बंगाल ब्यूरो
कोलकाता। पश्चिम बंगाल की सत्ता पर तीन दशक तक लगातार शासन करने वाले वामपंथी पार्टियां आज अस्तित्व संकट से किस कदर गुजर रही हैं इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वाममोर्चा ने अपनी कई परंपरागत सीटें गठबंधन धर्म के नाम पर नवनिर्मित पार्टी इंडियन सेकुलर फ्रंट (आईएसएफ) को दे दी है। हुगली जिले के दरगाह फुरफुरा शरीफ के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी की पार्टी आईएसएफ ने ओवैसी का साथ छोड़ कर माकपा-कांग्रेस के साथ गठबंधन किया है। कांग्रेस 2016 में भी माकपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ी थी लेकिन उस समय भी उन्हें 92 सीटें ही दी गई थीं और इस समय भी कांग्रेस अतिरिक्त सीट की मांग करती रही लेकिन वाम मोर्चा ने अतिरिक्त सीटें नहीं दी। हालांकि अल्पसंख्यक वोट बैंक पर दबदबा रखने का दावा करने वाले पीरजादे की धौंस के आगे माकपा रेंगती नजर आई है और अपनी कई परंपरागत सीटें उसकी झोली में डाल चुकी है जिससे पार्टी के धर्मनिरपेक्ष रवैए को लेकर सवाल खड़े होने लगे हैं।
रायपुर, महिषादल, चंद्रकोना, कुलपी, मंदिरबाजार, जगतबल्लभपुर, हरिपाल, खानाकुल, मटियाब्रुज, उलबेरिया, राणाघाट उत्तर व पूर्व, कृष्णगंज, संदेशखाली, चापड़ा, अशोकनगर, आमडांगा, आसनसोल उत्तर, इंटाली, कैनिंग पूर्व, जंगीपाड़ा, मध्यमग्राम, हाड़ोआ, मयूरेश्वर और मगराहाट पूर्व सीटें शामिल हैं। इन सभी सीटों पर 2011 से पहले तक माकपा के विधायक थे। कैनिंग पूर्व से जीतकर अब्दुर रज्जाक मोल्ला लंबे समय तक मंत्री रहे थे। मटियाब्रुज से निर्वाचित होकर एक समय मोहम्मद अमीन मंत्री बने थे।
इसी तरह आमाडांगा से अब्दुस सत्तार वाममोर्चा सरकार के मंत्रिमंडल में थे। वहीं इंटाली से जीतकर हाशिम अब्दुल हलीम विधानसभा स्पीकर बने थे। सूत्रों के मुताबिक आइएसएफ के साथ सीटों के बंटवारे को लेकर पहले माकपा के जो नेता बातचीत कर रहे थे, वे इन सीटों को छोडऩे के लिए तैयार नहीं थे। दोनों दलों में बात बन नहीं पा रही थी इसलिए माकपा की तरफ से एक अन्य वरिष्ठ नेता को बातचीत में लगाया गया, जिन्होंने इन सीटों पर माकपा की मौजूदा स्थिति को देखते हुए आइएसएफ के लिए छोडऩे को पार्टी नेतृत्व को राजी कर लिया। माकपा दरअसल नहीं चाहती थी कि सीटों के विवाद को लेकर आइएसएफ से समझौता न हो पाए।
तृणमूल कांग्रेस के अल्पसंख्यक सेल के अध्यक्ष हाजी नुरूल इस्लाम ने कहा-‘माकपा के कार्यकर्ता ही आइएसएफ में शामिल हुए हैं। आम लोगों के बीच माकपा की स्वीकार्यता खत्म हो गई है इसलिए अब वे लोग आइएसएफ के छद्म वेश में राजनीति कर रहे हैं।
इसपर प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए माकपा की राज्य कमेटी के एक नेता ने कहा कि गठबंधन को शक्तिशाली करने के लिए पार्टी ने यह त्याग किया है। वहीं राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि माकपा ने आइएसएफ के लिए जो सीटें छोड़ी हैं, वहां अब उसका प्रभाव अब्बास सिद्दीकी की पार्टी से बहुत कम है। मौजूदा स्थिति को देखते हुए ही माकपा ने यह निर्णय लिया।