मुख्यमंत्री व व्यक्ति को मैटेरियल बताना मानसिक दिवालियापन को दर्शाता है
विजय शंकर
पटना/नयी दिल्ली । राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रोफेसर सुबोध मेहता ने आज कहा कि 15 साल से जो लोग मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बुरा और “वेस्ट” रद्दी मैटेरिअल कह रहे थे, आज वही लोग नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री का मैटेरियल बता रहे हैं । बात काफी दुर्भाग्यपूर्ण है और जनता के बीच वैसे लोगों की छवि धूमिल हो गई है । उन्होंने कहा कि एक व्यक्ति को किसी मैटेरियल से, वस्तु से जोड़ देना, यह बताता है कि वैसे लोग मानसिक तौर पर बीमार हैं और उन्हें सख्त इलाज की जरूरत है । नीतीश कुमार को एक वस्तु और मैटेरियल बताना ही यह बताता है कि बताने वाला व्यक्ति कितना मानसिक रूप से दिवालिया हो गया है । उन्होंने कहा कि योग्यता बताना और योग्यता के मानक पर तुलना करना दूसरी बात है,लेकिन मैटेरियल बता देना किसी व्यक्ति को समझ से परे हैं।
राजद के राष्ट्रीय प्रवक्ता ने कहा कि पिछले 16 -17 सालों का अगर रिकॉर्ड देखा जाए तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार किसी भी मुद्दे, मसले और पैमाने पर खरे नहीं उतरते । चाहे वह विकास की बात हो या स्वास्थ्य की या फिर शिक्षा की या फिर राजनीति की बात हो या फिर कोई और मुद्दा हो, हर बातों में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कहीं से भी मुख्यमंत्री के लायक खड़े नहीं उतरते । अगर प्राथमिक शिक्षा की बात करें तो सिर्फ प्राथमिक शिक्षा में फर्जी प्रवेश होता है और फर्जी प्रवेश के आधार पर स्कूलों में पैसे भेजे जाते हैं और यह आंकड़ा काफी बड़ा घोटाले का आंकड़ा है । इसी तरह अगर माध्यमिक शिक्षा की बात करें और अगर देखा जाए तो प्राथमिक स्कूलों से जो बच्चे सेकेंडरी स्कूलों में जाते हैं, उसमें 60% बच्चे ड्रॉप हो जाते हैं और यह आंकड़ा बिहार में अन्य प्रदेशों से काफी ज्यादा है जो चिंता की बात है । इसी तरह अगर उच्च शिक्षा की बात करें तो 262 कॉलेज हैं मगर किसी भी लेवल पर उन्हें ए प्लस का मानक नहीं मिला , यह एक चिंताजनक आंकड़ा है । उच्च शिक्षा के लिए यह दुर्भाग्यपूर्ण है । बिहार के आधे कॉलेज भी NAAC के मानकों पर खरा नहीं हो सके हैं जबकि दशक से ज्यादा बीत चुके है । अगर NAAC की प्रक्रिया को अगर फॉलो किया जाए तो बिहार के आधे से अधिक कॉलेज बंद हो जाएंगे क्योंकि उसके मानकों को बिहार के कॉलेज पूरा नहीं करते । सेकेंडरी एजुकेशन में भी शिक्षकों की कमी है और कर्मचारियों की भी कमी है । विक्रम के कॉलेज में मात्र 14 शिक्षक के भरोसे हजारों छात्र पढ़ रहे हैं । पटना के नामी कॉमर्स कॉलेज में 3200 छात्र पढ़ते हैं और मात्र पढ़ाने वाले एक शिक्षक हैं । ये आंकड़े शिक्षा क्षेत्र की बदहाली को दर्शाते हैं । इतना ही नहीं बल्कि उच्च शिक्षा भी बदहाल है । बिहार की हालत यह है कि बिहार के किसान अपनी जमीन बेचकर बच्चों को बाहर पढ़ने के लिए भेजते हैं, इससे बड़ा और दुर्भाग्य कुछ भी नहीं हो सकता । इंजीनियरिंग कालेज पर्याप्प्त है ना ही मेडिकल कालेज ही है।
अगर स्वास्थ्य व्यवस्था को ही देखें तो नीतीश सरकार में यह भी बदहाल है । पीएससी और अस्पतालों दोनों की दुर्दशा ऐसी है कि 70% अस्पताल कर्मी, नर्सों की कमी है, वही 50 फ़ीसदी से अधिक डॉक्टर की सीटें खाली पड़ी है । ऐसी परिस्थिति में बिहार में इलाज कैसा हो रहा होगा, इसका स्वत: आकलन किया जा सकता है । बिहार में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र करीब 800 चाहिए मगर अभी मात्र 200 के करीब है । इसी तरह हॉस्पिटल जो 625 चाहिए, अभी मात्र 70 के करीब है । बिहार में मेडिकल कॉलेजेस की कमी है और अभी देखा जाए तो 70 फीसदी मेडिकल कॉलेज अभी खोला जाना चाहिए जिसकी कमी है । मतलब साफ है कि बिहार में न पढ़ाई की नीति है, ना शिक्षा की नीति