सुभाष निगम
नयी दिल्ली : लद्दाख में भारत-चीन के बीच शुरू हिंसक झड़प के बाद एलएसी पर गतिरोध बना हुआ है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत के कड़े रुख से चीन के तेवर ढ़ीले पड़े हुए हैं। कड़ाके की इस सर्दी में चीनी सैनिक सीमा पर ज्यादा देर तक रह नहीं पा रहे हैं। उन्हें बार-बार रोटेट करना पड़ रहा है। सीमा पर तनाव की ऐसी स्थिति में चीन ने तीन दशक के बाद भारत से चावल की खरीद की है। सीमा पर गतिरोध के बाद यह पहला मौका है जब चीन की तरफ से ये कदम उठाया गया है। दोनों देशों के बीच राजनीतिक तनाव के बीच ये कदम भारत के लिए एक बड़ी कामयाबी है। ये प्रधानमंत्री मोदी की नीतियों के कारण ही संभव हो पाया है।
चीन दुनिया का चावल का सबसे बड़ा आयातक है, जबकि भारत सबसे बड़ा निर्यातक। चीन हर साल करीब 40 लाख टन चावल खरीदता है, लेकिन गुणवत्ता का हवाला देकर अभी तक भारत से खरीद से बचता रहा है। चीन आमतौर पर थाईलैंड, वियतनाम, म्यांमार और पाकिस्तान से चावल खरीदता रहा है, लेकिन इस बार इन देशों ने निर्यात के लिए सरप्लस चावल कम होने के कारण भारत की तुलना में कीमत 30 डॉलर प्रतिटन बढ़ा दिए हैं। इधर भारतीय चावल की गुणवत्ता को देखते हुए चीन ने तीस साल में पहली बार चावल की खरीदारी की है।
रायटर की खबर के अनुसार चावल की गुणवत्ता को देखते हुए वे अगले साल खरीदारी बढ़ा सकते हैं। राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के अधिकारियों के मुताबिक भारतीय व्यापारियों ने दिसंबर-फरवरी के लदान के लिए एक लाख टन टूटे चावल का निर्यात लगभग 300 डॉलर प्रति टन करने का अनुबंध किया है। गतिरोध के बीच ऐसी स्थिति में जब भारत ने हाल के महीनों मे चीन के कई एप पर प्रतिबंध लगा दिए हैं, देश भर में लोकल फॉर वोकल पर जोर है और आम भारतीय चीन में बने उत्पादों को खरीदने से बच रहे हैं, ऐसे में चीन के रुख में यह बदलाव काफी मायने रखता है।