By SHRI RAM SHAW (श्री राम शॉ)
नई दिल्ली : “मां ही मंदिर, मां ही पूजा, मां से बढ़कर कोई न दूजा”… क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले भारत रत्न सचिन तेंदुलकर के लिए यह चंद अक्षरों में पिरोये हुए मात्र शब्द नहीं हैं, अपितु एक प्रेरणादायी मां के श्रीचरणों में पावन भावांजलि है। सचिन द्वारा सम्मान की यह कहानी उस मां के प्रति प्रतिकूल परिस्थितियों में भी साहस और दृढ़ विश्वास का सर्वोच्च प्रतीक है, जिसने अपने बच्चों को सभी बाधाओं के बावजूद ऊंचाइयों को छूने और हमेशा नए जोश के साथ आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। नौकरानी के रूप में काम करते हुए भी उसने अपने बच्चों में सकारात्मकता का संचार किया और उन्हें सिखाया कि कड़ी मेहनत एवं अच्छी संगति से क्या हासिल किया जा सकता है।
यह कहानी है बांद्रा ईस्ट स्थित कला नगर के पास लेखकों की आवासीय कालोनी ‘साहित्य सहवास’ में घरेलु नौकरानी के रूप में काम करने वाली कोंडाबाई पारधे की, जो 1960 के दशक की शुरुआत में मराठवाड़ा के अकालग्रस्त जालना जिले से अपने पति लक्ष्मण पारधे, दो बेटों – सिद्धार्थ एवं रमेश और दो बेटियों के साथ काम की तलाश में मुंबई आई थी। उन्होंने साहित्य सहवास के निर्माण के दौरान मजदूर के रूप में काम करना शुरू किया। लक्ष्मण पारधे चौकीदार के रूप में काम करते थे। वे कई दिनों तक फुटपाथ और कालोनी की एक झोपड़ी में रहे। जब इमारतें बनीं तो उन्हें मराठी साहित्य के स्तम्भ माने जाने वाले अनंत कनेकर, विंदा करंदीकर (ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता), विजयाबाई, एमवी राजाध्यक्ष और दिग्गज क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर के पिता रमेश तेंदुलकर जैसे प्रसिद्ध लेखकों के घरों में नौकरी मिल गई।
कोंडाबाई के बड़े बेटे सिद्धार्थ एलआईसी में विकास अधिकारी के रूप में काम करते थे और वर्तमान में बांद्रा पश्चिम में सौ साल पुरानी राष्ट्रीय लाइब्रेरी के उपाध्यक्ष के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। उनका छोटा बेटा रमेश, सचिन तेंदुलकर के यहां काम करते हैं। कोंडाबाई अशिक्षित थीं, लेकिन उन्हें अच्छे जीवन के लिए शिक्षा का महत्व पता था। उन्होंने अपनी यादें व अनुभव सिद्धार्थ को सुनाईं, जिन्होंने उन्हें एक पुस्तक “मुक्कमपोस्ट 10, फुलराणी” के रूप में प्रकाशित किया। मराठी में लिखी यह पुस्तक कोंडाबाई के कठिन जीवन और इन महान लेखकों की जीवनचर्या पर प्रकाश डालता है। इस किताब में उस दौर के कई आश्चर्यजनक किस्से हैं। पुस्तक का शीर्षक कालोनी में सिद्धार्थ का वर्तमान पता है। उन्होंने कुछ साल पहले अपनी मां के लिए एक फ्लैट खरीदा था जहां वह अपने पति लक्ष्मण के साथ मज़दूरी करती थीं।
इस पुस्तक का विमोचन हाल ही में किया गया। रमेश ने बताया कि “सचिन बहुत ही सुसंस्कृत एवं भावुक इंसान हैं। मेरी मां को भी वह उतना ही सम्मान देते हैं। वह हमेशा कहते हैं कि कोंडाबाई आई का वात्सल्य प्रेम मेरी स्मृतियों में सदा बसा रहेगा। मैं भाग्यशाली रहा कि उनका भी स्नेह और आशीर्वाद मुझे मिलता रहा। आई का जीवन एक प्रेरक पुस्तक के समान है।” साहित्य सहवास में 54 फ्लैट्स हैं। लगभग सभी लोग उस पल के साक्षी रहे हैं जब सचिन सेंचुरी बनाते थे तो कोंडाबाई कैसे बहुत खुश होती थी। सबसे कहती थी कि आज मेरे बेटे ने सेंचुरी बनाई है। हर बार कालोनी के बच्चों को मिठाइयां और पठाखे भी बांटती थी।
रमेश ने बताया, “मेरे पिताजी का स्वर्गवास 1905 में हो गया, जबकि मेरी मां का निधन 2022 में हुआ। दुःख की उस घड़ी में सचिन अपनी पत्नी अंजलि जी के साथ मेरे घर आये। दोनों काफी देर तक रहे और हर संभव हमारी सहायता की। हम जैसे गरीब के घर उनका आना हमारे लिए बहुत बड़ी बात थी। उन्होंने कभी भी किसी भी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं दिखाया। वह एक महान क्रिकेटर तो हैं ही, लेकिन उनका सहृदय व्यक्तित्व उससे भी अधिक विराट है। इतना ही नहीं, जब हमलोग छोटे थे और सचिन के घर पर दूध की बोतल डालने जाया करते थे, तो उनके पैरेंट्स बिना चाय पिलाये हमें वापस नहीं जाने देते थे। हर व्यक्ति का सम्मान करने का संस्कार उनके पूरे परिवार में है जो हम सभी लोगों के लिए एक बहुत बड़ी सीख है।”