सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों में से 3 जजों ने सही ठहराया, जस्टिस रवींद्र भट व सीजेआई यूयू ललित अल्पमत में रहे


subhash nigam /vijay shankar

नयी दिल्ली : आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लोगों को 10% आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मुहर लगा दी । इस फैसले का फायदा सामान्य वर्ग के लोगों को शिक्षा और सरकारी नौकरी में मिलेगा । 5 न्यायाधीशों में से 3 जजों ने आर्थिक रूप से कमजोर उच्च जाति के युवाओं को 10% आरक्षण देने के सरकार के फैसले को संवैधानिक ढांचे का उल्लंघन नहीं माना और कहा कि गरिबो को भी आगे ले जाने की जिम्मेदारी सरकार की ही है । अब यह आरक्षण पूर्व की तरह जारी रहेगा । सर्वोच्च नायालय के फैसले के बाद इससे सम्बंधित सभी राज्यों में दर्ज कराये गए केस भी ख़ारिज कर दिए गए । सामान्य वर्ग के गरीबों को दिया जाने वाला 10% आरक्षण जारी रहेगा । सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों में से 3 जजों ने इसे सही ठहराया । जस्टिस रवींद्र भट और CJI यूयू ललित अल्पमत में रहे।
पांच जजों की संविधान पीठ में चीफ जस्टिस आफ इण्डिया यूयू ललित, जस्टिस बेला त्रिवेदी, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस पारदीवाला और जस्टिस रवींद्र भट शामिल थे । पांच सदस्यीय संविधान बेंच ने इस पर फैसला सुनाया । चीफ जस्टिस और जस्टिस भट आर्थिक रूप से कमजोर उच्च जाति के युवाओं को 10% आरक्षण देने के सरकार के फैसले के खिलाफ रहे, जबकि जस्टिस माहेश्वरी, जस्टिस त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने पक्ष में फैसला सुनाया।
बेंच ने मामले की साढ़े छह दिन तक सुनवाई के बाद 27 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था। चीफ जस्टिस आफ इण्डिया ललित 8 नवंबर यानी मंगलवार को रिटायर हो रहे हैं। इसके पहले 5 अगस्त 2020 को तत्कालीन चीफ जस्टिस आफ इण्डिया एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने मामला संविधान पीठ को सौंपा था। चीफ जस्टिस आफ इण्डिया यूयू ललित की अध्यक्षता वाली बेंच ने कुछ अन्य अहम मामलों के साथ इस केस की सुनवाई की।

उल्लेखनीय है कि 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले एनडीए सरकार ने सामान्य वर्ग के लोगों को आर्थिक आधार पर 10% आरक्षण दिया था। इसके लिए संविधान में 103वां संशोधन किया था। कानूनन, आरक्षण की सीमा 50% से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। अभी देशभर में एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग को जो आरक्षण मिलता है, वो 50% सीमा के भीतर ही है। केंद्र सरकार के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 40 से ज्यादा याचिकाएं दायर हुई थीं। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने 27 सितंबर को अपना फैसला सुरक्षित रखा था। जिसके बाद आज पांच जजों की संविधान पीठ ने इसपर फैसला दिया जिसमें 3 जजों ने आरक्षण के पक्ष में और दो जजों ने आरक्षण के विपक्ष में फैसला सुनाया जिससे बहुमत से इसे लागू कर दिया गया ।

अपने फैसले में जस्टिस दिनेश माहेश्वरी- केवल आर्थिक आधार पर दिया जाने वाला आरक्षण संविधान के मूल ढांचे और समानता के अधिकार का उल्लंघन नहीं करता है। आरक्षण 50% तय सीमा के आधार पर भी आर्थिक रूप से कमजोर उच्च जाति के युवाओं को 10% आरक्षण में संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं है, क्योंकि 50% आरक्षण की सीमा अपरिवर्तनशील नहीं है।

जस्टिस बेला त्रिवेदी- मैं जस्टिस दिनेश माहेश्वरी से सहमत हूं और यह मानती हूं कि आर्थिक रूप से कमजोर उच्च जाति के युवाओं को 10% आरक्षण मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं है और न ही यह किसी तरह का पक्षपात है। यह बदलाव आर्थिक रूप से कमजोर तबके को मदद पहुंचाने के तौर पर ही देखा जाना चाहिए। इसे अनुचित नहीं कहा जा सकता है।

