जातीय जनगणना करने से समाज का सुधार नहीं होगा, जातीय जनगणना में जो आंकड़े आयेंगे उसपर योजना बनाकर उसपर काम होगा तब सुधार होगा।
मनीष कुमार
मुंगेर । जाति जनगणना को लेकर पिछले कुछ वर्षों से तेज हुई राजनीति के बीच अब केंद्र सरकार ने भी इसकी घोषणा कर दी है। बुधवार को राजनीतिक मामलों की कैबिनेट कमिटी ने जनगणना के साथ जाति गणना को हरी झंडी दे दी है। आजादी के बाद यह पहली होगा क्योंकि अब तक कई बार जाति सर्वे तो हुए लेकिन पूरी गणना नहीं हुई। यही कारण है कि सरकार की ओर से फैसले की घोषणा के साथ फिर से राजनीतिक बयानबाजी तेज हो गई। वहीं मामले में जनसुराज पार्टी के सूत्रधार और राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने कहा कि जातीय जनगणना तो केंद्र सरकार अभी घोषित की है, बिहार में जातीय जनगणना 2 से 3 वर्ष पूर्व हो चुका हैं। यहां पर तो सवाल यह पूछा जाना चाहिए कि जो जातीय जनगणना हुआ उससे जो नतीजे निकले उसपर सरकार ने क्या किया। यही भाजपा और नीतीश की सरकार है जिन्होंने कहा कि 94 लाख गरीब परिवारों को 2-2 लाख रुपया दिया जायेगा। किसी को एक रुपया भी नहीं मिला है। जातीय जनगणना में यह बताता गया कि सिर्फ 3 प्रतिशत दलित समाज के बच्चे 12 वीं पास कर रहे है। 5 प्रतिशत से कम अतिपिछड़ा समाज के बच्चे 12 वीं पास कर रहे है। तो सरकार ने उस पर कोई कार्यवाही तो की नहीं। जातीय जनगणना करने से समाज का सुधार नहीं होगा। जातीय जनगणना में जो आंकड़े आयेंगे उसपर योजना बनाएगा उसपर काम कीजियेगा तब न सुधार होगा। किताब खरीदने से आदमी विद्वान नहीं होता है। किताब को पढ़ना पड़ेगा तब न सुधार होगा। दलितों की गणना तो 78 सालों से हो रही है। मुसलमानों की गणना 18 सालों से हो रही है। ये आंकड़े बता रहे है कि ये लोग गरीब है शैक्षणिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से अतिपिछड़े हैं लेकिन उनकी दशा नहीं सुधरी, तो सिर्फ गणना करने मात्र से सुधार नहीं होगा। राजनीतिक रोटी सेक कर समाज को बांट कर सामाजिक उन्माद फैला कर वोट लेने का अगर सोच है तो ये सफल नहीं होने वाला है पाकिस्तान और चाइना के लड़ाई में बिहार को मत घसीटये, देश की विदेश नीति और सुरक्षा के लिए केंद्र सरकार हैं। जिन्हें चुनकर लोगों ने वहां बैठाया है। सरकार में लोग बैठे और विपक्ष में भी लोग बैठे हैं उनका काम है कि देश की सुरक्षा सुनिश्चित करें। पूरी जनता उनके साथ है। लेकिन यहां पर रोजगार की बात हैं, पढ़ाई की बात है। प्रशांत किशोर ने कहा कि आप देख रहे है कि जनता क्या चाहती है, सारी जनता बदलाव चाहती है। लालू नीतीश के 35 साल के कुशासन से मुक्ति चाहती है। बिहार में लोग जनता का राज चाहती है जनसुराज चाहते है। अपने बच्चों के लिए शिक्षा और रोजगार चाहते है। जो लोग कहता है कि बिहार में हर आदमी जाति पर वोट देता है आप देखिए इसमें किस जाति के लोग नहीं है। बहुत हो गया जात पात बहुत हो गया हिन्दू मुसलमान, हमलोगों को अपने बच्चों के लिए पढ़ाई चाहिए, रोजगार चाहिए। जातीय जनगणना तो केंद्र सरकार अभी घोषित की है, बिहार में जातीय जनगणना 2 से 3 वर्ष पूर्व हो चुका हैं। यहां पर तो सवाल यह पूछा जाना चाहिए कि जो जातीय जनगणना हुआ उससे जो नतीजे निकले उसपर सरकार ने क्या किया। यही भाजपा और नीतीश की सरकार है जिन्होंने कहा कि 94 लाख गरीब परिवारों को 2-2 लाख रुपया दिया जायेगा। किसी को एक रुपया भी नहीं मिला है। जातीय जनगणना में यह बताता गया कि सिर्फ 3 प्रतिशत दलित समाज के बच्चे 12 वीं पास कर रहे है। 5 प्रतिशत से कम अतिपिछड़ा समाज के बच्चे 12 वीं पास कर रहे है। तो सरकार ने उस पर कोई कार्यवाही तो की नहीं। जातीय जनगणना करने से समाज का सुधार नहीं होगा। जातीय जनगणना में जो आंकड़े आयेंगे उसपर योजना बनाएगा उसपर काम कीजियेगा तब न सुधार होगा। किताब खरीदने से आदमी विद्वान नहीं होता है। किताब को पढ़ना पड़ेगा तब न सुधार होगा। दलितों की गणना तो 78 सालों से हो रही है। मुसलमानों की गणना 18 सालों से हो रही है। ये आंकड़े बता रहे है कि ये लोग गरीब है शैक्षणिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से अतिपिछड़े हैं लेकिन उनकी दशा नहीं सुधरी, तो सिर्फ गणना करने मात्र से सुधार नहीं होगा। राजनीतिक रोटी सेक कर समाज को बांट कर सामाजिक उन्माद फैला कर वोट लेने का अगर सोच है तो ये सफल नहीं होने वाला है पाकिस्तान और चाइना के लड़ाई में बिहार को मत घसीटये, देश की विदेश नीति और सुरक्षा के लिए केंद्र सरकार हैं। जिन्हें चुनकर लोगों ने वहां बैठाया है। सरकार में लोग बैठे और विपक्ष में भी लोग बैठे हैं उनका काम है कि देश की सुरक्षा सुनिश्चित करें। पूरी जनता उनके साथ है। लेकिन यहां पर रोजगार की बात हैं, पढ़ाई की बात है।