विधानमंडल के दोनों सदनों में हुई लोकतंत्र की हत्या
विधानसभा अध्यक्ष की मनमानी और सरकार की दिखी संवेदनहीनता
नव राष्ट्र मीडिया
पटना 27 जुुलाई
माले विधायक दल ने कहा कि बिहार में माॅनसून सत्र में दोनों सदनों में लोकतंत्र की हत्या हुई. विधान परिषद् में जहां राजद एमएलसी सुनील सिंह की सदस्यता खारिज करके एक गलत परंपरा की शुरूआत की गई, वहीं विधानसभा में भाजपा कोटे के अध्यक्ष ने अपनी मनमानी चलाई और तानाशाही रवैये का परिचय दिया. विधानसभा के भीतर विपक्ष के किसी भी सवाल को सही तरीके से न तो पटल पर आने दिया गया और न ही सरकार ने उसके प्रति कोई संवेदनशीलता दिखलाई.
विधानमंडल के माॅनसून सत्र की समाप्ति के उपरांत माले विधायक दल का आज एक संवाददाता सम्मेलन में ये बातें कही गई, । प्रेस वार्ता में जिसमें विधायक दल के नेता महबूब आलम, उपनेता सत्यदेव राम, विधान पार्षद शशि यादव, विधायक महानंद सिंह, अजीत कुमार सिंह और शिवप्रकाश रंजन उपस्थित थे. उन्होंने कहा कि भाकपा-माले और महागठबंधन ने सत्र के दौरान बिहार के विशेष राज्य का दर्जा, राज्य में अपराध-सामंती हिंसा-बलात्कार-कानून व्यवस्था-पुलों के ढहने – भ्रष्टाचार सहित सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण के उपरांत 95 लाख गरीब परिवारों को 2 लाख रु. की सरकारी घोषणा को अमलीजामा पहनाने, कृषि के लिए 20 घंटे बिजली, भूमिहीनों को 5 डिसमिल जमीन, आशा-रसाइसयों-आंगनबाड़ी के लिए सम्मानजनक मानदेय की मांग आदि सवालों पर संयुक्त रूप से सरकार का घेराव किया।
लेकिन सरकार बिहार और बिहार की जनता के जरूरी सवालों से मुंह चुराती नजर आई.
विशेष राज्य के दर्जे पर चर्चा कराने से सरकार का भाग खड़ा होना यह दिखलाता है कि भाजपा ने बिहार के साथ घोर विश्वासघात किया है और जदयू ने उसके समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया है. जदयू दावा कर रही है कि केंद्रीय बजट में बिहार को जो कुछ दिया गया, उसका चौतरफा डंका बज रहा है. माले विधायक दल ने याद दिलाया कि 2015 में प्रधानमंत्री मोदी ने 1 लाख 25 हजार करोड़ रु. की विशेष पैकेज की बात कहीं थी, लेकिन बजट 2024 में कुछ लंबित प्रस्तावों को मिलाकर कुल 26 हजार करोड़ रु. का तथाकथित विशेष पैकेज मिला है. यह विशेष राज्य का विकल्प नहीं है. ऐसी स्थिति में सरकार विशेष राज्य के दर्जे पर चर्चा कराने से भाग ही खड़ी हो सकती थी.
दलितों-अतिपिछिड़ों और पिछड़ों के लिए 65 प्रतिशत आरक्षण के प्रावधान को संविधान की 9 वीं अनुसूची में शामिल किए जाने के सवाल पर बिहार सरकार पूरी तरह बेनकाब हो गई. लेकिन उससे भी दुखद यह रहा कि इस महत्वपूर्ण प्रस्ताव पर विधानसभा अध्यक्ष ने वोटिंग कराने से इंकार कर दिया और सदन के अंदर विपक्ष की आवाज को दबा दी.
पटना विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिलाने के सवाल पर सदन से प्रस्ताव लेने का गैरसरकारी संकल्प पर शिक्षा मंत्री के गोलमोल जवाब से भाजपा-जदयू का असली चेहरा खुलकर सामने आ गया कि वे पटना विवि को केंद्रीय विवि को दर्जा दिलाने के सवाल पर कहीं से भी गंभीर नहीं है.
माले विधायक दल ने कहा कि जाति आधारित सर्वेक्षण के उपरांत राज्य के तकरीबन 95 लाख महागरीब परिवारों को लघु उद्यमी योजना के तहत 2 लाख रु. की सहायता राशि की सरकारी घोषणा की बात मुख्यमंत्री ने सदन के अंदर तो कही, लेकिन हकीकत में कुछ नहीं हो रहा है. इस राशि के लिए 72 हजार रु. से कम वार्षिक आमदनी के आय प्रमाण की शर्त लगा दी गई है जबकि प्रशासन 1 लाख रु. से नीचे का प्रमाण पत्र जारी नहीं कर रहा है. जब सरकार के पास पहले से 95 लाख महागरीब परिवारों का डाटा उपलब्ध है तो फिर आय प्रमाण पत्र क्यों मांगा जा रहा है? सरकार की ओर से जारी लघु उद््यमों की सूची में पशुपालन जैसा महत्वपूर्ण क्रियाकलाप शामिल ही नहीं है, जो गरीबों के जीवन-जिंदगानी का सबसे बड़ा सहारा है. सरकार भाकपा-माले के इस प्रश्न पर कोई जवाब नहीं दिया.
नहरों के अंतिम छोर तक पानी की पहुंच और खेती के लिए 20 घंटे की बिजली की मांग आदि पर भी सरकार का रूख बेरूखी का रहा.