लव कुमार मिश्र

पटना: पटना के लिए मॉक ड्रिल और सायरन कोई नई बात नहीं है। १९६३ में पटना सिटी में भूमिगत बंकर भी तैयार किए गए थे।

मैं 1971 में पटना कॉलेज का छात्र था, जब पाकिस्तान ने भारत पर हमला किया था। उस समय आर.एन. दास, जो ओडिशा के मूल निवासी थे, जिलाधिकारी थे।
जिलाधिकारी के रूप में वे सिविल डिफेंस संगठन के प्रभारी थे और आपातकालीन कार्रवाइयों के लिए जिम्मेदार थे, जिन्हें सिविल डिफेंस वार्डन राय विनय कृष्ण और उनके डिप्टी राम जी मिश्रा मनोहर के जरिए अंजाम दिया जाता था।

सायरन बांकीपुर गर्ल्स हाई स्कूल, गोलघर, दरभंगा हाउस,हरमंदिर साहेब, गुलजारबाग सरकारी प्रेस और बिहारी मिल्स में लगाए गए थे।

शाम होते ही कई घंटों तक पूरा शहर अंधेरे में डूबा रहता था। लोग लालटेन तक जलाने से बचते थे। रात में सभी दुकानों को बंद कर दिया जाता था।

हमें अक्सर बगल के बिहटा वायुसेना अड्डे से उड़ान भरते विमानों की आवाज़ सुनाई देती थी।
यारपुर ,चितकोहरा, मंगल तालाब चौक के पास भमिगत खंदक बंकर जहां हवाई आक्रमण के समय छिपा जा सके बनाए गए थे.
पटना और पटना साहेब रेलवे स्टेशन भी अंधेरे में डूब जाता था,सचिवालय कर्मियों को शाम ढलने के पहले छूटी मिल जाती थी।
उस समय टेलीविजन नहीं होता था,लोग ट्रांजिस्टर जरूर रखते,कई मोहल्लों में लोग ग्रुप मिला कर ट्रांजिस्टर पर ही आकाशवाणी से प्रसारित समाचार सुनते थे,
उस वक्त पटना के बी एन कॉलेज में हिंदी के प्रोफेसर रामेश्वर सिंह कश्पय द्वारा लिखित लोहा सिंह धारावाहिक जरूर सुनते जो चीन के साथ हुए युद्ध के समय ही चालू हुआ था और इसके कई कैरेक्टर जैसे फाटक बाबा,खदेरन को मदर काफी लोकप्रिय हो गए थे,
पटना आज से पचास साल पहले छोटा शहर रहा,लोग यदि रात की ट्रेन से स्टेशन पहुंचते,तब सुबह में ही घर के ही निकलते,घर के दरवाजा और खिड़की भी पूरी तरह से बंद हो जाते थे

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