समृद्ध मंच एवं शब्दों के सारथियों के बौद्धिक महाकुम्भ में प्रबुद्ध श्रोताओं ने लगाई डुबकी

स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय की स्मृति में प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में काव्य गोष्ठी

By SHRI RAM SHAW

नई दिल्ली। प्राची के निरभ्र कोने से लौह-पुरुष झाँक रहा था। दिवस का अवसान भी समीप था। हाड़-मांस के खंडहर में अपनी रूह छिपाये दाता की कृपादृष्टि पर स्वयं को समर्पित कर प्रश्रय के दिन गिन रहे याचक की मानिंद प्रबुद्ध श्रोता समृद्ध मंच एवं शब्दों के सारथियों के बौद्धिक महाकुम्भ में डुबकी लगाकर कतिपय भावों का रसास्वादन कर खुद को निढाल और निहाल कर रहे थे। सरस्वती वंदना से शुभारम्भ हुई शब्द-सरिता 180 मिनटों तक निर्विघ्न प्रवाहित होते हुए अविस्मरणीय हो गयी।

साहित्य के क्षेत्र में तेजी से उभर रही संस्था साउथ एशियन फ्रैटरनिटी के तत्वावधान में दिल्ली के प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में शनिवार (3 फरवरी) को स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय की स्मृति में एक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें देश-विदेश के प्रतिष्ठित साहित्यकार, ग़ज़लकार, गीतकार और शायर शामिल हुए। कार्यक्रम की अध्यक्षता मूर्धन्य गीतकार एवं लोकसभा सचिवालय के पूर्व वरिष्ठ अधिकारी शिवकुमार बिलगरामी ने की। कार्यक्रम में अंतरराष्ट्रीय (फ्लोरिडा, अमेरिका) ख्यातिलब्ध गीतकार कादम्बरी आदेश श्रीवास्तव मुख्य अतिथि के रूप में विद्यमान रहीं। वरिष्ठ पत्रकार (डीडी उर्दू) व ग़ज़लकार नज्म इक़बाल; दिल्ली विश्वविद्यालय में संगीत प्राचार्य विनीत गोस्वामी और जाने-माने शायर खुमार देहलवी कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि रहे। कार्यक्रम का संचालन कालजयी साहित्यिक रचना बहुचर्चित पुस्तक “गीत गोदावरी” के रचयिता ओंकार त्रिपाठी ने किया। उनकी निर्बाध प्रस्तुति ने सभागार में उपस्थित सभी साहित्यकारों को मंत्रमुग्ध कर दिया।

शब्द ब्रह्म होते है और एक सधे हुए श्रेष्ठ साधक की भांति ऊषा श्रीवास्तव ने सरस्वती वंदना के पाठ से कार्यकम का शुभारम्भ किया। उन्होंने अपनी रचना – “हमारी मांग सिन्दूरी सजाना है चले आओ, तुम्हारी याद आई है, पुकारा है, चले आओ” से खूब तालियां बटोरी। किरण यादव ने “सम्मुख आकर प्रश्न खड़ा है” गाकर वाहवाही लूटी। पंडित प्रेम बरेलवी ने “ज़िन्दगी से उजाला ही ले गया, आँख मेरी आँख वाला ही ले गया” गाकर महफ़िल में चार चाँद लगा दिया, तो डॉक्टर राकेश पांडेय ने “पिता के आँगन में हर बेटी अच्छी होती है” पढ़कर सबको भावुक कर दिया।

“हाँ, मैं हिंदुस्तानी हूँ” गाकर अवधेश तिवारी ने सुधिजनों में जोश भरने का प्रयास किया। युवा कवि गौरव कुमार ने “कटी पतंग” से जीवन-दर्शन कराया। खुमार देहलवी ने “होश अपने गंवाए फिरती है, किसकी इज़्ज़त छिपाये फिरती है ” से श्रोताओं को सोचने पर विवश किया। अब बारी थी आलोक अविरल की जिन्होंने मोहब्बत का पैगाम कुछ यूं दिया – “दिल की आँखों में अगर नमी होगी, नफरतों में तब ही कमी होगी।” नज्म इक़बाल ने “मेरे दिल को है तेरी जुस्तजू, तू नज़र में तेरा जमाल है” को तरन्नुम में पढ़कर हसीं शाम को सुरमयी बनाया।

