कायस्थ समाज को खुद अपना दल बनाकर राजनीति में हिस्सेदारी बढ़ाने का प्रयास करना होगा

विजय शंकर
पटना । बिहार में हाल ही में घोषित किए गए 12 नए एमएलसी के नामों में कायस्थ समाज का प्रतिनिधित्व नहीं होना, न सिर्फ समाज के ऊपर तमाचा है बल्कि समाज को इस पर विचार करने की जरूरत है । कायस्थ समाज की इस उपेक्षा ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि नीतीश कुमार कायस्थ विरोधी मानसिकता के हैं । कायस्थ समाज को यह भी विचार करने की जरूरत है कि जिस समाज का अतीत समुन्नत और विशाल था और राजनीति में जिस समाज की कभी सर्वोच्च भागीदारी थी, वैसे समाज को भागीदारी बढ़ने के बजाय भागीदारी राजनीति में लगातार कैसे घटता चला जा रहा है । यह भी विचारणीय विषय है कि जिस समाज में डॉ राजेंद्र प्रसाद, डॉ सच्चिदानंद सिन्हा, लोकनायक जयप्रकाश नारायण, केबी सहाय जैसे अनेक नाम ऐसे है जिन लोगों ने न सिर्फ देश की सेवा की बल्कि राजनीति में अपने सर्वोच्च भागीदारी भी रखी । इतना ही नहीं आज जयप्रकाश नारायण तो सत्ता बदलने तक की ताकत हमेशा समेटे रहे और सत्ता की लालच उनमें कभी नहीं रही । आज आलम यह है जयप्रकाश नारायण के आंदोलन की उपज वाले नेता भी कायस्थ समाज को तरजीह नहीं देते । अगर राजद सुप्रीमो और पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव का नाम ले या फिर वर्तमान बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का, ये दोनों नेता भी जेपी आन्दोलन की उपज अपने को कहते नहीं थकते पर इन दोनों नेताओं ने भी कायस्थ समाज के लिए वे कुछ नहीं किया । इन लोगों ने भी कायस्थ समाज को राजनितिक भागीदारी नहीं दी बल्कि टिकट काटने का काम किया ।

अब यह विचार करने की जरूरत है कि सत्ता में भागीदारी कायस्थ समाज को कैसे हो, और कैसे इस समाज को सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक रूप से समृद्धि और संपन्न किया जाए । आज इसकी जरूरत आ पड़ी है । यह समाज काफी संकटों से गुजर रहा है । हाल में हुए 12 विधान परिषद के मनोनयन में कायस्थ समाज जिस तरह उपेक्षा की गई उससे यह समाज विवश हो गया है कि राजनीतिक भागीदारी के लिए आखिर किया क्या जाए ? विधान परिषद के विधान परिषद की सीटों के लिए कायस्थ समाज के जदयू में जहां सुमन कुमार मलिक जैसे वरिष्ठ नेता रहे, जिन्होंने लंबे समय तक कांग्रेस में रहकर अपना जुड़ाव रखा और जदयू की सेवा की और स्वच्छ छवि और निष्पक्षता रखकर पार्टी की सेवा की । वहीं जदयू के दूसरे कायस्थ नेता राजीव रंजन प्रसाद रहे जिन्होंने जदयू के प्रवक्ता के रूप में पार्टी को मजबूती देने का काम किया और हर मुद्दों पर विपक्ष को जवाब देने का काम किया । कायस्थ समाज के प्रतिनिधि के रूप में इनमें से किसी को भी विधान परिषद सदस्य के रूप में नामित होना लाजमी था । कायस्थ समाज के पूर्व विधान पार्षद रणवीर नंदन, जिन्होंने निस्वार्थ होकर पार्टी की जिम्मेदारियों को चुनाव के दौरान निभाया इनका दावा की काफी मजबूत था और विधान परिषद में जदयू को उनको भी दूसरी बार विधान परिषद में भेजना चाहिए था जबकि जदयू ने दुसरे समाज के कई पूर्व सदस्य को तीसरी बार भी विधान पार्षद में भेजने का काम किया है ।

अगर वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कार्यकाल को देखें तो 15 साल में उन्होंने लोकसभा चुनाव में अपनी पार्टी की ओर से किसी कायस्थ प्रतिनिधि को टिकट नहीं दिया । वही बीते विधानसभा चुनाव में भी कायस्थ समाज के किसी नेता को उन्होंने टिकट नहीं दिया । मंत्रिमंडल में किसी कोटे से किसी चित्रांश को मंत्री नहीं बनाया, वहीं दूसरी तरफ भाजपा को देखें तो भाजपा ने भी आबादी के हिसाब से देखें तो जितना प्रतिनिधित्व कायस्थ समाज को मिलना चाहिए था, उतना नहीं दिया । हां, संजय मयूख जैसे उत्साही चित्रांश नेता को एमएलसी जरूर बनाया । वही एक लंबे अंतराल के बाद कायस्थ समाज की सुधा श्रीवास्तव के मंत्री काल के बाद कायस्थ समाज के नितिन नवीन को भाजपा ने मंत्री बनाने का जरूर काम किया । जबकि देखा जाए तो दूसरे जाट समाज के लोगों की भागीदारी देने में नीतीश ने काम किया ।

 

अखिल भारतीय कायस्थ महासभा के प्रदेश अध्यक्ष राजीव रंजन ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए खुले तौर पर कहा कि वक्त आ गया है कि कायस्थ समाज को एकजुट होकर अपनी ताकत बढ़ाने के लिए संघर्ष करना चाहिए और अपना राजनीतिक दल बनाकर राजनीतिक भागीदारी लड़ कर लेना चाहिए । उन्होंने कहा कि परिस्थितियां जिस तरह की बन गई हैं, उसमें कोई भी राजनीतिक दल कायस्थ समाज को कुछ देने वाला नहीं है । ऐसे में कायस्थ समाज को खुद अपना राजनीति दल बनाकर राजनीति में हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए प्रयास करना होगा ।

वहीँ कायस्थ समाज के एक और नेता राष्ट्रीय कायस्थ महासभा के प्रदेश अध्यक्ष , भाजपा समर्थक मंच के प्रदेश अध्यक्ष , टीम मोदी सपोर्टर के प्रदेश अध्यक्ष और राष्ट्रीय सनातन वाहिनी के प्रदेश अध्यक्ष अशोक कुमार भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के विधान परिषद् सीट देने में कायस्थ नेता की उपेक्षा पर खासे नाराज है और कहते हैं कि लोग पहले से मानते रहे हैं कि नीतीश कायस्थ विरोधी है , यह फिर साबित हो गया है । उन्होंने कहा -कायस्थों का विधवा विलाप क्यों ? कायस्थ समाज को एक भी सीट नही मिला,इसे साबित होता है कि कायस्थ समाज नेता विहीन है, केवल विधवा विलाप करता है, कोई भी पालिटिकल पार्टी मे कायस्थ समाज के किसी भी नेता का उतना ही भैल्यू है जितना बिरयानी में तेजपत्ता का । इस अपमानजनक स्थिति में कायस्थ समाज के एक भी नेता मे हिम्मत नहीं हुआ कि एक भी बयान समाज के लिए दे सकें । युवाओं से अपील है कि आगे बढो ज़माना तुम्हारे साथ है । उन्होंने कहा कि कायस्थ समाज के प्रति नकारात्मक सोंच एवं अपमान करने का सोच रखने वालों का खुलकर विरोध तो कर ही सकता हूं ।

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