सुबोध,
किशनगंज । भारत भूमि संत एवं ऋषि-मुनियों की धरती रहा है ।यहां समय-समय पर ऐसे संत व ऋषि मुनि हुए हैं और उनके अंनत अनुयायियों बारे जाने जाते हैं। वही बंगाल में जन्में बाबा लोकनाथ की लोकप्रियता और स्वीकार्यता का पता लगाना हो तो दुकानों के नाम देखिए, गाडिय़ों के पीछे लिखे नारे देखिए। अमूमन 20 में से एक दुकान का नाम बाबा लोकनाथ स्टोर होगा। हर पांचवी या छठीं गाड़ी में जय बाबा लोकनाथ लिखा होगा। उनकी समाधि की तस्वीर होगी। आखिर बाबा लोकनाथ इतने लोकप्रिय क्यों हैं।यह जानने का अवसर रविवार को किशनगंज शहर के खगड़ा में पर्यावरण संरक्षण गतिविधि के प्रांतीय सह संयोजक देवदास के आवास पर स्थित बाबा लोकनाथ के मंदिर में आयोजित पूजन समारोह में शामिल होकर जाना ।कि बाबा लोकनाथ के अनुयायी कपड़ों में है।
मौके पर उपस्थित पर्यावरण संरक्षण गतिविधि के प्रांतीय अधिकारी देवदास ने बताया कि उनके पुण्य के अवसर हर साल की भांति इस साल भी विधिवत् पूजन समारोह आयोजित हुआ है। इस अवसर पर महाप्रसाद के लिए आमंत्रित श्रद्धालुओं की सेवा प्रदान की जा रही है।पुछे जाने उन्होंने बाबा लोकनाथ के विषय में चर्चा करते हुए कहा कि बाबा से जुड़े विचारकों के मुताबिक सनातन धर्म, वैदिक ज्ञान से परिपूर्ण बाबा लोकनाथ हठयोगी थे। उन्होंने तीन बार इस्लाम के पवित्र तीर्थस्थान मक्का की यात्रा की। वे पर्सिया मौजूदा ईरान, इजरायल के पवित्र स्थल येरूशेलम भी गए। भक्तों का दावा है कि उन्होंने पैदल उत्तरी धु्रव तक यात्रा की। उनके अनुयायियों में हिंदू और मुसलमान दोनों हैं।बाबा ने हिमालय में घोर तपस्या की। उन्होंने वहां साधकों को तैयार किया। जब उन्हें मालूम चला कि उनके बाल्यकाल के गुरु को परमज्ञान नहीं मिला है तो वे हिमालय से वापस लौटे और अपने गुरु को अगले जन्म में उन्हें दीक्षित किया।
समाधि लेकर मुक्त हुए।
136 साल की उम्र में वे ढाका पहुंचे जहां धनाड्य परिवार ने उनका आश्रम तैयार किया। वहां वे भगवा कपड़े और जनेउ धारण कर आसन की मुद्रा में बैठते थे। अगले 24 साल उन्होंने अपने भक्तों पर कृपा की। तरह तरह के चमत्कारों से उनकी समस्याएं दूरी की। उनके भक्तों के मुताबिक बाबा को किसी ने कभी पलक झपकते नहीं देखा था। 160 साल की उम्र में भी समाधि लेते समय गोमुख आसन पर बैठे बाबा की पलकें खुली हुई थीं। उन्होंने शरीर छोड़ दिया था।
इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के जिला शारिरिक प्रमुख सह विद्या मंदिर के आचार्य अमित जायसवाल सहित दर्जनों श्रद्धालु उपस्थित होकर महाप्रसाद ग्रहण किया।