इंडिया गठबंधन का संयोजक बनने से इनकार करने से सियासी चर्चाओं का दौर शुरू
नई संभावनाओं के लिए जदयू ने बनायी विशेष रणनीति

विश्वपति
नव राष्ट्र मीडिया

पटना।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इंडिया गठबंधन के बैठक में आशा के विपरीत संयोजक पद के प्रस्ताव को ठुकरा दिया। उनके ऐसा करने से अटकलें का बाजार भी गर्म हो गया। हालांकि जानकार लोग यही मानते हैं कि उन्होंने फिर बेहतर चला चली और अपने को कई तरह की नई मुसीबत से बचा लिया। साथ ही दूसरी सभी संभावनाओं के द्वार भी खुले रखे।
माना जा रहा है कि इंडिया गठबंधन के संयोजक पद के लिए आने वाली मुसीबत और उलझनों को देखकर ही उन्होंने ऐसा किया है । लेकिन सच्चाई यही है की उन्होंने प्रधानमंत्री पद के दावेदारी को अधिक मजबूत रखने के लिए ही ऐसा किया है। फिलहाल ऐसा करने से उनकी पूछ भी इंडिया गठबंधन में बढ़ जाएगी और वह एनडीए गठबंधन के साथ भी उचित वार्तालाप करने के अधिकारी बने रहेंगे ।
माना जा रहा है कि इंडिया गठबंधन में कांग्रेस के बढ़ते दबदबे और वहां के सहयोगी दलों के ढीले ढाले रवैया से नाराज होकर ही नीतीश कुमार ने यह कदम उठाया है। नीतीश कुमार के समर्थक संयोजक का पद शुरू से मांग रहे थे । लेकिन कांग्रेस समेत सभी अन्य दलों ने इसकी अनदेखी की।
इसी के कारण आज जब संयोजक का पद खुद उनके पास चल कर आया, तब तक उनके सामने नई परिस्थितियों जन्म ले चुकी थीं। इसको देखते हुए उन्होंने यह पद ठुकरा दिया ।
नीतीश वैसे भी राजनीति के चतुर्थ तथा घाघ खिलाड़ी हैं। उनके करीबी सूत्रों का मानना है कि अभी देश में जिस तरह से हिंदी भाषी राज्यों में राम लहर चल रही है , खुद बिहार में आम हिन्दू जनता का ध्यान राम लला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह की ओर हो गया है । ऐसे में परिस्थितियों तेजी से बदल रही हैं और इंडिया गठबंधन के लिए चुनौती पूर्ण भी बन रही हैं। इन सभी परिस्थितियों को देखते हुए उन्होंने संयोजक का पद ठुकरा देना सही समझा क्योंकि संयोजक बनने पर उन्हें सबसे पहले सीट शेयरिंग के कड़वे अनुभव से गुजरना पड़ता। सहयोगी दलों की हरकतों को देखकर ऐसा वह करना भी नहीं चाहते ।
जदयू को बिहार में 17 सीटें चाहिए । नहीं मिलने पर या किसी तरह की राजनीति होने पर उनके लिए भाजपा का शीर्ष नेतृत्व कभी भी अपने दरवाजे खोल सकता है।
नीतीश कुमार ने अपना महत्व बरकरार रखने के लिए ही संयोजक का पद ठुकराया है । ऐसे में दोबारा कांग्रेस और लालू प्रसाद उनकी उपेक्षा नहीं कर सकेंगे। यह जदयू के शीर्ष नेताओं की सोच भी है क्योंकि वर्तमान माहौल में इंडिया गठबंधन के लिए बहुत कुछ सुनहरा रास्ता, आरामदायक सफर नहीं बचा है । इस ओखली में कौन अपना सिर डाले। हार का ठीकरा भी अलग से फूटेगा।
इसलिए नीतीश बाबू ने सावधानी पूर्वक किनारा कर लिया , कन्नी काट ली।
हालांकि नीतीश कुमार का यह निर्णय देश के दूसरे बड़े बड़े राजनीतिक पंडितों को हैरान ही कर रहा है। क्योंकि 2022 में बिहार में एनडीए से अलग होकर जब उन्होंने महागठबंधन की सरकार बनाई , तबसे वे विपक्ष को एकजुट करने के प्रयास में लगे थे। वैसे उनकी मुहिम को शुरू में भाजपा सहित अन्य दलों ने काफी कठिन काम कहा था। कुछ सूत्रों के मुताबिक नीतीश कुमार पिछली बैठकों के अनुभवों के आधार पर मल्लिकार्जुन खड़गे और लालू यादव जैसे नेताओं को संयोजक पद पर देखना चाहते हैं। उनका निशाना संभवत पीएम पद की दावेदारी को लेकर है। इंडिया से पीएम पद का चेहरा कौन होगा यह भी एक उलझा हुआ सवाल है। इंडिया गठबंधन में अभी से कई दावेदार नेता हैं। ऐसे में संयोजक का पद ठुकरा कर नीतीश कुमार भी एक प्रबल दावेदार बन गये हैं। जदयू की यह रणनीति भी है कि नीतीश को पीएम पद के चेहरे के रूप में पेश किया जाए। ऐसे में संयोजक पद ठुकराकर एक तरह से दबाव की रणनीति बनाई गई है।

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