जयप्रकाश-लोहिया-जाॅर्ज की वैचारिक राजनीति के वाहक नीतीश कुमार
  बशिष्ठ नारायण सिंह
संसद सदस्य, राज्यसभा

समुन्नत भारतवर्ष के लिए आजादी से पहले एक सपना महात्मा गाँधी ने देखा था। वैसा भारत, जो आत्मनिर्भर हो। जहाँ धर्म, जाति और वर्ण के आधार पर कोई भेदभाव न हो। मुझे कहने में संकोच नहीं कि समतामूलक समाज की स्थापना के साथ जिस रामराज्य की परिकल्पना गाँधी ने की थी, वैसी सामाजिक-निर्मिति उनके रहते न हो सकी। बाद में जयप्रकाश नारायण और लोहिया सरीखे समाजवादियों ने गाँधी के स्वप्न को साकार करने की दिशा में जरूर आगे बढ़े। समाज और हाशिये पर पड़े आबादी को उन्होंने हिम्मत दी और इस रूप में जेपी और लोहिया सामाजिक क्रांति के अग्रदूत बनकर भारत के नक्शे पर उभरकर आए। जेपी और लोहिया की राजनीति में गाँधी कुछ इस तरह घुले-मिले से थे कि उन्हें पृथक करना बड़ा मुश्किल कार्य है।
गाँधी केवल अँग्रेजी राज से मुक्ति मात्र के लिए नहीं लड़ रहे थे। वह अपने समय में गरीबी, निरक्षरता, अस्पृश्यता जैसी समाजिक कुरीतियों से भी लड़ रहे थे। गाँधी ने अपनी कृति ‘मेरे सपनों का भारत’ में लिखा है कि, मैं भारत को स्वतंत्र और बलवान देखना चाहता हूँ, भारत के लिए गाँधी का सपना देश में स्वराज स्थापित करने का था, जो किसी भी जाति या धार्मिक उद्देश्य को मान्यता नहीं देता है। आज यह देश गाँधी के मूल्यों पर कितना खड़ा उतर सका, यह विवेचनीय है। सच्चे अर्थों में गाँधी हर व्यक्ति के आँखों से आँसू पोछना चाहते थे, वह चाहते थे कि हम भारत के लोग हमारे देश के लिए शांति के वाहक के रूप में कार्य करें और हम अपने देश के लिए अंतिम सांस तक संघर्ष करें। उनका स्वप्न था कि भारत में ग्रामीण उद्योगों और कुटीर उद्योगों पर आधारित अर्थव्यवस्था हो। नया भारत स्वदेशी संकल्पना पर आधृत होकर शिक्षित और समुन्नत राष्ट्र के रूप में विकसित हो।
गाँधी के बाद आजाद मुल्क में एक सपना जयप्रकाश ने भी देखा, वह सपना गाँधी के सपने का ही सुचिंतित विस्तार था। सम्पूर्ण क्रांति की बागडोर संभाले जयप्रकाश ने कभी कहा था कि ‘‘यह क्रांति है मित्रों और सम्पूर्ण क्रांति है। विधानसभा का विघटन मात्र इसका उद्देश्य नहीं है। यह तो महज मील का पत्थर है, हमारी मंजिल तो बहुत दूर है और हमें अभी बहुत दूर तक जाना है। इसी कड़ी में आगे जययप्रकाश ने अपने समय की सत्ता की आलोचना करते हुए कहा कि ष्भ्रष्टाचार मिटाना, बेरोजगारी दूर करने, शिक्षा में क्रांति लाना ऐसी चीजें हैं, जो आज की व्यवस्था से पूरी नहीं हो सकती है। क्योंकि यह सब इसी व्यवस्था की उपज है और वह तभी पूरी हो सकती है जब सम्पूर्ण व्यवस्था बदल दी जाए और सम्पूर्ण व्यवस्था के परिवर्तन के लिए क्रांति, सम्पूर्ण क्रांति आवश्यक है। इस व्यवस्था ने जो संकट पैदा किया है वह सम्पूर्ण और बहुमुखी है और इसका समाधान भी सम्पूर्ण और बहुमुखी होगा। व्यक्ति का अपना जीवन समाज की रचना बदले, राज्य की व्यवस्था बदले तब कहीं बदलाव पूरा होगा और मनुष्य सुख और शांति के मुक्तजीवन जी सकेगा।
जययप्रकाश नारायण ने सम्पूर्ण क्रांति में राजनीतिक, आर्थिक, समाजिक, बौद्धिक, शैक्षणिक और आध्यात्मिक क्रांति को शामिल कर समाज के नवनिर्माण का बीड़ा उठा लिया। और यही कारण है कि आजादी और देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था की स्थापना के बाद महात्मा गाँधी की परंपरा को आगे ले जाने में जिन नेताओं की भूमिका को सबसे ज्यादा याद किया जाता है, उनमें जययप्रकाश सबसे महत्वपूर्ण हैं। एक समय में महात्मा गाँधी भी उनके विचारों से इतने प्रभावित थे कि उन्होंने सार्वजनिक रूप से यह घोषणा की थी कि समाजवाद के बारे में जो जयप्रकाश को नहीँ जानते हैं, उसे इस देश में दूसरा भी कोई नहीं जानता है। भारतीय राजनीति में जेपी ने अपने आपको ऐसे शख्स के रूप में पेश किया , जिसके जीवन का मूल ध्येय मात्र जनकल्याण था। आजादी के बाद गाँधी के सपनों को एक ओर यदि जययप्रकाश अपनी कोशिशों से साकार करने में व्यस्त रहे वहीँ दूसरी ओर  राममनोहर लोहिया भी अपने राजनीतिक प्रदेयों की बदौलत परोक्ष-अपरोक्ष रूप से गाँधी के विचारों को ही आगे बढ़ा रहे थे।
लोहिया का समाजवादी शिल्प औद्योगिक पूँजीगत अर्थव्यवस्था में मौजूद और इसके द्वारा उत्पन्न असमानताओं की प्रतिक्रिया के रूप में सामने आया। लोहिया ने अपने अनुभव में ऐसी सात प्रकार की असमानताओं को चिह्नित किया , जिनसे एक साथ लड़ने की आवश्यकता थी। स्त्री और पुरुष के बीच असमानता, रंग के आधार पर असमानता, जाति के आधार पर असमानता, कुछ देशों के द्वारा दूसरे देशों पर औपनिवेशिक शासन, आर्थिक असमानता, नागरिक स्वतंत्रता के लिए क्रांति और सत्याग्रह के पक्ष में हथियार समर्पण अर्थात अहिंसा का अनुगमन ,ये सात क्रांतियां लोहिया के समाजवादी दर्शन में सप्तक्रांति के रूप में विख्यात होकर राजनीति की मुख्य धुरी बनी। इन सातों संकल्प में बहुत हद तक गांधी और जेपी के विचार झाँकते हुए हमें दिखाई पड़ते हैं। इससे पृथक लोहिया ने किसानों-मजदूरों के हक में श्दाम बांधों’ का नारा दिया। पर्यावरण बचाओ के लिए कई मंचों पर संघर्ष किया। भाषा-नीति पर स्पष्ट रूप से अपने विचार को अभिव्यक्त किया। गाँधी, जेपी और लोहिया के बाद इस मुल्क में समाजवाद के सिद्धांतों पर चलते हुए समाज के दिन हीन , शोषित-पीड़ित, असहाय, किसान-मजदूर के लिए यदि किसी नेता ने संघर्ष का रास्ता चुना तो वे थे-जाॅर्ज फर्नांडिस। उनकी यात्रा लोकतंत्र की किताब का एक मुकम्मल पाठ है।
आपातकाल के खिलाफ उनके भूमिगत संघर्ष ने उन्हें एक प्रमुख विपक्षी नेता के रूप में पहचान दी। बिखरे बाल और हाथों में बेड़ी वाली तस्वीर उस दौर की सबसे यादगार तस्वीरों में एक है। 1967 ई में दिग्गज नेता एस के पाटिल को लोकसभा चुनाव में हराकर श्द जाॅइंट किलर’ के रूप में वे विख्यात हो गये। 1974 ई में कुशल मजदूर नेता के रूप में रेलवे हड़ताल का नेतृत्व कर सीधे सरकार को चुनौती दी अपने जीवन के शुरुआती दिनों में  मुम्बई के रेहड़ी-पटरी पर सोनेवाले जाॅर्ज ने भारतीय राजनीति में एक ऐसे रोचक अध्याय को जन्म दिया, जिसकी मूल चिंता में मजदूर, टैक्सी ड्राइवर, फैक्ट्री कर्मचारी आदि थे। जाॅर्ज की इसी राजनीति ने उन्हें श्फायर ब्रांड मजदूर नेता’ के रूप में स्थापित कर दिया। इतना ही नहीँ ,जाॅर्ज ने मजदूरों के लिए सहकारी बैंक तक की स्थापना कर डाली। देश भर में मजदूरों के मंच पर केवल जाॅर्ज ही जाॅर्ज छाए हुए थे।

