बिहार में भाजपा को जीताने की कोशिश कर रहे हैं सेक्यूलर नेता
वोटों का बंटवारा होने से कई सीटों पर भाजपा को मिल रही है बढ़त

नव राष्ट्र मीडिया

पटना।
अभी चुनाव का मौसम है और धर्मनिरपेक्षता के मूल मुद्दे पर दो गठबंधन बने हुए हैं । एक तरफ भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए गठबंधन और दूसरी ओर इंडिया गठबंधन । इंडिया गठबंधन खुद को धर्मनिरपेक्ष गठबंधन मानता है । लेकिन उसी के गठबंधन में शामिल प्रमुख दल अपनी हरकतों से सीधे तौर पर भाजपा को फायदा पहुंचा रहे हैं। यानी सेक्यूलरिज्म की ख़ूब चर्चा हो रही है. लेकिन कैसा सेक्यूलरिज़्म और इसकी कितनी परवाह की जा रही है।
राजनीतिक प्रेक्षकों की माने तो बिहार में सभी कुर्सी और सत्ता के लिए लड़ रहे हैं, सेक्यूलरिज़म की हिफ़ाज़त के लिए कोई नहीं लड़ रहा.सिर्फ ओवैसी बदनाम हैं कि वह भाजपा के एजेंट हैं, जबकि देखा जा रहा है कि भाजपा की एजेंटी कई और नेता भी कर रहे हैं.
बात पूर्णिया से करते हैं. यहां फिलहाल राजद और पप्पू यादव की सीधी लड़ाई है और फायदा इंडिया के उम्मीदवार को होगा। राजद ने पप्पू यादव के लिए वह सीट छोड़ क्यों नहीं दी.पप्पू यादव क्या भाजपा में थे? कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ना चाहते थे.मज़बूत स्थिति में हैं.
लेकिन राजद ने वहां अपना उम्मीदवार उतार दिया. अब कांग्रेस भी उनको सपोर्ट नहीं कर रही है, फिर भी वहां के यादव और मुसलमान का वोट उनको मिलेगा, राजद की बीमा भारती और पप्पू यादव के बीच वोट बंटेगा। सेक्यूलर वोट बंटेगा तो उसका लाभ किसको मिलेगा? क्या अंदर खाने में भाजपा से तेजस्वी की कोई मिलीभगत है। वे भाजपा से नहीं लड़ कर पप्पू यादव से क्यों लड़ रहे हैं? पप्पू यादव की जीत महागठबंधन की नहीं होती? पप्पू यादव भी अपना पैर पीछे क्यों नहीं खींच लेते। कहां गया सेक्यूलरिज़म? क्या पप्पू यादव और तेजस्वी यादव मिल कर भाजपा को जीताना तो नहीं चाहते। कुछ तो गडबड है।

हर दिन कांग्रेस समेत अन्य सेक्यूलर पार्टी के नेता भाजपा में जा रहे हैं.किस मुंह से ये लोग सेक्यूलरिज्म की बात करते हैं.विचारधारा से इन्हें लैस किया जाता तो कथित धर्मनिरपेक्ष दलों के सेनापति भागते क्यों?
बिहार कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अनिल शर्मा, औरंगाबाद लोकसभा चुनाव के राजद प्रत्याशी उपेन्द्र प्रसाद,कांग्रेस प्रवक्ता गौरव वल्लभ भाजपा में शामिल हो गये.याद होगा गौरव वल्लभ ने जब भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा से पूछा था कि ट्रिलियन में कितने जीरों होता है तब यह कांग्रेस और मुसलमान की नज़र में बढ़िया सेक्यूलर थे.आज दोनों की नज़र में कम्यूनल ज़रूर हो गये होंगे.यहां कोई भी एक दिन में सेक्यूलर और एक दिन में कम्यूनल हो जाता है.
वैसे ही जैसे भारतीय जनता पार्टी में जाने के बाद कोई भी भ्रष्टाचारी, ईमानदार हो जाता है.

अजय निषाद को जानते ही होंगे.वही मुज़फ़्फ़रपुर के भाजपा सांसद.टिकट नहीं मिला तो कांग्रेस में आ गये.कल तक कांग्रेस की निगाह में कम्यूनल थे.कांग्रेस में आकर गंगा नहा गये.सेक्यूलर का तमग़ा मिल गया. कोरोनाकाल में ये मुसलमानों को ख़ूब गरियाते थे.अब मुसलमान उछल-उछल कर वोट करेगा.सेक्यूलर का लिबादा जो उसने ओढ़ लिया.यही है हमारे देश का सेक्यूलरिज़म.पार्टी के आधार पर सेक्यूलरिज्म और कम्यूनलिजम की व्याख्या यहां होती है ,विचारधारा की बुनियाद पर नहीं.
विचारधारा की लड़ाई में परिवार,सत्ता,कुर्सी,पावर पीछे होना चाहिए.विचारधारा से सेक्युलर पार्टियां कमज़ोर है.
अन्यथा,राज्यसभा में रहते हुए मीसा भारती को लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार बनाना कोई तुक नहीं है.
यह जानते हुए कि दो दो बार से बिटिया हार रही है. इस बार भी इनके हारने के पूरे आसार हैं। इस बार तो रोहिणी आचार्य को भी मैदान में उतार दिया गया।पूरे परिवार को चुनाव लड़ाना भी सेक्यूलरिज्म नहीं है.
इसी प्रकार कांग्रेस के अखिलेश सिंह ख़ुद अध्यक्ष और राज्यसभा सदस्य रहते हुए सुपुत्र के टिकट के लिए ऐड़ी चोटी एक किए हुए हैं। यह भी सेक्यूलरिज्म की लड़ाई नहीं है.यूपी में अखिलेश रोज़ उम्मीदवार ही बदल रहे हैं.राहुल की सीट पर वामपंथी उम्मीदवार क्यों लड़ रहा है? यह सेक्युलरिज्म के किस दायरे में आता है?

ओवैसी के बयान से धुर्वीकरण होता है तो बंगाल में ममता,कांग्रेस,सीपीएम के आपस में लड़ने से सेक्युलरिज्म की गोलबंदी हो रही है? राजद या इंडिया गठबंधन में मुसलमान को पीछे रख कर धर्मनिरपेक्षता की कौन सी लड़ाई लड़ी जा रही है.चुनावी सभाओं के मंच पर मुसलमान कहीं दिख क्यों नहीं रहा है?तेजस्वी यादव बीमा भारती के नामांकन में पूर्णिया पहुंच जाते हैं । बग़ल में डॉ.जावेद और तारिक़ अनवर का भी उसी दिन किशनगंज और कटिहार में नॉमिनेशन था,वहां क्यों नहीं गये? राजद ने अबतक कितने मुसलमान को टिकट दिया?भाजपा कम से कम सेक्यूलरिज्म की बात नहीं करती और न मुसलमानों को मुग़ालते में रखती है.भाजपा से डरा कर यदि वोट बटोरना सेक्यूलरिज्म है तो यह भी एक धोखा है। ऐसा मुसलमान, ईसाई और सिख समाज के लोग कहने भी लगे हैं।

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