रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान में सात दिवसीय “रचनात्मक लेखन कार्यशाला” का छठवां दिन

झारखण्ड ब्यूरो

रांची : “रचनात्मक लेखन कार्यशाला” के छठे दिन स्वागत संबोधन में रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान के निदेशक और साहित्यकार रणेद्र ने हिंदी साहित्य में समीक्षा लेखन पर अपनी बात रखी। उन्होंने कहा, हिंदी साहित्य की समीक्षा बहुत ईमानदारी की समीक्षा नहीं है।अति प्रशंसा नए रचनाकर को बर्बाद करती है।
हिंदी साहित्य के वरिष्ठ आलोचक और कवि विजय बहादुर सिंह ने ‘आलोचना और रचना के संबंध’ विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होंने बताया,आलोचना और समीक्षा दोनों एक ही चीज है।
आलोचना लेखन के बारे में कहा कि एक आलोचक की शब्दों की कीमत उसके व्यक्तित्व से जुड़ी होती हैं। एक आलोचक को रसिक और कवि मिजाज होना जरूरी है।
नए लेखकों को लेखनी के बारे में समझाते हुए कहा कि कला नकल की नकल नहीं, यह एक प्रतिसृष्टि है। कला फिर से संसार को रचने और देखने की दृष्टि है।
काव्य रचना के बारे बात करते हुए उन्होंने कहा कि कविता की यात्रा आदमी से इंसान होने की यात्रा है।
उन्होंने अपने व्याख्यान के दौरान हिंदी के कई मशहूर आलाचकों के आलोचना लेखन की विधि पर विस्तार से चर्चा की।
साहित्य की कार्यशाला में प्रसिद्ध कन्नड़ फिल्म कांतारा दिखाई गई।
रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान के निदेशक और साहित्यकार रणेंद्र ने फिल्म प्रदर्शन के बाद कहा कि आदिवासी पुरखा देवता का अद्भुत और सजीव चित्रण करती यह फिल्म जमीन बचाने की कहानी को एकदम नए ढंग से प्रस्तुत करती है।
युवा आदिवासी संगीतकार गुंजल इकीर मुंडा ने कहा कि वर्तमान समय के अखरा में आदिवासी गीत बजना बंद हो गए हैं। नए आदिवासी रचनाकारों को नए वक्त के हिसाब से आदिवासी गीत रचने, गढ़ने की जरूरत है।
डॉ.सावित्री बड़ाइक ने समीक्षा और पुस्तक संपादन की बारीकियों को प्रतिभागियों को बताया।
उन्होंने यह भी बताया कि आदिवासी कथा लेखन का इतिहास काफी पुराना है। नए लेखकों और शोधकर्ताओं को पुराने लेखों को ढूंढ कर पढ़ने की आवश्यकता है।
डॉ.पारुल खलखो ने आदिवासी जीवन और किरदारों को उपन्यास में ढालने की प्रक्रिया बताई।
निरंजन कुजूर ने सिनेमा कार्यशाला की कक्षा में कन्नड़ फिल्मकार गिरीश कसेरवाली की फिल्में द्वीपा और गुलाबी टॉकीज पर विशेष बातचीत की।प्रतिभागियों को सबसे पहले फिल्म ‘गुलाबी टॉकीज’दिखाई गई। उन्होंने कहा कि गिरीश कसेरवाली की फिल्में आदिवासी, दलित और अल्पसंख्यक समाज की कहानी को परदे पर दिखाता है।
निरंजन कुजूर ने अपनी शॉर्ट फिल्म का एक दृश्य प्रदर्शित कर नए फिल्ममेकर्स को नॉन एक्टर्स के साथ काम करने के गुर बताए।
राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित फिल्ममेकर बीजू टोप्पो ने सिनेमेटोग्राफी की कक्षा ली।
उन्होंने फिक्शन और डॉक्यूमेंट्री निर्माण के अंतर को प्रतिभागियों को समझाया।
उन्होंने कैमरा से कहानी कहने के तरीके प्रतिभागियों से साझा की।
उन्होंने अलग-अलग कैमरा शॉट्स के जरिए एक कहानी को कहने और दर्शकों पर उसके प्रभाव को फिल्म छात्रों को अच्छे से समझाया। इस कक्षा में दो बीघा जमीन फिल्म प्रदर्शित की गई।
पटना से आए वरिष्ठ अनुवादक यादवेंद्र जी ने अनुवाद की कक्षा में कहा कि अनुवाद एक साहित्यिक दायरे में सीमित प्रक्रिया नहीं। उन्होंने इस दौरान अपने द्वारा अनुवाद की हुई फिलिस्तीन की एक कविता सुनाई और अनुवाद करने की प्रक्रिया पर प्रतिभागियों से विशेष चर्चा की।

मौके पर धर्मेंजय हेमब्रम की ओल चिकी लिपि में लिखे कविता संग्रह “दुलार रिएक मेटदाक”, रुद्र चरण मांझी और ज्ञानती गोंड द्वारा संपादित कविता संग्रह “समकालीन आदिवासी कविताएं” नामक किताबों का विमोचन किया गया। उक्त अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार विजय बहादुर सिंह,साहित्यकार यादवेंद्र जी, डॉ.शांति खलखो,प्रो पारुल खलखो, डॉ.पार्वती तिर्की, टीआरआई के निदेशक रणेंद्र,उप निदेशक मोनिका टूटी,नीतिशा खलखो और युवा लेखक उपस्थित थे।
नए लेखकों को सभी लोगों ने बधाइयां दीं। दोनों पुस्तकों के प्रकाशन में पहली रचनात्मक कार्यशाला 2023 की अहम भूमिका रही है। रणेंद्र जी ने कामना की है कि इस द्वितीय कार्यशाला में भी ऐसे ही नई पुस्तकों की बहार से आदिवासी लेखन जगत समृद्ध हो। ज्ञांति और धर्मेंजय द्वारा उनकी कविताओं के पाठ से यह सत्र समृद्ध रहा।

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