Yogesh Suryawanshi 19 अक्टूबर, शनिवार

सिवनी : जिले के शंकराचार्य चौक स्थित श्री गणेश मंदिर में प्रति वर्षानुसार इस वर्ष भी श्री गणेश मंदिर में करवा चौथ व्रत को सफल बनाने के लिये श्री गणेश भगवान का पूजन अर्चन का आयोजन रखा गया है। समस्त माताओं एवं बहनों से अपेक्षा की जाती है कि अपने व्रत को सफल बनावे।

कार्यक्रम

प्रातः 07:30 बजे भगवान श्री गणेश जी का पूजन अर्चन एवं व्रत संकल्प दोपहर 3:00 बजे से हवन संध्या आरती, रात्रि 8 : 30 बजे दीपदान (सामुहिक) रात्रि 9:00 बजे चन्द्र दर्शन एवं अर्घ्य 9: 30 बजे सौभाग्य चूड़ियों का वितरण किया जाएगा।

समस्त माताओं एवं बहनों अपने साथ उपरोक्त समयानुसार आवश्यक सामग्री सहित उपस्थिति प्रार्थनीय है। यह व्रत महिलाओं को जीवन पर्यन्त सौभाग्य को प्राप्ति हेतु किया जाता है।

पति भी रख सकते हैं व्रत

पंडितों के अनुसार करवा चौथ का व्रत पति-पत्नी का एक-दूसरे के प्रति समर्पण और प्रेम का प्रतीक है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय तक निर्जला व्रत रखती हैं। फिर शाम को छलनी से चंद्रमा और अपने पति को देखकर व्रत खोलती हैं। हालांकि यह जरूरी नहीं कि यह व्रत केवल पत्नी ही रखें। पति भी अपनी पत्नी के लंबी उम्र के लिए यह व्रत रख सकते हैं। पंडित हरिकुमार तिवारी के अनुसार पतियों का पत्नी के लिए करवा चौथ का व्रत रखने में कोई बुराई नहीं है। बल्कि इस व्रत के प्रभाव से रिश्ते में मिठास बढ़ती है। साथ ही वैवाहिक जीवन में खुशहाली आती है। इसके अलावा परिवार में संपन्नता बनी रहती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत को पति भी बिना झिझक रख सकते हैं।

*करवा चौथ व्रत का महत्व*

कार्तिक कृष्ण चतुर्थी को “कर्वाचतुर्थी” (क

रवा चौथ) का व्रत बताया जाता है। इस व्रत में केवल स्त्रियों का अधिकार है। इसलिए उसका विधान बताया गया है। स्त्री स्नान करके वस्त्रभूषणों से विभूषित हो, श्री गणेश जी का पूजन करें। उनके आगे पकवान से भरे दस करवे रखे और भक्ति से पवित्रचित होकर उन्हें देवाधिदेव श्री गणेश जी को समर्पित करें। समर्पण के समय यह कहना चाहिए कि “भगवान कपर्दि गणेश मुझ पर प्रसन्न हो”। तत्पश्चात् सुवासिनी स्त्रियों और ब्राम्हणों को इच्छानुसार आदरपूर्वक उन करवो को बॉट दें। इसके बाद रात में चन्द्रोदय होने पर चन्द्रमा को विधिपूर्वक अर्ध दें। व्रत की पूर्ति के लिये स्वयं भी मिष्ठान भोजन करें। इस व्रत को सोलह या बारह वर्षों तक करके, नारी इसका उद्यापन करें इसके बाद इसे छोड़ दें। अथवा स्त्रियों को चाहिए कि सौभाग्य की इच्छा से इसका वह जीवन भर इस व्रत को करती रहे, क्योंकि इस व्रत के समान सौभाग्यदायक व्रत तीनों लोकों में दुसरा नहीं है।

 

*दीपदान का महत्व*

 

जो मनुष्य, देव मंदिर अथवा ब्राम्हण के ग्रह में एक वर्ष तक दीपदान करता है, वह सब कुछ प्राप्त कर लेता है। चातुर्मास में दीपदान करने वाला, विष्णुलोक को और कार्तिक मास में दीपदान करने वाला स्वर्गलोक को प्राप्त होता है। चातुर्मास में दीपदान से बढ़कर ना कोई व्रत है, ना था और ना होगा। दीपदान से आयु और नेत्र ज्योति की प्राप्ति होती है। दीपदान से धन और पुत्र आदि की प्राप्ति भी होती है। दीपदान करने वाला सौभाग्य युक्त होकर स्वर्गलोक में देवताओं द्वारा पूजित होता है। विदर्भराजकुमारी ललिता दीपदान के ही पुण्य से राजा चारूधर्मा की पत्नि हुई और उसकी सौ रानियों में प्रमुख हुई। उस साध्वी ने एक बार विष्णु मंदिर में सहस्त्र दीपों का दान किया। इस पर उसकी सपत्नियों ने उससे दीपदान का महत्व पूछा। तब ललिता ने अपनी समस्त सौतों से यह बताया कि मैं पूर्व जन्म में चुहिया थी। करवा का व्रत कर महिलाओं ने दीपदान किया और अपने ग्रह को चली गयी तथा दीपक में तेल शेष रह जाने पर भी दीपक बुझने लगे तब मैंने उन दीपक की बत्तियों को अपने मुख में दबाकर आगे बढ़ा दिया, जिससे दीप लगातार प्रज्जवलित रहे। उस दीपक की बत्तियों को बढ़ाने से मुझे दीपदान का पुण्य प्राप्त हुआ, जिसके प्रभाव से मैं इस जन्म में राजकुमारी व राजा चारूधर्मा की मुख्य रानी का सौभाग्य प्राप्त हुआ। अतः करवा चौथ में दीपदान करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है। तब समस्त रानियों ने करवा चौथ का व्रत रखकर दीपदान किये। उन्हें जीवन पर्यंत सौभाग्य की प्राप्ति हुई। किंतु दीपक का हरण करने वाला गूँगा अथवा मूर्ख हो जाता है। यह निश्चय है। अतः दीपदान के प्रभाव से स्वर्ग की प्राप्ति होती है। इसलिये दीपदान सभी व्रतों में विशेष फलदायक है। ब्रम्ह वैवर्त पुराणानुसार श्री गणेश भगवान, श्री विष्णु, श्री कृष्णा भगवान के ग्यारहवें अंश है।

पुजारी – पंडित हरिकुमार तिवारी

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