बंगाल ब्यूरो 

कोलकाता। राज्यसभा से इस्तीफा देने के बाद पूर्व रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने का मन बना चुके हैं। अभूतपूर्व तरीके से शुक्रवार को राज्यसभा की कार्यवाही के दौरान पटल पर उन्होंने इस्तीफे की घोषणा की और कहा कि तृणमूल में उनका घर दम घुट रहा है। अब उनके करीबी सूत्रों ने बताया है कि तृणमूल के अंदर उनके साथ ऐसा बर्ताव पिछले कई सालों से हो रहा था जिसकी वजह से वह असहज महसूस कर रहे थे। ममता बनर्जी के शासनकाल में जबरन वसूली, हिंसा और भ्रष्टाचार के लिए कुख्यात रही तृणमूल कांग्रेस की संस्कृति के मुताबिक उनका व्यवहार नहीं रहा है। टैक्सास यूनिवर्सिटी से स्नातक करने वाले दिनेश त्रिवेदी लंबे समय से तृणमूल कांग्रेस में उपेक्षित महसूस कर रहे थे। इसकी वजह यह थी कि वह हिंदी भाषी थे। उनके करीबी सूत्रों ने बताया कि वह आदर्श की राजनीति करने के लिए जाने जाते हैं। 2012 में जब वह रेल मंत्री थे और अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए रेल किराए में बढ़ोतरी की घोषणा तमाम आलोचनाओं के बाद भी की, तब खुद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी उनसे नाराज हो गई थीं। खुद ममता ने मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर उन्हीं की पार्टी के एक दूसरे नेता मुकुल रॉय (अब भाजपा में हैं) कौ रेल मंत्री बनाने की अनुशंसा की थी जिसकी वजह से दिनेश त्रिवेदी को बिना किसी आयोजन रेल मंत्रालय से विदा कर दिया गया था। उसके बाद से ममता और दिनेश त्रिवेदी के रिश्ते कभी सामान्य नहीं रहे। उन्होंने जब जब पार्टी की अनैतिक गतिविधियों के खिलाफ आवाज उठाई तब तक उनका पद और कद छोटा कर दिया गया। टैक्सास यूनिवर्सिटी से स्नातक और भारतीय राजनीति के प्रखर शिक्षित राजनेताओं में शामिल रहने वाले त्रिवेदी को ममता की पार्टी में बार-बार अपमान का मुंह देखना पड़ा था जिसकी वजह से वह घुटन महसूस कर रहे थे। 2014 के लोकसभा चुनाव में भले ही ममता बनर्जी ने उन्हें बैरकपुर लोक सभा केंद्र से टिकट दिया लेकिन दोनों के बीच औपचारिक बातचीत नहीं होती थी। इसकी वजह थी कि ममता दिनेश के फोन का जवाब नहीं देती थी और अगर वह मिलने की कोशिश करते थे तो पार्टी के नेता बाधा बनकर खड़े होते थे। इसीलिए 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद जुलाई में जब ममता ने उन्हें हुगली रिवर ब्रिज कमिश्नर के अध्यक्ष के पद की पेशकश की तो उन्होंने ठुकरा दिया। वह पार्टी में अपनी नाराजगी का इजहार ही था लेकिन ममता ने इस पर ध्यान नहीं दिया। इसके बाद राज्यसभा के लिए नामित किया गया लेकिन तब भी उन्होंने मुख्यमंत्री से मिलने की कोशिश की। हालांकि उस दौरान तृणमूल के नेता बाधा बन गए थे।

हाल के दौर में उन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के खिलाफ बयानबाजी के दबाव बनाए गए थे जिससे उन्होंने साफ इनकार कर दिया था जिसकी वजह से उन्हें उपेक्षित किया गया। पार्टी में कई महत्वपूर्ण फैसलों और बैठकों के कार्यक्रमों में उन्हें सिर्फ इसलिए दरकिनार किया गया क्योंकि वह हिंदी भाषी थे। इसलिए वह काफी पहले से पार्टी छोड़ने का मन बना चुके थे। अब सूचना है कि गुजरात से जिन दो राज्यसभा सीटों पर उम्मीदवार भेजे जाने हैं उनमें से एक सीट पर भाजपा के उम्मीदवार दिनेश त्रिवेदी हो सकते हैं। इसलिए एक मार्च से पहले उनके भाजपा में भी शामिल होने की अटकलें तेज हो गई हैं।

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