प टना,; किसान आन्दोलन की जीत, लोकतंत्र की जीत है और तानाशाही का हार है. अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष कृष्ण देव यादव, राज्य सचिव रामाधार सिंह और राज्य सह सचिव राजेन्द्र पटेल ने संयुक्त प्रेस ब्यान जारी करते हुए कहा कि किसान आन्दोलन की जीत , किसान आन्दोलन की दृढ़ता व धैर्य और लोकतंत्र की जीत है, दुसरी तरफ कॉर्पोरेट परस्त नीतियों व तानाशाही की हार है. किसान आन्दोलन में शहीद किसानों को कोटि- कोटि नमन व श्रद्धांजलि. किसान आन्दोलन में शामिल लोगों व समर्थकों को धन्यवाद दिया. उन्होंने कहा कि अखिल भारतीय किसान महासभा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की दो दिवसीय बैठक 18 और 19 दिसम्बर, 2021को आरा, भोजपुर (बिहार) में होगी. बैठक के पूर्व 18 दिसम्बर को हीं भाकपा माले के पूर्व राष्ट्रीय महासचिव कामरेड बिनोद मिश्रा का वरसीं के अवसर पर,उनके स्मारक पर तमाम राष्ट्रीय किसान नेता मल्यार्पण करेंगे और उसके बाद नागरी प्रचारिणी हॉल , आरा में नागरिक कंवेन्शन होगा, जिसमें पुरे बिहार के किसान महासभा की तमाम जिला कमेटी, जिला संयोजन समिति व अन्य प्रमुख किसान नेता भाग लेगें . कन्वेंशन व बैठक में किसान महासभा की सदस्यता भर्ती , किसान आन्दोलन की उपलब्धियों , अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति व संयुक्त किसान मोर्चा को मजबुत करने और आगामी कार्यभार पर बातचीत होगी. उन्होंने कहा कि
पंजाब व किसान आंदोलन की दृढ़ता, पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान के किसानों की बेमिसाल एकजुटता व संघर्ष के साथ ही बिहार, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश सहित संपूर्ण देश के किसानों, मजदूरों, छात्र-युवाओं, महिलाओं व नागरिकों के सहयोग व सहानुभूति, राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय समर्थन से संयुक्त इस ऐतिहासिक किसान आंदोलन के समक्ष मोदी सरकार को घुटने टेकने पड़े और अफरातफरी में पारित किए गए तीनों कानूनों को वापस लेना पड़ा। सुप्रीम कोर्ट पहले ही इन कानूनों पर रोक लगा चुका था।
यह बात रेखांकित करने वाली है कि देश के अन्य संसाधनों को एक के बाद एक की निजी हाथों में बिक्री के साथ देश की खेती को भी कारपोरेट के हाथों बिक्री देश के किसानों व आम देशवासियों को कत्तई मंजूर नहीं थी । अपने युवा पीढ़ी की मर्मांतक बेरोजगारी, बढ़ता कृषि लागत व अकूत मंहगाई की हालत में किसानों की पीठ दीवार से सट चुकी थी और किसान ” करो या मरो” की लड़ाई के लिए विवश और संकल्पित था ।
इस ऐतिहासिक किसान आंदोलन की जीत और तीन कृषि कानूनों की वापसी का यह साफ संदेश है कि अब कारपोरेट परस्त नीतियों की जगह किसान व जन पक्षीय समग्र नीति निर्माण हो और लोकतंत्र की तमाम नियामक संस्थाएं इस पर अमल करें और देश व राज्य की सत्ताओं पर ऐसे ही दलों या व्यक्तियों को गद्दी नशीन किया जाए जो इसे अमलीजामा पहना सकें ।
बीज, कीटनाशक, खाद, जल संसाधन, कृषि बाजार आदि को प्रभावित करने वाले अमेरिका के साथ सम्पन्न कृषि विषयक ज्ञान उपक्रम समझौते को ‘अन डू’ करने से लेकर खेती को लाभकारी बनाने, सिंचाई व जल संसाधन को सुदृढ़ बनाने, कृषि भूमि का उपयोग मुख्यतया खेती के लिए करने, कृषि से जुड़े किसानों, कृषि मजदूरों, बटाईदारों,पशुपालकों, आदिवासियों आदि की बेहतर जीवन स्थिति आदि सवालों पर किसान आंदोलन छेड़ना होगा और सरकारों से अपनी मांग मनवाने के लिए आगे बढ़ना होगा ।
भाजपा और उसकी मोदी-जोगी-खटृर-चौहान सरकारों से इन किसान विरोधी कानूनों को लाने , किसान आंदोलन पर बर्बर तानाशाही दमन ढाने, किसान आंदोलन को बदनाम करने और फूट डालने,दंगा कराने की साजिशों के संबंध में सवाल पूछना ही होगा । आखिर वह सिंघू-गाजीपुर-टिकरी बार्डर से लेकर करनाल, लखीमपुर तक शांतिपूर्ण किसान आन्दोलनकारियों पर वो इतना हमलावर क्यों थी, किसानों का लखीमपुर में जन संहार क्यों रचा और इसके कर्ताधर्ताओं को सत्ता का संरक्षण क्यों मिला हुआ है ? आदि-आदि ।
कुल मिलाकर इस महान किसान आंदोलन को भारत में लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता की बुनियाद पर खड़े भारतीय संविधान व लोगों के अधिकारों के लिए जनता के संघर्षों के साथ खड़ा रहने की नैतिक जिम्मेदारी स्वीकार करना होगा।

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