“लोहिया के सपनों का भारत- भारतीय समाजवाद की रूपरेखा” पुस्तक का विमोचन
सुभाष निगम
नई दिल्ली। 2 अप्रैल 2024 . नई दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में- “लोहिया के सपनों का भारत- भारतीय समाजवाद की रूपरेखा” पुस्तक का विमोचन कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश तथा कार्यक्रम की अध्यक्षता गांधीवादी समाजवादी रघु ठाकुर ने की। कार्यक्रम को मुचकुंद दुबे-पूर्व विदेश सचिव, राम बहादुर राय अध्यक्ष इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र नई दिल्ली, प्रोफेसर के एल शर्मा संपादक सामाजिक विमर्श एवं पूर्व कुलपति राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर ने संबोधित किया।
कार्यक्रम के प्रारंभ में राजकमल प्रकाशन समूह के अध्यक्ष अशोक माहेश्वरी जी ने आज के कार्यक्रम के अतिथियों का परिचय कराया।
लोहिया के सपनों का भारत पुस्तक के लेखक अशोक पंकज ने कार्यक्रम की शुरुआत में बताया कि जब भी लोहिया का साहित्य काफी विस्तृत है और कोई भी नया पाठक जो लोहिया को जानना चाहता है,उसके लिए इतनी पुस्तकें पढ़ना शुरुआत में संभव नहीं है। मेरे मन में आया की लोहिया जी के बारे में जो भी साहित्य है उपलब्ध है उसका अध्ययन कर उनके विचारों को एक संक्षिप्त रूप में पुस्तक के रूप में लिखा जाना चाहिए। समाजवादी नेता एवं विचारक रघु ठाकुर जी ने मुझे पुस्तक लिखने के लिए प्रोत्साहित किया।पुस्तक की भूमिका भी रघु ठाकुर जी ने ही लिखी है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए समाजवादी चिंतक रघु ठाकुर ने कहा कि -“आज लोहिया पर पूरी दुनिया में चर्चा शुरू हुई है। विचार कभी मरता नहीं है।अलग-अलग कालखंड में उसकी चर्चा कम या ज्यादा हो सकती है। लोहिया कहा करते थे कि एटम और गांधी में यदि जीत की चर्चा होगी तो आखिर में गांधीजी जीतेंगे। ब्रेल्स फोर्ड यूरोप के बड़े पत्रकार ने अपनी टिप्पणी मे कहा एटम और गांधी में नहीं बल्कि एटम, गांधी और मार्क्स/लेनिन में है और 15 साल बाद उन्ही ब्रेल्स फोर्ड ने लिखा कि लोहिया ठीक थे क्योंकि आज मार्क्स /लेनिन फुसफुसाहट सिद्ध हो चुके हैं। आज लड़ाई एटम और गांधी के बीच ही है। उन्होंने लोहिया को दूरदर्शी माना। हालाकि में आज के मीडिया को ऐटम से भी बड़ी चुनौती मानता हूं।इंसान की आजादी को राज्य के हमले से कैसे बचाया जाए?? यह आज एक बड़ा प्रश्न है। यह कल भी था और आज तो और भी बड़ा हो गया है। राज्य के हमले से इंसान की आजादी को अगर बचाना है तो संस्थाओं के भरोसे नहीं बैठा जा सकता। उसके लिए हम हमें सूत्र खोजने होंगे, गांधी और लोहिया में। डॉ लोहिया कहा करते थे कि मैं एक ऐसा इंसान गढ़ना चाहता हूं जो स्वभाव से सत्याग्रही हो। यह दलों के स्तर पर नहीं हो सकता। जिस दिन हर इंसान सत्याग्रही हो जाएगा, लड़ने को तैयार हो जाएगा, वह दिन सबसे अच्छा दिन होगा। उस दिन