है और ना ही दवाई और स्वास्थ्य सेवाओं की नीति है, जिसके कारण बिहार के लोग बदहाली का जीवन जी रहे हैं और शिक्षा के लिए लोगों को पलायन करना पड़ता है । अगर आंकड़ों को देखा जाए तो 93 फ़ीसदी आबादी निजी अस्पतालों पर निर्भर करती है क्योंकि सरकारी अस्पतालों में कोई व्यवस्था नहीं है और बदहाली का आलम है । बिहार में कोरोना वायरस के प्रकोप के बीच लोग आक्सीजन के लिए मरते रहे और सरकार तमाशबीन होकर देखती रह गयी । कोरोना काल में सारे रोजगार बंद हो गये जो लोग स्वरोजगार के जरिए अपना जीवन यापन चलाते थे, उन लोगों का भी हालत बिल्कुल खराब है और उनको भी रोटी के लिए परेशानियों से गुजरना पड़ रहा है ।
राजद के राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रो. सुबोध कुमार ने कहा कि नीतीश सरकार ने कृषि के क्षेत्र में जो रोड मैप बनाया है, वह रोड मैप भी किसानों-जनता की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर रहा और किसानों को उससे बहुत लाभ नहीं मिल रहा है । बिहार में बच्चों को पोषण के लिए नहीं दूध मिलता है ना अंडे मिलते हैं, नतीजा यहां के बच्चे कुपोषण के शिकार हो जाते हैं । कुपोषण से बच्चों को बचाने के लिए सरकार अभियान तो चलाती है मगर उसकी सफलता पर हमेशा सवालिया निशान लगा रहता है । महिला सशक्तिकरण की बात करते हैं, लेकिन महिलाएं भी पीड़ित और दबी कुचली जीवन जी रही है और कुपोषण का शिकार भी हो रही है । 2001 में महिलाओं पर जो अत्याचार और बलात्कार के मामले हुए थे उसकी संख्या 700 करीब थी मगर आज अगर देखा जाए तो उसकी संख्या 1500 के करीब पहुंच गई है, जो दुर्भाग्यपूर्ण के साथ-साथ चिंताजनक हैं । अगर देखा जाए तो नीतीश सरकार ने एक लाख की आबादी पर मात्र 4 किलोमीटर की सड़क का निर्माण किया है जो बताता है कि नीतीश सरकार सड़क के निर्माण में अन्य राज्यों से किस तरह पीछे है । बिहार में बिजली की व्यवस्था जो 1952 में बनी थी, उस व्यवस्था को भी नीतीश सरकार ने प्राइवेट को बेच दिया, कोई इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने का काम नीतीश सरकार ने नहीं किया और ना ही बिजली उत्पादन की दिशा में नीतीश सरकार ने कोई बड़ा काम किया है । सबसे कम बिजली खपत देश में सिर्फ बिहार में होती है और सबसे महंगी बिजली बिहार की जनता को मिलती है , ये आंकडे नीतीश सरकार की पोल खोलने के लिए काफी है । नीतीश सरकार की जितनी भी योजनाएं हैं, चाहे वह जल जीवन हरियाली की हो या फिर हर घर नल का जल की योजना हो, सब योजनाओं का बुरा हाल है । अगर इन सभी योजनाओं को लेकर अगर जांच की जाए तो निश्चित तौर पर नीतीश सरकार को कटघरे में खड़ा होना होगा । सात निश्चय योजना हो चाहे इस स्टूडेंट के बैंक खाते व क्रेडिट कार्ड का मामला हो, सारी योजनाएं नीतीश सरकार की फेल है जिसमें सरकार की उपलब्धि नहीं बल्कि उसकी नकारात्मक छवि सामने आई है । गांव को जो मदद सरकार की ओर से मिलनी चाहिए वह मदद नहीं मिलती बल्कि चारों और भ्रष्टाचार का आलम फैला हुआ है । चाहे सृजन घोटाला हो, चाहे बालिका गृह कांड हो या ऐसे अनेक मामले हैं जिससे बिहार को लगे कलंक को मिटाया नहीं जा सकता । मगर इन सभी मामलों के आरोपी मौज में है ।
ह्यूमन डेवलपमेंट की तरफ देखा जाए तो यहां भी बिहार सबसे निचले पायदान पर है । नीतीश सरकार में ऐसा कुछ नहीं है जिससे इनको पीएम पद के लिए योग्य समझा जाए, लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि बिहार के कुछ नेता मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पीएम मैटेरियल बता रहे हैं । ऐसे लोगों से नीतीश कुमार को परहेज करना चाहिए क्योंकि जो लोग पहले नीतीश कुमार को वेस्ट (रद्दी) मैटेरियल कहते थकते नहीं रहे थे, वही आज नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री मैटेरियल कह रहे हैं, जिसमें नीतीश कुमार को खुद ही आकलन करना चाहिए और वैसे लोगों से उनको बचना चाहिए ।