जस्टिस पारदीवाला- जस्टिस माहेश्वरी और जस्टिस बेला त्रिवेदी से सहमत होते समय मैं यहां कहना चाहता हूं कि आरक्षण का अंत नहीं है। इसे अनंतकाल तक जारी नहीं रहना चाहिए, वर्ना यह निजी स्वार्थ में तब्दील हो जाएगा। आरक्षण सामाजिक और आर्थिक असमानता खत्म करने के लिए है। यह अभियान 7 दशक पहले शुरू हुआ था। डेवलपमेंट और एजुकेशन ने इस खाई को कम करने का काम किया है।

विरोध में दो जजों ने फैसला सुनाया जिसमें जस्टिस रवींद्र भट ने कहा , आर्थिक रूप से कमजोर और गरीबी झेलने वालों को सरकार आरक्षण दे सकती है और ऐसे में आर्थिक आधार पर आरक्षण अवैध नहीं है, लेकिन इसमें से SC-ST और OBC को बाहर किया जाना असंवैधानिक है । मैं यहां विवेकानंदजी की बात याद दिलाना चाहूंगा कि भाईचारे का मकसद समाज के हर सदस्य की चेतना को जगाना है। ऐसी प्रगति बंटवारे से नहीं, बल्कि एकता से हासिल की जा सकती है। ऐसे में आर्थिक रूप से कमजोर उच्च जाति के युवाओं को 10% आरक्षण केवल भेदभाव और पक्षपात है। ये समानता की भावना को खत्म करता है। ऐसे में मैं आर्थिक रूप से कमजोर उच्च जाति के युवाओं को 10% आरक्षण को गलत ठहराता हूं।
अन्त में चीफ जस्टिस यूयू ललित का फैसला आया और उन्होंने कहा, मैं जस्टिस रवींद्र भट के विचारों से पूरी तरह से सहमत हूं ।

केंद्र की ओर से पेश तत्कालीन अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुनवाई के दौरान कहा था कि आरक्षण के 50% बैरियर को सरकार ने नहीं तोड़ा। उन्होंने कहा था- 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने ही फैसला दिया था कि 50% से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जाना चाहिए ताकि बाकी 50% जगह सामान्य वर्ग के लोगों के लिए बची रहे। यह आरक्षण 50% में आने वाले सामान्य वर्ग के लोगों के लिए ही है। यह बाकी के 50% वाले ब्लॉक को डिस्टर्ब नहीं करता है ।

संविधान पीठ के फैसले के बाद सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने कहा, सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद देशभर के इससे संबंधित याचिकाएं खारिज कर दी जाएंगी । उन्होंने कहा कि संविधान में पिछड़ों को आरक्षण देने का फैसला जब दिया जा रहा था, उस समय बाबा भीमराव अंबेडकर ने भी इस फैसले का विरोध किया था । साथ ही संविधान के निर्माताओं ने इस पर आपत्ति दर्ज की थी, मगर कई दबावों के बीच इसे मात्र 10 साल के लिए शुरुआत में दिया गया था और पिछड़ी जातियों को मुख्यधारा में लाने के लिए इसका फैसला हुआ था । मगर देश की सरकारों ने इस फैसले को 10 साल से बढाकर 20 साल और फिर 70 साल तक जारी रखा । उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति रहे रामनाथ कोविंद के परिजन और परिवार वालों को भी आरक्षण प्राप्त है , ऐसे में जबकि उनकी स्थिति आरक्षण योग्य नहीं है । ऐसे ही उन्होंने कई बड़े नाम लिए जिसमें रामविलास पासवान समेत कई नाम थे जिन्हें आरक्षण का लाभ देना ठीक नहीं ।

उन्होंने कहा कि अब जो पिछड़ों को दिया गया आरक्षण है उसकी भी समीक्षा की जानी चाहिए कि आखिर इनको आरक्षण क्यों जारी रखा जाए । उन्होंने कहा कि यह भी सरकार की जरूरत है जो उच्च वर्ग के लोग हैं जो गरीब तबके के हैं जिनको ना सरकारी नौकरियों में आरक्षण है और नहीं पढ़ाई में, वह लगातार पिछड़ते जा रहे हैं जिनको आरक्षण की जरूरत है । उन्हें कहा, जिन्हें ऊपर उठाना है उन्हें आरक्षण नहीं और जिनको आरक्षण की जरूरत नहीं है, उन्हें आरक्षण देकर लगातार आगे बढ़ाने की कोशिश सरकार और राजनैतिक लोग कर रहे हैं । उन्होंने कहा कि पिछड़ों को दिए जा रहे आरक्षण की भी समीक्षा की जानी चाहिए ताकि जो सही मायने में आरक्षण के हक़दार हैं , जो किसी भी जाति के हों , चाहे वह पिछडी जाति के हो या अगड़ी जाति के हों , आरक्षण की जरूरत है, हकदार हैं तो उन्हें आरक्षण दिया जाए ताकि सबको समानता का मौका मिल सके ।

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