सत्ता की ताकत, सत्ता की शक्ति कमजोर पड़ जाएगी। आज राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र नहीं बचा है। आज कोई भी दल ऐसा नहीं है जिसमें आंतरिक लोकतंत्र हो। यह स्थिति लोकतंत्र की समाप्ति और तानाशाही को लाने वाली होती है। लोहिया कहते थे कि आज हम ऐसा समाज बन गए हैं, जहां हम दूसरों की तो आलोचना करते हैं लेकिन आत्मचिंतन नहीं करते। डॉ लोहिया ने लिखा है कि अगर कांग्रेस सरकार गोली चलाए तो हम उसकी आलोचना करते हैं और हमारी सरकार गोली चलाए तो हम उसका बचाव करते हैं। कम्युनिस्ट सरकार गोली चलाये तो कांग्रेस वाले आलोचना करते हैं और कांग्रेस सरकार गोली चलाए तो कम्युनिस्ट आलोचना करते हैं। सबसे अच्छा दिन होगा जिस दिन हम अपने दल की सरकार की आलोचना शुरू करेंगे। लोहिया कहते थे कि गांधी ने हमको सबसे बड़ा हथियार दिया है कि कितनी ही बड़ी सत्ता या निरंकुश सत्ता क्यों ना हो, अगर एक व्यक्ति भी प्रतिकार करना चाहे तो कर सकता है। यह ही सबसे बड़ी शक्ति है। इंसान के मन में प्रतिकार करने की शक्ति है- यह लोहिया का दर्शन है जिस पर चर्चा होनी चाहिए। महत्वकांक्षाएं और उनके झगड़े हर दल और हर समय में रहे हैं। ऐसा कोई संगठन, कोई देश या कोई संगठन नहीं जहां महत्वाकांक्षाओं के झगड़ा ना हों। हर विचारधारा में हैं। लेकिन यह अच्छी बात भी है क्योंकि इससे नई चीज सामने आती है। कथनी और करनी में अंतर नहीं होना चाहिए। इसी अंतर के कारण समाज में दिक्कत पैदा होती है। आज सभी दल भयभीत हैं कि हमारी सरकार आएगी या नहीं!! टिकटार्थी इस चीज से चिंतित हैं कि उन्हें टिकट मिलेगा या नहीं मिलेगा!!जिस दिन हम तय कर लेंगे कि- हम जहां भी हैं,जहाँ भी रहें, वहां निर्भीक रहेंगे। सत्ता रहे ना रहे, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। उस दिन सच्चा समाजवाद आएगा। एक बार रामविलास शर्मा जी से किसी ने प्रश्न किया की समाजवाद क्या है?तो रामविलास जी ने अपना कुर्ता उठाकर पेट दिखाया और कहा कि पेट पर यह जो चर्बी दिखाई दे रही है, यह नहीं होनी चाहिए। इस चर्बी का हटना ही समाजवाद है। असहमति का हमारा अधिकार होना चाहिए। लेकिन हम अपनी जिम्मेदारी न मानें, यह भी सही नहीं है। दोनों साथ-साथ होनी चाहिएं।असहमति का अधिकार भी है और जिम्मेदारी भी। 1974में युवजन सभा के एक सम्मेलन में जयप्रकाश जी से पूछा गया की उनकी संपूर्ण क्रांति क्या है?तो जयप्रकाश जी ने उत्तर दिया कि लोहिया की सप्त-क्रांति ही मेरी संपूर्ण क्रांति है। लोहिया जी कहा करते थे कि राजनीति अल्पकालिक धर्म है और धर्म अल्पकालिक राजनीति। दोनों को अलग-अलग करके नहीं देखना चाहिए। दोनों को एक साथ देखना चाहिए। धर्म में भी परिवर्तन की संभावनाएं होनी चाहिए।”
