गंगा का पानी हो रहा जहरीला , पानी में आर्सेनिक की मात्रा बढ़ी, कैंसर मरीजों में इजाफा
इंग्लैंड से महावीर कैंसर संस्थान में पानी में आर्सेनिक की मात्रा बढ़ने के कारणों पर रिसर्च करने पहुंची टीम
इंग्लैंड के मैनचेस्टर विश्वविद्यालय से 2 सदस्यीय विशेषज्ञों टीम पहुंची पटना महावीर कैंसर संस्थान
नव राष्ट्र मीडिया
फुलवारी शरीफ/पटना
रासायनिक पदार्थों के निरंतर बढ़ रहे उपयोग और गंदे नालों के पानी का सीधे गंगा नदी में गिरने के कारण गंगा नदी का पानी विषाक्त हो रहा है । इसका पानी पीने योग्य तो नहीं रहा। यह बात छानबीन में सामने आ गई है।
दरअसल पटना के महावीर कैंसर संस्थान में इंग्लैंड से एक टीम पहुंची है जो यहां गंगा के तटीय इलाकों में पानी में आरसेनिक की मात्रा पर रिसर्च कर रही है. इंग्लैंड के मैनचेस्टर विश्वविद्यालय के 2 सदस्यीय विषेशज्ञ डॉक्टर की टीम पटना के महावीर कैंसर संस्थान में यह काम कर रही है. टीम बिहार के कई जिलों में आर्सेनिक की मात्रा पर रिसर्च करेगी .जांच में अब तक डब्ल्यू एच ओ के मानक से भी अधिक संख्या में इन जिलों में आर्सेनिक मात्राएं पाई गई है. आर्सेनिक प्रभावित पानी पीकर इन जिलों के लोगों के शरीर में कई तरह के कैंसर जैसे रोग तेजी से पनप रहे हैं.
इंग्लैंड के मैनचेस्टर विश्वविद्यालय से बिहार में पानी पर रिसर्च करने पहुंची डॉक्टर रिचर्डसन ने बताया कि बिहार के कई जिलों के पानी आर्सेनिक प्रभावित हो चुके हैं, जिसे पीकर लोग कई तरह के कैंसर रोग से प्रभावित हो रहे हैं.
शोध के क्रम में 15 वर्ष से 70 वर्ष के लोगों के ब्लड का और टीसू का सैंपल एकत्रित किया गया और उस पर जांच की गई. जिसमें उसके परिणाम काफी भयावह देखने को मिल रहे हैं.
रिसर्च कर रही टीम में शामिल विशेषज्ञों का कहना है कि गंगा का पानी अब जहरीला हो गया जो पीने लायक नहीं रह गया। उनका कहना है कि गंगा के तटीय इलाकों के जितने भी जिले हैं बिहार में वहां के लोग भूगर्भीय जल में आर्सेनिक की बढ़ी हुई मात्रा को पेयजल के जरिए पीकर बीमार हो रहे हैं. इतना ही नहीं कैंसर जैसे गंभीर रोगियों की संख्या में तेजी से भी इजाफा हो रहा है.आर्सेनिक प्रभावित जिलों में बक्सर, भोजपुर और भागलपुर है, जहां के पानी में आर्सेनिक की मात्रा काफी संख्या में मौजूद है. जिन इलाकों में शोध की गई है उनमें पटना, सारण, वैशाली, समस्तीपुर, गोपालगंज, पश्चिम चंपारण, मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, मधुबनी, सुपौल, अररिया, किशनगंज, मधुपुरा, कटिहार, मुंगेर प्रमुख है. महावीर कैंसर संस्थान में आने वाले मरीजों में इन्ही जिलों से अधिक हैं.रिसर्च में सामने आया है की गंगा के तट में बसे लोगों में आर्सेनिक की मात्रा भी काफी ज्यादा पाई गई है.
महावीर कैंसर संस्थान के रिसर्च विभाग के प्रभारी डॉ अशोक कुमार घोष ने बताया कि बिहार के 27 जिलों में पानी पर महावीर कैंसर संस्थान के शोध विभाग ने शोध करने के बाद यह निष्कर्ष निकाला है कि इन इलाकों के पानी पीने योग्य नहीं है .उन्होंने स्पष्ट किया कि इन जगहों के पानी में आर्सेनिक की मात्रा काफी अधिक है, जो मानव जीवन के लिए घातक है. उन्होंने बताया कि महावीर कैंसर संस्थान में दिन-प्रतिदिन कैंसर मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है, जिसका मुख्य कारण पानी है. उन्होंने आर्सेनिक प्रभावित पानी को मीठा जहर बताते हुए कहा कि पानी में आर्सेनिक की मात्रा मिलने के बाद मानव जीवन पर स्किन डिजीज से यह बीमारी शुरू होता है और धीरे-धीरे कैंसर जैसे विकराल बीमारी में तब्दील हो जाता है. इस आर्सेनिक की मात्रा से गोल ब्लैडर, लीवर कैंसर, किडनी कैंसर, मुंह के कैंसर सहित कई तरह के कैंसर से मनुष्य का जीवन धीरे-धीरे खत्म हो जाता है.
रिसर्च विभाग के डॉक्टर अरुण ने बताया कि 4600 हैंडपंपों के पानी के सैंपल की जांच की गई. इसके अलावा 30% सोर्स से यह पता चला है कि इन इलाकों के पानी में आर्सेनिक की मात्रा कई गुना ज्यादा है.गोल ब्लैडर कैंसर मरीजों में सबसे ज्यादा संख्या महिलाओं में देखी गई है. जिनमें 16.9% महिलाएं और 8.3 प्रतिशत पुरुष गोल ब्लैडर कैंसर से प्रभावित होकर महावीर कैंसर में इलाज के लिए पहुंच रहे हैं.
हालांकि दूसरी और कई लोगों ने जांच के तौर तरीके पर भी सवाल उठाए हैं । उन्होंने कहा है कि हाल के वर्षों में चिकित्सक तथा खासकर डब्ल्यूएचओ एवं अन्य डॉक्टरी संस्थान अपनी विश्वसनीयता खो रहे हैं। कोरोना जैसे मामलों के बाद और उसकी चिकित्सा के दौरान की गई लापरवाही ,उनकी बताई गई बातों और शोधों पर आम लोगों का भरोसा नहीं रहा । लोग मान रहे हैं कि अपने व्यवसाय को बढ़ाने के लिए ये डॉक्टर और चिकित्सीय संस्थान जानबूझकर परिस्थिति को बढ़ा चढ़ाकर भयावह बनाकर दिखाते हैं, ताकि उनके धंधे और कारोबार में वृध्दि भी हो सके। महंगे इलाज के लिए लोग उनके पास आ सके। डॉक्टरी व्यवसाय ऐलोपैथिक चिकित्सा व्यवस्था शुद्ध व्यवसाय बन चुका है।