दस हजार से अधिक किसान पटना पहुंचेंगे, अब तक जिलों में 2000 से अधिक किसान पंचायतों का आयोजन
विजय शंकर
पटना । अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के आह्वान पर 29 दिसंबर को आयोजित किसानों के राजभवन मार्च में पूरे बिहार से दस हजार से अधिक किसानों की गोलबंदी होगी । इसकी तैयारी को लेकर अब तक राज्य के विभिन्न जिलों में 2000 से अधिक किसान पंचायतों का आयोजन किया गया है, पदयात्रायें और प्रचार टीम निकाले गए हैं । इस मार्च में बिहार के किसान नेताओं के अलावा अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के वर्किंग ग्रुप के सदस्य व पंजाब के लोकप्रिय किसान नेता जगमोहन सिंह भी भाग लेंगे । पंजाब व पूरे देश में चल रहे किसान आंदोलन के समर्थन में ही बिहार में यह किसानों का राजभवन मार्च हो रहा है ।
उक्त बातें आज पटना में एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के बिहार-झारखंड के प्रभारी व अखिल भारतीय किसान महासभा के महासचिव राजाराम सिंह, बिहार राज्य किसान सभा-केदार भवन के महासचिव अशोक कुमार सिंह, बिहार राज्य किसान सभा-जमाल रोड के बिहार अध्यक्ष ललन चौधरी, किसान-मजदूर विकास समिति, जहानाबाद के अनिल सिंह, अखिल भारतीय किसान महासभा के बिहार राज्य सचिव रामाधार सिंह, ऑल इंडिया अग्रगामी किसान सभा के महासचिव अमीरक महतो, राष्ट्रीय किसान मंच के बीबी सिंह, वैद्यनाथ सिंह, चंद्रशेखर प्रसाद, रामजीवन प्रसाद सिंह, प्रभुनारायण राव, आशीष, नन्दकिशोर सिंह, रवींद्रनाथ राय, मणिकांत पाठक, जय किसान मंच के श्री आनन्द आदि लोगों ने संबोधित किया ।
नेताओं ने कहा कि आज एक महीने होने को आए हैं, कड़ाके की ठंड में किसान आंदोलनरत हैं, लेकिन सरकार ने अबतक किसी मांग को नहीं सुना है । प्रधानमंत्री मोदी किसानों की बात सुनने की बजाए अपने मन की बकवास में लगे हुए हैं । बातों में उलझाकर सरकार ने अपना दिमान-कान सबकुछ बंद कर लिया है । सरकार को किसानों की कोई चिंता नहीं है, उसे चिंता है तो केवल कारपोरटों की । मोदी सरकार किसी भी कीमत पर इन कानूनों के जरिए खेत-खेती-किसानी पर कारपोरेट वर्चस्व स्थापित करने के लिए प्रयासरत है. लेकिन देश के किसान इसे कभी होने नहीं देंगे । किसानों की मांगों पर विचार करने की बजाए हमने देखा कि भाजपा व संघ के लोग आंदोलन को बदनाम करने व उसमें फूट डालने की कोशिशें कर रहे हैं. इन कोशिशों को किसानों ने करारा जवाब दिया है । आंदोलन को बदनाम करने की अपनी गंदी राजनीति पर भाजपाई लगाम लगायें, देश की जनता उनकी हकीकत समझ चुकी है ।
आज आंदोलन के एक महीने पूरे होने पर पूरे राज्य में मोदी सरकार की संवेदनहीनता के खिलाफ किसानों ने धिक्कार दिवस मनाया है और सरकार को लानतें भेजी हैं । 27 दिसंबर को प्रधानमंत्री मोदी ‘मन की बात’ के नाम पर एक बार फिर जब बकवास करने आयेंगे तब किसानों ने ठीक उसी वक्त पूरे देश में थाली पीट कर अपने आक्रोश को जाहिर करने का संकल्प लिया है । उन्होंने कहा कि तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने, प्रस्तावित बिजली बिल 2020 वापस लेने, न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान खरीद की गारंटी आदि सवालों पर अब बिहार में भी आंदोलन का विस्तार हो रहा है । भाजपा-संघ गिरोह के इस कुप्रचार को बिहार के किसानों ने झुठला दिया है कि यह आंदोलन केवल पंजाब के किसानों अथवा बड़े किसानों का है । बिहार के किसानों ने भी इसे अच्छी तरह समझ लिया है कि ये तीनों कानून पूरी खेती को ही बर्बाद कर देंगे ।
नेताओं ने कहा कि बिहार सरकार ने सबसे पहले 2006 में ही बाजार समितियों को खत्म कर दिया । एमएसपी खत्म होने की वजह से आज किसी भी क्षेत्र में बिहार के किसानों का सही समय पर धान की खरीद नहीं होती है, न्यूनतम समर्थन मूल्य की तो बात ही जाने दी जाए । जो काम नीतीश जी ने 2006 में बिहार में किया मोदी सरकार अब पूरे देश में वही करना चाहती है । बिहार के किसानों की दुर्दशा के लिए भाजपा-जदयू जवाबदेह है । नीतीश कुमार से हम पूछना चाहते हैं कि वे बताएं कि बिहार के किसानों को कहां-कहां न्यूनतम समर्थन मूल्य मिल रहा है । इन लोगों का काम किसानों को बस ठगना है ।
आंदेालन को आगे बढ़ाते हुए 1 जनवरी को पूरे देश और बिहार में भी किसान संविधान की प्रस्तावना का पाठ करेंगे और तीनों कृषि कानूनों को रद्द किये जाने और बिजली बिल 2020 की वापसी तक संघर्ष जारी रखने का संकल्प लेंगे । अंत में नेताओं ने बिहार की आम जनता, प्रबुद्ध नागरिकों व अन्य तबकाई संगठनों से किसान आंदोलन का व्यापक समर्थन देने तथा 29 दिसंबर के राजभवन मार्च को तन-मन-धन से सहयोग करने की अपील की है ।