उत्तराखंड ब्यूरो
रूडकी : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ रूड़की द्वारा कन्हैया बैंकट हॉल मैं आजादी का अमृत महोत्सव कर्नल प्रदीप नैथानी की अध्यक्षता में मनाया गया. कार्यक्रम का प्रारंभ दीप प्रज्वलित कर एकल गीत के साथ किया गया मुख्य वक्ता डॉक्टर प्रोफेसर प्रेमचंद शास्त्री, राज्य मंत्री दर्जा प्राप्त द्वारा कहा गया कि देश की स्वतंत्रता के लिए लाखों लोगो ने बलिदानी दी किंतु वर्तमान पीढ़ी कुछ गिने-चुने बलिदानियों को जानती है। देश के प्रत्येक क्षेत्र में तथा हमारे आसपास के क्षेत्र में बलिदानिया हुई हैं। उन्ही बलिदानियो को समाज के सामने नई पीढ़ी को अवगत कराना इस महोत्सव का उद्देश्य है।

उन्होंने कुंजा बहादुरपुर तथा सुनहरा वट वृक्ष पर भी बलिदानियो का वर्णन किया उन्होंने 16 दिसंबर 1971 भारतीय सेना की विश्व कीर्तिमान को बताते हुए कहा कि तिरानवे हजार पाकिस्तानी सैनिकों का आत्मसमर्पण जरनल नियाजी द्वारा भारतीय सेना अध्यक्ष जगजीत सिंह अरोड़ा के समक्ष किया था। यह आत्मसमर्पण का अब तक का विश्व कीर्तिमान है। भारत में उदारता का परिचय देते हुए आत्मसमर्पण करने वाले सभी सैनिकों को मुक्त किया था। किंतु वहीं पाकिस्तान आतंकवादी गतिविधियों के रूप में भारत के खिलाफ अघोषित युद्ध छेड़े हुए हैं। आज की पीढ़ी को देश के बलिदानियो एवं स्वतंत्रता सेनानियों से प्रेरणा लेने की आवश्यकता है.
उन्होंने वीर सावरकर का वर्णन करते हुए कहा की सावरकर 15 साल सेल्यूलर जेल में तथा 13 साल घर में नजरबंद रहे लेकिन इतिहास में बताया गया कि वे अंग्रेजों के पिट्ठू और चाटुकार थे। भगत सिंह तथा उधम सिंह जैसे स्वतंत्रता सेनानियों ने असेंबली में बम फेंक कर यहां की जनता को जागृत करने का कार्य किया और वे भागे नहीं बल्कि गिरफ्तार हुए उस समय देश का नेतृत्व चाहता तो उनको फांसी से बचा सकता था। तथा समाज में फैली हुई कुरीतियों को हटाकर सामाजिक समरसता एवं सद्भाव का वातावरण उत्पन्न करना है। तभी भारत माता परम वैभव पर पहुंचेगी और भारतीय संस्कृति विश्व में अपना स्थान बनाएगी इस अवसर पर 1962 1965 तथा 1971 के युद्ध में लड़ने वाले भूतपूर्व सैनिकों को प्रशस्ति पत्र प्रदान कर सम्मानित किया गया।

अध्यक्ष उद्बोधन में कर्नल प्रदीप नेथानी द्वारा कहा गया कि भारत का गौरवशाली अतीत रहा है और भारतीय संस्कृति ने विश्व का नेतृत्व किया है किंतु हम अपनी संस्कृति और महापुरुषों के रास्ते से भटक गए इसी का परिणाम देश की गुलामी के रूप में झेलना पड़ा जब देश में जनजागृति और स्वयं का भाव आया भारत स्वतंत्र हो गया।

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