विजय शंकर

पटना : भारतीय जनसंघ के संस्थापक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के स्मृति दिवस पर आज भाजपा प्रदेश कार्यालय में आयोजित कार्यक्रम में उन्हें अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी नवभारत के निर्माताओं में से एक महत्त्वपूर्ण स्तम्भ हैं। जिस प्रकार हैदराबाद को भारत में विलय करने का श्रेय सरदार पटेल को जाता है, ठीक उसी प्रकार बंगाल, पंजाब और कश्मीर के अधिकांश भागों को भारत का अभिन्न अंग बनाये रखने की सफलता प्राप्ति में डॉ. मुखर्जी के योगदान को कोई नकार नहीं सकता। उन्हें किसी दल की सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता क्योंकि उन्होंने जो कुछ किया देश के लिए किया और इसी भारतभूमि के लिए अपना बलिदान तक दे दिया। ऐसे प्रखर राष्ट्रवादी के दिखाए मार्ग पर चलना भाजपा के एक एक कार्यकर्ता के लिए परम सौभाग्य की बात है.

डॉ मुखर्जी के राजनीतिक जीवन के बारे में बताते हुए भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि डॉ॰ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने स्वेच्छा से अलख जगाने के उद्देश्य से राजनीति में प्रवेश किया था। डॉ॰ मुखर्जी सच्चे अर्थों में मानवता के उपासक और सिद्धान्तवादी थे। उन्होने बहुत से गैर कांग्रेसीयों की मदद से कृषक प्रजा पार्टी से मिलकर प्रगतिशील गठबन्धन का निर्माण किया। इस सरकार में वे वित्तमन्त्री बने। इसी समय वे महान स्वतंत्रता सेनानी ‘वीर सावरकर’ के राष्ट्रवाद के प्रति आकर्षित हुए और हिन्दू महासभा में सम्मिलित हुए। मुस्लिम लीग की राजनीति से बंगाल का वातावरण दूषित हो रहा था। वहाँ साम्प्रदायिक विभाजन की नौबत आ रही थी। साम्प्रदायिक लोगों को ब्रिटिश सरकार प्रोत्साहित कर रही थी। ऐसी विषम परिस्थितियों में उन्होंने यह सुनिश्चित करने का बीड़ा उठाया कि बंगाल के हिन्दुओं की उपेक्षा न हो। अपनी विशिष्ट रणनीति से उन्होंने बंगाल के विभाजन के मुस्लिम लीग के प्रयासों को पूरी तरह से नाकाम कर दिया। इसी तरह डॉ॰ मुखर्जी ने बंगाल और पंजाब के विभाजन की माँग उठाकर प्रस्तावित पाकिस्तान का विभाजन कराया और आधा बंगाल और आधा पंजाब खण्डित भारत के लिए बचा लिया।

डॉ जायसवाल ने कहा कि डॉ॰ मुखर्जी इस धारणा के प्रबल समर्थक थे कि सांस्कृतिक दृष्टि से हम सब एक हैं। इसलिए धर्म के आधार पर वे विभाजन के कट्टर विरोधी थे। वे मानते थे कि विभाजन सम्बन्धी उत्पन्न हुई परिस्थिति ऐतिहासिक और सामाजिक कारणों से थी। राष्ट्रीय हितों की प्रतिबद्धता को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता मानने के कारण उन्होंने मन्त्रिमण्डल से त्यागपत्र दे दिया। उन्होंने एक नई पार्टी बनायी जो उस समय विरोधी पक्ष के रूप में सबसे बड़ा दल था। उन्ही के करकमलों से अक्टूबर, 1951 में भारतीय जनसंघ का उद्भव हुआ, जो आज अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं के कठिन परिश्रम से एक वट वृक्ष बन चुका है.

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