बीआईए में विश्व पर्यावरण के थीम – ‘‘भूमि पुर्नःस्थापन, मरूस्थलीकरण और सूखे से निपटने की क्षमता’’ विषय पर परिचर्चा आयोजित
vijay shankar
पटना : विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर आज 5 जून को बिहार इण्डस्ट्रीज एसोसिएशन द्वारा अपने प्रांगण में इस वर्ष के विश्व पर्यावरण के थीम – ‘‘भूमि पुर्नःस्थापन, मरूस्थलीकरण और सूखे से निपटने की क्षमता’’ विषय पर एक परिचर्चा कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें मुख्य अतिथि और वक्ता के रूप में राज्य सरकार के राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के अपर मुख्य सचिव दीपक कुमार सिंह उपस्थित थे। कार्यक्रम में बिहार राज्य उच्च शिक्षा परिषद के एकाडेमिक सलाहकार प्रो0 एन. के. अग्रवाल तथा राष्ट्रीय डॉलफिन शोध संस्थान के निदेशक डा0 गोपाल शर्मा भी उपस्थित थे।
कार्यक्रम में अपने विचारों को साझा करते हुए सभी वक्ताओं ने विश्व पर्यावरण में हो रही लगातार गिरावट पर चिन्ता व्यक्त करते हुए इसे संरक्षित किए जाने की आवश्यकता पर बल दिया। इस अवसर पर उपस्थित मुख्य अतिथि एवं वक्ता दीपक कुमार सिंह ने अपने विचारों को रखते हुए कहा कि पर्यावरण नुकसान के लिए हम स्वयं दोषी हैं। हम अपने को प्रकृति से लगातार कटते जा रहे हैं। प्रकृति के साथ रहना अब हमारे जीवन शैली में नहीं रह गया है। हम प्रत्येक चीजों के लिए हमारी भूख असिमित होती जा रही है। हमने इस विषय पर चिन्तन ही छोड़ दिया है कि हमें जितनी आवश्यकता है उतना ही इस्तेमाल करें, उतना ही अपने पास रखें।
उन्होंने पर्यावरण प्रदूषण तथा मिट्टी के क्षरण के लिए तीन तत्वों को मुख्य रूप से जिम्मेदार माना – सरकार की नीति, कैपलिस्ट मानसिकता वाली अर्थ-व्यवस्था और हमारा जीवन शैली। उन्होंने आगे कहा कि हम नई टैक्नोलोजी लाने के पहले उसके दिर्घकाल में होने वाले नुकसान का चिन्तन न कर केवल निकट में होने वाले लाभ की ओर ध्यान देते हैं। उन्होंने उदाहरण दिया कि जब प्लास्टिक का अविष्कार हुआ तो हमें बहुत अच्छा लगा कि इससे बड़ी कोई वस्तु हो ही नहीं सकती, लेकिन आज उसके नुकसान से हम सभी अवगत हैं। इसी तरह हमने अपनी पारम्परिक खेती की शैली जिसमें हम प्रकृतिक खाद का इस्तेमाल किया करते थे उसको खत्म कर के रासायनिक खाद का इस्तेमाल बिना दिर्घकालिन परिणाम का चिन्तन किए शुरू कर दिया। अब रासायनिक खाद के इस्तेमाल का दुषपरिणाम सामने आ रहा है। शहरीकरण के होड़ में हमने शहर बसाने के चक्कर में जितने पारम्परिक आहर, पईन, चौर, पोखर सबों को पाट कर सड़कें बना दिया, बड़ी बड़ी इमारतें खड़ी कर दी, परिणाम हमारे सामने है – प्रत्येक वर्ष भूमि का जल स्तर लगातार नीचे जा रहा है।
गर्मी से बचने के लिए हमने एयरकंडिशन का इस्तेमाल शुरू कर दिया। लेकिन इससे गर्मी में और वृद्धि होती जा रही है। सुन्दरता के होड़ में हम बड़ी बड़ी ऐसी इमारतें बनाते जा रहे हैं जिसमें ढेर सारे शीशा का इस्तेमाल होता जा रहा है। इन शीशा युक्त इमारत से ज्यादा गर्मी और ग्रीन हाउस इफेक्ट बढ़ता जा रहा है।