मुचकुंद दुबे ने कहा कि -“मैं बचपन से ही समाजवादी रहा हूं और आज भी हूं। मुझे यह कहने में कतई संकोच नहीं की जयप्रकाश मेरे हीरो रहे हैं और विद्यार्थी जीवन में डॉक्टर लोहिया मेरे हीरो रहे। मैं अपने विद्यार्थी जीवन में युवजन सभा में बहुत सक्रिय रहा। किसी एक विचारधारा को पसंद करना और दूसरी को नापसंद करना, उस समय, हमारी समझ में नहीं आता था। समाजवाद मार्क्सवाद कांग्रेस वाद और भाजपावाद- ये चारों विचारधाराए भारत में ही जन्मी और यहीं पोषित हुई। सिविल नाफरमानी गांधी जी का देश को दिया गया सबसे बड़ा हथियार है। इसी विचार ने हमें आजादी दिलाई बाकी सभी हथियार असफल साबित हुए हैं। डॉ लोहिया ने गहराई से अध्ययन कर देश को विचार दिए ”
राम बहादुर राय जी ने अपने संबोधन में कहा कि-” लोहिया का साहित्य बिखरा हुआ है और इसको संजोकर पंकज जी ने एक अच्छा काम किया है। डॉ लोहिया आंदोलनकारीही नहीं थे परंतु यदि लोग आवाज उठा रहे होते थे तो लोहिया उसमें भी आवाज मिला ते थे। यह आज की है पुस्तक डॉ लोहिया को एक महापुरुष के रूप में प्रस्तुत करती है डॉक्टर लोहिया असहमति की आवाज थे। असहमति का स्वर लोकतंत्र में होना चाहिए और जितना प्रबल हो उतना ही अच्छा है। डॉक्टर लोहिया एक महापुरुष हैं, थे नहीं, बल्कि हैं। जिनके विचारों का महत्व होता है, वही महापुरुष होता है। यदि कोई बड़ा समूह किसी व्यक्ति के बारे में श्रद्धा रखता है तो वह व्यक्ति महापुरुष है। डॉक्टर लोहिया को लाखों लोग श्रद्धा से याद करते हैं, । लोहिया के रास्ते पर चलकर राष्ट्र निर्माण में लंबी रेखा खींची जा सकती है। रघु ठाकुर आज इसके उदाहरण हैं। वे डॉक्टर लोहिया के सच्चे उत्तराधिकारी हैं।”
प्रोफेसर के एल शर्मा ने अपने संबोधन में कहा कि डॉ लोहिया का जीवन बहुत छोटा रहा।उनकी राजनीतिक सक्रियता 1952 से 1967 यानि 15 साल की रही। इसमें उन्होंने बहुत कुछ कह दिया तथा देश को बहुत कुछ दिया भी। जवाहरलाल नेहरू जिनको बहुत लंबा समय मिला वे लोहिया से पीछे रहे। जागरूकता लाने के लिए डॉक्टर लोहिया ने गांधी जी से सिविल नाफरमानी लिया। मानववाद पर डॉ लोहिया ने बहुत जोर दिया। डॉ लोहिया ने थोड़ा-थोड़ा सब जगह से लिया। डॉक्टर लोहिया संपत्ति तथा जमीन के समान वितरण के पक्षधर थे। गरीबी और गैर-बराबरी को मिटाने के लिए संपत्ति का वितरण समान होना चाहिए ।पेट और मन दोनों का सामंजस्य ही समाजवाद है। डॉक्टर लोहिया संपत्ति के विरोधी नहीं थे परंतु संपत्ति कुछ ही लोगों के पास केंद्रित हो जाए, इसके विरोधी थे।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के तौर पर बोलते हुए हरिवंश जी ने कहा कि -” इस पुस्तक का संकलन बड़े ही सुंदर तरीके से किया गया है । लोहिया जी को समझने का एक अच्छा सूत्र मुझे मिला- उनके चाचा और डॉ लोहिया के वार्तालाप से। डॉक्टर लोहिया के चाचा ने लोहिया से पूछा कि तुमको भविष्य में क्या करना है ।