इसके बाद डॉक्टर रियाज़ मालिक, नईम हिंदुस्तानी, दिनेश आनंद, पीयूष, अल्पेश तिवारी, अंजलि अदा, अनूप, लता, राजेश श्रीवास्तव, ओम प्रकाश, रणविजय राव, दर्शिनी, परिणीता सिन्हा, उमेश प्रताप और राम अवतार बैरवा ने अपनी सुमधुर रचनाओं से भाव विह्वल कर दिया। बैरवा ने “दूर गाँव के कोने पर, हिंदी की छोटी छोटी बोली रोती है”; डॉक्टर विनीत गोस्वामी (अनुराग) ने “मेरे मन का राग न फूटा”; नीना सहर ने “एक फनकार हम सभी में है”, और फ्लोरिडा, अमेरिका से आईं कादम्बरी आदेश श्रीवास्तव ने “नमो नमो” गाकर इस आयोजन को अविस्मरणीय बना दिया।

सार्थक जीवनमूल्यों से जुड़ी हुई अपनी कुछ कृतियों के वाचन से ओंकार त्रिपाठी और शिवकुमार बिलगरामी ने सभी आगंतुकों को धन्यवाद ज्ञापित करते हुए काव्य गोष्ठी में शामिल होने और इसे यादगार बनाने के लिए आभार व्यक्त किया। त्रिपाठी ने समारोह समापन के अवसर पर आसन्न मधुरिम वासन्ति बेला का स्मरण एवं आह्वान किया – “फाग में मन विहग सब विलासी हुए, भाव सारे हृदय के प्रवासी हुए…सांझ ने जो अधर पर अधर धर दिया, शब्द मथुरा हुए गीत काशी हुए।” भाषा, भाव और शिल्प की दृष्टि से कवि की कल्पना की उड़ान को रेखांकित करते हुए बिलगरामी ने इन पंक्तियों के माध्यम से प्रेम तत्व को स्थापित किया – “जब हम तन में नहीं रहेंगे, तब हम अगणित बार मिलेंगे, जीवन के इस पार नहीं तो, जीवन के उस पार मिलेंगे।”

बिलगरामी ने कहा, “आज भौतिकता का युग है। लोग अंधी दौड़ में शामिल हैं। यंत्र के इस युग में मनुष्य भी यंत्रवत हो गया है। यंत्र में संवेदना नहीं होती, अब मनुष्य में भी नहीं रह गई है। हर व्यक्ति आत्मकेंद्रित होता जा रहा है। वह अनजाने में अकेला होता जा रहा है। फिर भी अकेलेपन की इस टूटन घुटन में भौतिकता का सुकून है। वह प्रेम करता है, पर धन से। धन की तुलना में वह अपने तन को भी गौण मानने लगा है। वह स्वयं से भी प्रेम नहीं कर पा रहा है, किसी और से क्या करेगा। वह शिक्षित है, भौतिक रूप से संपन्न है, पर मानवता के सारे मापदंड धर्म, नैतिकता, सभ्यता उसे बेमानी से लगने लगे हैं। कहाँ खो गया है मनुष्य के प्रति प्रेम, परिवार के प्रति प्रेम, देश के प्रति प्रेम। मनुष्य चांद पर पहुंचा, मंगल पर पहुंचा, बड़ा विकास किया। पर प्रेम घट गया, घटता ही चला गया, अब भी घट रहा है। इसमें कोई नया आविष्कार नहीं हुआ।”

वरिष्ठ साहित्यिक गीतकार ओंकार त्रिपाठी ने कुछ यूं अपने मनोभाव प्रकट किये, “आज निष्ठायें व्यक्तिवादी हो गई हैं। सामाजिक मूल्य तिरोहित हो रहे हैं। समाचार पत्र संघर्ष, हिंसा, विवाद, मतभेद से भरे हैं। जीवन मूल्य पराजित हो रहे हैं, संस्कार संस्कृति का क्षरण हो रहा है और मानवता शर्मसार हो रही है। हर किसी के पास आंख है पर वह स्वार्थ की परिधि से बाहर नहीं देख पा रहा है। शायद देखना ही नहीं चाहता। वह भूल गया है कि प्रेम ही जीवन का मूल है। प्रेम के बिना जीवन का कोई अर्थ नहीं। हर कोई इसे पाना तो चाहता है, पर सिर्फ दूसरों से। स्वयं कुछ नहीं देना चाहता। इसी संवेदना, अपनेपन, प्यार की तलाश सबको है, आपको भी है। इसी मानवीय प्यार की तलाश मुझे भी है।”

 

By ramshaw

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