अनुभव के साथ कुलपति बनने की योग्यता को पूरा करता है।बिहार विवि अधिनियम 1976 की धारा 10 के तहत कुलपति बनने के लिए मापदंड निर्धारित किये गए हैं और इससे अलग हट कर कुलपति के पद पर की गई नियुक्ति संवैधानिक रूप से अवैध मानी जायेगी।इसी आधार पर बिहार में प्रो. अजहर हुसैन को कुलपति पद से पूर्व में उच्च न्यायालय ने बर्खास्त किया था।
सूत्र बताते हैं कि सिविल अपील संख्या 6831/2013 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के 19.8.2013 के आदेश की अवमानना करते हुए बिहार के इस विवि में कुलपति की नियुक्ति की गई है।बिहार में कुलपति व प्रतिकुलपति की नियुक्ति को लेकर पूर्व में उच्चतम न्यायालय ने दिशा निर्देश जारी किए हैं और उस दिशा निर्देश से अलग हटकर की गई नियुक्तियां कहीं से जायज नही मानी जा सकती भले ही इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ बेंच में दायर प्रो. नरसिंह की याचिका में यूपी सरकार की अपने यहां के नियमो का हवाला देकर डॉ. सिंह को कुलपति के पद पर नियुक्ति को प्रभावित नही कर उन्हें बहाल रखा गया हो किन्तु बिहार में ऐसी नियुक्तियों को उच्च न्यायालय ने पूर्व में रद्द कर दिया है।
सूत्र यह भी बताते हैं कि बिना प्रोफेसर के पद पर दस वर्षों के कार्यानुभव के ललित नारायण मिथिला विवि दरभंगा के कुलपति के पद पर नियुक्ति के साथ साथ अब डॉ. एसपी सिंह को कथित राजभवन ने पाटलिपुत्र, मौलाना मजहरुल हक और आर्यभट्ट नॉलेज विवि जैसे तीन तीन विश्वविद्यालयों के कुलपति का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है।
अब डॉ. सोमेश शशि के राजभवन से लेकर राष्ट्रपति तक को इस नियुक्ति को चुनौती देने वाले पत्र की जांच और कार्रवाई का सामने आना बाकी है किंतु एक बात चर्चा का विषय जरूर बन गया है कि वीर कुंवर सिंह विवि आरा के कुलपति प्रो.देवी प्रसाद तिवारी पर लगाये गए आरोपों की विश्वसनीयता अब खतरे में है क्योंकि आरोप लगाने से लेकर जांच कार्य मे शामिल लोग कथित रूप से खुद ही जांच के घेरे में आ गए हैं और ऐसे लोगो पर जो आरोप लगे हैं वह कुलपति की नियुक्ति में योग्यता को लेकर बिहार विवि अधिनियम में तय मापदंडों से अलग है।

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