जेपी, लोहिया और जाॅर्ज ने एक सच्चे समाजवादी के रूप में अपने अपने समय में जिस शिल्प को गढ़ा था, उसी शिल्प को श्री नीतीश कुमार बढ़ा रहे हैं। और यह विस्तार उनकी जिद्द है। इन महान विभूतियों की कड़ी में नीतीश कुमार इसलिए उल्लेखनीय हैं कि जहाँ  एक ओर वे जेपी और लोहिया के सामाजिक जागरण, नर-नारी समानता, व पर्यावरण की चिंता को लेकर आगे बढ़ रहे हैं, वहीँ दूसरी ओर गाँधी के शराब बंदी, ग्राम पंचायत की मजबूती, स्वरोजगार आदि मुद्दों पर काफी गंभीर दिखाई देते हैं। लगातर नीतीश कुमार ने अपने कार्यक्रमों के जरिए अंधविश्वास, पाखण्ड, और सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार किया है। बाल-विवाह, दहेजबन्दी जैसी कुरीतियों से लबलबाते बिहार को नीतीश कुमार ने लगभग मुक्त कर लिया है। आज के नीतीश कुमार की यह बेमिसाल उपलब्धि है कि अपने कमिटमेंट के कारण वे समाजवादियों की सूची में अपनी खास जगह बना ली है। समाजवादी राजनीति की भविष्य की व्याख्या नीतीश कुमार के बिना अधूरी मानी जाएगी। देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने महान समाजवादियों के फेहरिस्त में नीतीश कुमार को चिह्नित करते हुए समाजवाद के जिन मूल सिद्धांतों और सिद्धांतों के क्षरण की जो व्याख्या की है, वह समय के मुताबिक प्रसंगानुकूल है। यह बात सच है कि कुछ लोगों के लिए अब समाजवाद परिवारवाद का पर्याय है। उनकी चिंता में आम नागरिक कहीं नहीँ है। नीतीश कुमार के नेतृत्व में जदयू, एनडीए के महत्वपूर्ण हिस्सा के रूप में  गाँधी, जेपी, लोहिया और जाॅर्ज के पद-चिह्नों पर चलकर नई लकीर खींचेगा, इसमें कोई आशंका नहीं है।

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