पिछले 15 साल में गरीबों , अति पिछड़ों, दलितों पर बेहद जुल्म हुए, न्याय की अवधारणा खत्म हो गई

न्यूज ब्यूरो 

पटना । भाकपा-माले राज्य सचिव कुणाल ने कहा है कि 15 साल का जश्न मना रही भाजपा-जदयू सरकार का शासन दरअसल बिहार के विनाश का शासन है. यह 15 साल दलित-गरीबों, मजदूर-किसानों, छात्र-नौजवानों, स्कीम वर्करों, शिक्षक समुदाय आदि तबके से किए गए विश्वासघात, बिहार को पुलिस राज में तब्दील करने और एक बार फिर से सामंती अपराधियों का मनोबल बढ़ाने के लिए ही इतिहास में याद किया जाएगा.

जब नीतीश कुमार सत्ता में आए थे, ‘सुशासन’ व ‘न्याय के साथ विकास’ उनका प्रमुख नारा हुआ करता था. लेकिन उनके सारे नरेटिव ध्वस्त हुए हैं. महादलितों को जमीन देने की बड़ी-बड़ी बातें की गईं, लेकिन आज उलटे गरीबों को उस जमीन से भी बेदखल किया जा रहा है जहां पर वे बरसो बरस से बसे हैं. भाजपा-जदयू शासन में भूमि सुधार की प्रक्रिया को उलट ही दिया गया और एक बार फिर हर जगह भूमाफियाओं की चांदी है. 

सुशासन का हाल यह है कि आज अपराध बिहार में लगातार बढ़ते ग्राफ में है. कहीं पुलिस का आतंक है, कहीं सामंती अपराधियों का. बिहार में कानून का राज नहीं बल्कि पुलिस व अपराधी राज है और आम लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों की हत्या खुलेआम जारी है. महिलाओं के सशक्तीकरण के दावे की पोल तो मुजफ्फरपुर शेल्टर होम ने खोल कर रख दिया था.

उसी प्रकार, तथाकथित विकास की भी पोल खुल चुकी है. नीति आयोग की रिपोर्ट में राज्य के 52 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं. विकास के 7 इंडेक्स में बिहार देश में सबसे खराब स्थिति में है. आखिर किस मुंह से यह सरकार विकास का दावा करती है? यदि लोगों के जीवन स्तर में ही सुधार न हुआ तो पुल-पुलिया बनाकर आखिर कौन सा विकास का माॅडल यह सरकार पेश कर रही है? और इस पुल-पुलिया के निर्माण में भी व्यापक पैमाने पर संस्थागत भ्रष्टाचार ही आज का सच है.

नीतीश शासन में सबसे बुरी हालत शिक्षा व्यवस्था की हुई है. शिक्षक-शिक्षकेत्तर कर्मचारियों के लाखों पद खाली पड़े हैं, लेकिन सरकार बहाली नहीं करना चाहती. कुलपतियों की नियुक्ति में भारी भ्रष्टाचार सहित संस्थागत शैक्षणिक अराजकता आज के बिहार के कैंपसों का सच है. 19 लाख रोजगार का झूठा वादा करके सत्ता में आई सरकार इस चौथे टर्म में भी युवाओं से केवल विश्वासघात ही कर रही है.

कोविड के दौरान हमने बिहार से पलायन पर सरकार को बेपर्द होते हुए देखा. यदि राज्य में विकास की ऐसी ही गंगा बह रही है, तो क्या भाजपा-जदयू सरकार यह बताएगी कि आखिर राज्य से लाखों मजदूरों का बदस्तूर पलायन आज भी जारी क्यों है? जम्मू-कश्मीर से लेकर उत्तराखंड तक में उनपर लगातार हमले हो रहे हैं, वे मारे जा रहे हैं, आखिर सरकार की नींद क्यों नहीं खुलती? 

जाहिर सी बात है कि कृषि का परंपरागत पिछड़ापन और नीतीश शासन में बचे-खुचे उद्योगों की समाप्ति के कारण आज पहले से कहीं अधिक पलायन हो रहा है. सरकार आंकड़ों की बाजीगरी करके इसे छुपाना चाहती थी, लेकिन लाॅकडाउन ने इस हकीकत को सामने रख दिया है.

कोविड की दूसरी लहर ने बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था की भी पोल खोल दी. पूरा स्वास्थ्य तंत्र लकवाग्रस्त है. डाॅक्टरों, नर्सों, अस्पतालों की भारी कमी है. हमने लोगों को आॅक्सीजन के अभाव में तड़प-तड़प कर मरते देखा है. लेकिन बेशर्म सरकार यही बोलते रही कि आॅक्सीजन के अभाव में एक भी मौत नहीं हुई है.

ठेका पर एक तरह से लोगों से बेगार करवाना इस सरकार की खासियत है. आशाकर्मियों, रसोइया, शिक्षक समुदाय, आंगनबाड़ी आदि तबकों के प्रति सरकार के तानाशाही रवैये से हम सभी वाकिफ हैं. इन तबकों को न्यूनतम मानदेय भी नहीं मिलता ताकि वे अपना जीवन बसर कर सके. यदि वे अपने अधिकारों की मांग करते हैं, तो सरकार उनपर दमन अभियान ही चलाती है.

यदि नीतीश राज में किसी का कुछ भला हुआ है, तो वह शराबमाफियाओं और ठेकेदारों का. विगत चुनाव में बिहार की जनता ने इस विश्वासघाती व विनाशकारी सरकार को लगभग पलट दिया था. ऐसी सरकार को बिहार और बर्दाश्त करने के लिए तैयार नहीं है.

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