तुमको भी ऐसे ही घूमना है जैसे तुम्हारे पिता। भविष्य में तुमको नौकरी करना है या व्यवसाय या कुछ और। तो लोहिया जी ने उत्तर दिया की पूंजीवाद को खत्म करना ही मेरा उद्देश्य है। गांधी के बाद लोहिया की आवाज दूर-दराज के गांव तक भी पहुंचती थी जबकि उस समय बातों को पहुंचाने के साधन बहुत ही सीमित थे। दूर गांव समाज का आदमी चर्चा करता था कि कोई हमारे जैसा ही धोती कुर्ते वाला हमारी बात कहने वाला, हमारे बारे में सोचने वाला है भी है। जयप्रकाश जी का जब राजनीति से मोह भंग हो गया तो उन्होंने चेन्नई में जाकर बसने का सोचा। राम वृक्ष बेनीपुरी जी ने उनसे कहा कि मैं आपसे मिलना चाहता हूं तो जे पी ने बेनीपुरी जी को मुंबई में अपने एक मित्र के घर मिलने के लिए कहा। जेपी के मित्र का घर समुद्र के किनारे था। बेनीपुर जी और जयप्रकाश जी शाम के समय घर के बाहर बैठे हुए थे। तो जयप्रकाश जी ने समुद्र की ओर देखते हुए कहा की देखो कितना सुंदर दृश्य है- सूर्य अस्त होने जा रहा है, लालिमा फैलाए हैं, और सामने से आ रहा समुद्री जहाज कितना सुंदर दिखाई दे रहा है। धीरे-धीरे अंधेरा बढ़ गया समुद्री जहाज की रोशनी जल गई तब जेपी ने कहा कि देखो अब जहाज और भी सुंदर लग रहा है। तब बेनीपुरी जी ने कहा कि यदि यह जहाज डूब जाए तो कैसा दृश्य लगेगा। जयप्रकाश जी हक्के-बक्के रह गए!तब बेनीपुरी जी ने कहा की उस जहाज के कप्तान आप हैं और कप्तान जहाज से कूद गया और अपने आपको तो बचा लिया लेकिन हम जैसे सैकड़ो कार्यकर्ताओं को समुद्र में मरने के लिए छोड़ दिया।जे पी बोले-क्या ऐसा है?? ऐसा कहकर जेपी रोने लगे और बोले कि इसमें क्या सारी गलती मेरी है?? जेपी बड़े भावुक व्यक्ति थे। गांधी जी ने एक बार कांग्रेस की मीटिंग में कहा कि समाजवादी जो इतनी लंबी-लंबी बातें करते हैं इन समाजवादियों को एक प्रदेश को सौंप देना चाहिए । उसमें यह काम करके दिखाएं। लेकिन सरदार पटेल और दूसरे कई कांग्रेसी नेता इसके लिए तैयार नहीं हुए। यदि ऐसा हो जाता तो शायद कांग्रेस और देश की राजनीति में एक बड़ा बदलाव हो सकता था। डॉक्टर लोहिया मैं अद्भुत प्रतिभा थी।
कार्यक्रम के अतिथियों का स्वागत मुकेश चंद्रा ने पुष्प गुचछ देकर किया तथा संचालन अरुण प्रताप सिंह ने किया।
इस अवसर पर दिल्ली के साथ-साथ देश के अनेक प्रदेशों के विद्वजन तथा समाजवादी साथी जिनमें मुख्य रूप राजनाथ शर्मा अमिताभ आधार,विजय खैरा, बहार यू बरकी, डी एस चौधरी, राजेंद्र राजन, श्यामसुंदर यादव भिंड मदनलाल हिंद पत्रिका राजकुमार सिंह अरविंद कुमार सिंह फैजान मंजू मोहन, एस एस नेहरा, अभय सिन्हा- पाटेश्वरी प्रसाद, बृजेश शर्मा, श्याम सुंदर यादव विन्देश्वरी पटेल जयंत तोमर रमेश शर्मा, एच एन शर्मा, प्रोफेसर ब्रजवीर सिंह, निरंजन सिंह, डॉ सारिका वर्मा, नीरज सिंह, एडवोकेट गुप्ता, जेड ए फैजान, दयाशंकर शर्मा अमन खान विपिन गुप्ता सूर्यकांत पाठक,कर्नल ओपी मलिक,प्रवीन मान देवेन्द्र, रईस अन्सारी उपस्थित रहे।काफी साथियों को बैठने के लिए जगह न मिल सकने के लिए आयोजकों ने खेद व्यक्त किया।