बंगाल ब्यूरो 

कोलकाता। पश्चिम बंगाल में हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में मुख्य विपक्षी पार्टी बन चुकी भाजपा कोलकाता नगर निगम चुनाव में महज तीन सीटों पर सिमट कर रह गई है। वार्ड नंबर 22 से पार्टी की उम्मीदवार मीना देवी पुरोहित इस बार भी भाजपा के टिकट पर जीत गई हैं। यह छठी बार है जब उन्होंने पार्षद के तौर पर कोलकाता में जीत दर्ज की है। ममता बनर्जी की सुनामी में भी अगर भारतीय जनता पार्टी की जीत का परचम लहराने में वह सफल रही हैं तो इसकी वजह इलाके में उनकी व्यक्तिगत हैसियत है।
मीना देवी पुरोहित पिछले 30 सालों से जीतती रही हैं। पहले माकपा में थी और कोलकाता नगर निगम की उप मेयर रह चुकी हैं। और अब पिछले 10 सालों से भाजपा के टिकट पर जीतती रही हैं। इसकी वजह है कि जिस 22 नंबर वार्ड से वह चुनाव लड़ती है वह बड़ा बाजार का इलाका है जहां सबसे अधिक मारवाड़ी, गुजराती और बिहार – उत्तर प्रदेश के हिंदी भाषी कारोबारी तथा साधारण लोग रहते हैं। यह इलाका हमेशा से ही भारतीय जनता पार्टी का मजबूत गढ़ रहा है और इनके बीच मीना देवी पुरोहित घर परिवार के सदस्य की तरह हमेशा से बर्ताव करती रही हैं। इसलिए आज तक वह पार्षद का चुनाव कभी नहीं हारी। कुल मिलाकर कहें तो इस इलाके में उनकी व्यक्तिगत हैसियत किसी भी पार्टी से बड़ी है।
“हिन्दुस्थान समाचार” से विशेष बातचीत में मीना देवी पुरोहित कहती हैं कि छठी बार पार्षद के तौर पर जीत कर वह खुश हैं। यह जनता और भाजपा के कार्यकर्ताओं की जीत है।
पुरोहित ने कहा, “जो लोग जनता के लिए काम करते हैं वे आखिरकार जीतते हैं। अगर मतदान प्रक्रिया हिंसा मुक्त और निष्पक्ष रहती तो भारतीय जनता पार्टी को और अधिक सीटें मिलतीं।”

इसी तरह से 23 नंबर वार्ड से भाजपा के टिकट पर विजय ओझा जीते हैं जो इसी बड़ा बाजार इलाके के अंतर्गत आता है। ओझा भी मीना देवी पुरोहित की तरह लोगों के बीच अपनों की तरह रहते हैं। बड़ा बाजार के हिंदी भाषी समुदाय में विजय ओझा एक विश्वास चेहरा हैं जो हर किसी के सुख-दुख और संकट में खड़े रहते हैं।
इसके अलावा 50 नंबर वार्ड से सजल घोष की जीत हुई है जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबंध हैं और उनके पिता भी पार्षद रह चुके हैं। अपने इलाके की दुर्गा पूजा समिति से भी सजल का जुड़ाव रहा है और आपदा से लेकर महामारी के संकट तक घोष का परिवार लोगों के लिए सड़क पर था। इसका परिणाम जीत के तौर पर मिला है। कुल मिलाकर कहें तो भारतीय जनता पार्टी के जो तीनों पार्षद जीते हैं वे जमीन से जुड़े नेता हैं और पार्टी के मुकाबले अपने-अपने इलाके में अपनी व्यक्तिगत हैसियत से जीतने में सक्षम रहे हैं।

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