भूमि क्षरण को रोकने की जरुरत , मगर किसान शिक्षित नहीं, जानते नहीं कि खेत में कितनी -कौन खाद और कितना पानी की आवश्यकता: डा0 गोपाल शर्मा
राष्ट्रीय डॉलफिन शोध संस्थान के अन्तरिम निदेशक डा0 गोपाल शर्मा ने अपनी बातों को रखते हुए कहा कि पिछले 51 वर्षों से पूरे विश्व में विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जा रहा है जिसका उद्देश्य और लक्ष्य यह निर्धारित किया गया था कि हम अपने पर्यावरण को संरक्षित करें इसको खराब होने से बचाये, लेकिन सच्चाई यह है कि प्रति वर्ष पर्यावरण प्रदूषण बढ़ रहा है गर्मी बढ़ती जा रही है। भूमि क्षरण के कारणों पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि हमारे किसान शिक्षित नहीं है, खेत में किस फसल में कितनी मात्रा में किस खाद की आवश्यकता है, कितना पानी की आवश्यकता है। उन्होंने सुझाव के रूप में यह रखा कि प्रखंड कृषि पदाधिकारी को यह जिम्मेदारी देना चाहिए कि वे किसानों को इसके लिए जागरूक करे।
इस अवसर पर उपस्थित डा0 एन के अग्रवाल ने कहा कि मिट्टी क्षरण को रोकने के लिए तीन स्तर पर प्रयास किए जाने की आवश्यकता है – व्यक्तिगत स्तर पर, सामुहिक स्तर पर और सरकारी स्तर पर कानून बना कर कानून का अनुपालन किया जाय तथा प्रचार प्रसार किया जाना जरूरी है।
इसके पूर्व एसोसिएशन के अध्यक्ष केपीएस केशरी ने अपने स्वागत भाषण में कहा कि बढ़ती जनसंख्या तथा उनके जरूरतों को पूरा करने की दौड़ में भूमि क्षरण दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। प्रकृति उर्वरता की कमी जरूरतों को पूरा करने के लिए हमने कृतिम उर्वरक और कीट नाशकों पर अपनी निर्भरता बढ़ाते जा रहे हैं। जिसके कारण लाभदायक सूक्ष्म जीवों की मात्रा घटती जा रही है और मिट्टी का पीएच बदलता जा रहा है। उन्होंने इस अवसर पर यूएनईपी के एक रिपोर्ट को साझा करते हुए बताया कि दुनिया भर में हर 5 सकेंड में एक फुटबॉल पिच के बराबर मिट्टी का क्षरण होता है, जबकि 3 सेंटिमीटर ऊपरी मिट्टी बनने में लगभग 1 हजार साल लगता है।
भारत 3.28 मिलियन वर्ग किमी के साथ दुनिया का 7वाँ सबसे बड़ा देश है। इसमें पहाड़, रेगिस्तान, नदी आदि को हटा दें तो देश में दुनिया की केवल 2.4 प्रतिशत भूमि है, लेकिन इसमें दुनिया की अबादी का लगभग 5वाँ हिस्सा निवास करता है। इसलिए भारत में भूमि का संरक्षण वैश्विक और राष्ट्रीय दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण है।
इस अवसर पर इकोलोजी सस्टेनबीलीटि एण्ड इंडस्ट्री कमिटि के चेयरमैन केपी भावसिंहका ने भी विषयवस्तु पर अपनी बातों को साझा किया। कार्यक्रम का संचालन मनीष कुमार तिवारी ने किया। कार्यक्रम में पूर्व अध्यक्ष रामलाल खेतान, कोषाध्यक्ष मनीष कुमार सहित बड़ी संख्या में सदस्यगण उपस्थित थे।