लव कुमार मिश्रा
पटना; बिहार सरकार ने अदालतों पर बोझ कम करने और जेलों में भीड़भाड़ को कम करने के उद्देश्य से बिहार शराबबंदी और उत्पाद शुल्क अधिनियम में कुछ संशोधनों का प्रस्ताव रखा है। बिहार विधानमंडल के आगामी बजट सत्र में पेश किए जाने वाले मसौदा संशोधनों के अनुसार, शराबियों के संक्षिप्त परीक्षण के लिए अधिनियम की धारा 37 में एक नया प्रावधान किया जाएगा। शराब के बूटलेगर्स और अंतर्राज्यीय ट्रांसपोर्टरों को कड़ी सजा देने के लिए कानून में संशोधन किया जा रहा है । इस बीच, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह नगर नालंदा के सोहसराय में जहरीली शराब की घटना में बिहारशरीफ अस्पताल में दो और लोगों की मौत के साथ मरने वालों की संख्या बढ़कर 15 हो गई ।

पहली बार पीने वाले शराबियों को जेल जाने से राहत दी जाएगी और एक कार्यकारी मजिस्ट्रेट द्वारा मौके पर ही जुर्माना लगाया जाएगा । जुर्माना अदा करने पर शराबियों को डिप्टी कलेक्टर द्वारा ही मुक्त किया जाएगा और वे जेल जाने से बच जायेंगे । 2018 में पिछले संशोधन में, अपराधियों को 50,000 रुपये के जुर्माने के भुगतान के बाद मुक्त करने की अनुमति दी गई थी, जिससे केवल अमीरों को फायदा हुआ । मगर अब पहली बार शराबियों को विशेष अदालतों द्वारा जेल भेजे जाने से मुक्ति मिल सकेगी ।

शराब की बोतलों के साथ जब्त किए गए वाहनों को अभी की तरह जब्त नहीं किया जाएगा । कार्यकारी मजिस्ट्रेट मौके पर ही वाहनों को छोड़ने की अनुमति देंगे। प्रस्तावित संशोधनों के अनुसार, संशोधित कानून अधिनियम के तहत सभी लंबित मामलों पर लागू होंगे । इससे जेलों में बंद हजारों लोगों की रिहाई और पूर्व में जब्त किए गए वाहनों को भी रिहा करने में आसानी होगी ।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार पहली बार पीने वाले या कम पीने वाले शराबियों के लिए राहत का प्रस्ताव है । शराब के बूटलेगर्स और अंतर्राज्यीय ट्रांसपोर्टरों को कड़ी सजा देने के लिए कानून में संशोधन किया जा रहा है। उनके अपराध को संगठित अपराध के रूप में परिभाषित किया जा रहा है और शराबियों पर अपराध नियंत्रण अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया जाएगा और यह अपराध छह महीने के लिए गैर-जमानती हैं।

पिछले हफ्ते, सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ ने अधिनियम के तहत गिरफ्तार 40 लोगों को जमानत की अनुमति देते हुए, कानून के प्रावधानों के दुरुपयोग के लिए राज्य सरकार की आलोचना की थी और पटना उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए जमानत आदेशों में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था। शीर्ष अदालत ने टिप्पणी की थी कि हत्या के मामलों के आरोपियों को भी जमानत मिल जाती है , लेकिन बिहार के शराबबंदी कानूनों में शराबियों को जमानत नहीं मिलती । सुप्रीम कोर्ट ने अधीनस्थ न्यायालयों पर खेद व्यक्त किया था और पटना उच्च न्यायालय अधिनियम के तहत मामलों के बोझ तले दब गया था। पटना हाईकोर्ट के औसतन 15 जज आबकारी अधिनियम के अपराधियों की जमानत याचिकाओं पर सुबह से शाम तक सुनवाई करते रहते हैं । शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि बिहार की अदालतें आबकारी अधिनियम के मामलों के बोझ से अन्य मामले ‘ठप’ हैं। पटना उच्च न्यायालय में अधिनियम के तहत 57159 नियमित और अग्रिम जमानत याचिकाएं लंबित हैं । शीर्ष अदालत के अनुसार, अधिनियम के तहत बड़ी संख्या में मामलों के कारण अदालतों के कामकाज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है ।
इस बीच एनडीए नेताओं ने भी एक्ट में संशोधन की मांग की है । राज्य भाजपा अध्यक्ष संजय जायसवाल ने कहा कि व्यक्तिगत रूप से पांच मामलों को जानते हैं जिनमें परिवारों पर एक बोतल शराब के लिए मामला दर्ज किया गया था । उन्होंने याद दिलाया कि नई दिल्ली से सिलीगुड़ी के एक परिवार को नए साल के जश्न के लिए गिरफ्तार किया गया था क्योंकि उनकी कार में एक शराब की बोतल मिली थी।
पूर्व मुख्यमंत्री, जीतन राम मांझी ने बार-बार अधिनियम की समीक्षा की मांग की है और आरोप लगाया है कि केवल गरीब लोगों को अधिनियम के तहत जेल भेजा गया था । इस बीच, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह नगर नालंदा के सोहसराय में जहरीली शराब की घटना में बिहारशरीफ अस्पताल में दो और लोगों की मौत के साथ मरने वालों की संख्या बढ़कर 15 हो गई । पुलिस ने जिला मुख्यालय के बाहरी इलाके सोहसराय में अवैध शराब के धंधे में 34 लोगों को गिरफ्तार किया है ।

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