♀ संसदीय इतिहास के परिप्रेक्ष्य में समझिए किशनगंज के मतदाताओं का मूड
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◆ प्रोफेसर (डॉ.) सजल प्रसाद
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■ वर्ष 1952 से ही है किशनगंज संसदीय क्षेत्र 65-68 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता बहुल रहा है।
■ किशनगंज के लोगों की अमन-चैन पसंदगी और हिन्दू-मुस्लिम भाईचारगी पूरे देश में एक मिसाल है।
■ वर्ष 1967 में ज़मीन से जुड़े पक्के समाजवादी नेता लखन लाल कपूर को हिन्दू-मुस्लिम मतदाताओं ने मिलकर सांसद चुना था। और, उनका नाम अबतक के किशनगंज संसदीय इतिहास में एकमात्र हिन्दू सांसद के रूप में दर्ज है।
■ बाबरी मस्जिद प्रकरण के समय मुस्लिम नेता के रूप में उभरे सैयद शहाबुद्दीन (पूर्व आई.एफ.एस अधिकारी) वर्ष 1985 के लोकसभा उप चुनाव में सांसद निर्वाचित हुए थे। इस तरह 1985 में ही पहली बार किशनगंज पूरे देश में सुर्खियों में आया था और आज तक सुर्खियों में है।
■ वर्ष 1989 में सीटिंग एम.पी. होने के बावजूद सैयद शहाबुद्दीन का नामांकन पत्र आश्चर्यजनक रूप से रद्द हो गया था और वे किशनगंज से चुनाव नहीं लड़ सके थे।
■ वर्ष 1989 में प्रख्यात पत्रकार एम.जे.अक़बर कांग्रेस टिकट पर सांसद चुने गए थे। लेकिन, 1991 के लोकसभा चुनाव में एम.जे.अक़बर को मात्र 80 हजार वोट ही मिले थे और वे बुरी तरह पराजित हुए थे।
■ वर्ष 1991 के लोकसभा चुनाव में नामांकन के अंतिम दिन नामांकन समाप्त होने के सिर्फ़ दो मिनट पहले नाटकीय ढंग से सैयद शहाबुद्दीन नामजदगी का पर्चा दाख़िल कर पाए थे और वे दूसरी बार किशनगंज के सांसद चुने गए थे। नामांकन करने के लिए उन्हें अप्रत्याशित रूप से सरकारी विमान से पटना से सीधे किशनगंज भेज गया था।
■ वर्ष 1996 में प्रखर मुस्लिम नेता के रूप में स्थापित एवं सीटिंग सांसद सैयद शहाबुद्दीन ने टिकट नहीं मिलने पर जब निर्दलीय चुनाव लड़कर अपनी लोकप्रियता जाननी चाही तो, उन्हें बहुत निराश होना पड़ा था। उन्हें मात्र नौ हजार वोट ही मिले थे। उनकी ज़मानत तक ज़ब्त हो गई थी और उन्हें बड़े बेआबरू होकर यह कूचा छोड़ना पड़ा था।
■ वर्ष 1996 में हुए त्रिकोणीय मुक़ाबले में पहली बार मोहम्मद तस्लीमुद्दीन किशनगंज के सांसद चुने गए थे।
वर्ष 1998 में भी वे दोबारा एमपी चुने गए।
■ वर्ष 1999 के लोकसभा चुनाव में त्रिकोणीय मुकाबले में मुस्लिम मतदाता बहुल किशनगंज से भाजपा टिकट पर सैयद शाहनवाज़ हुसैन सांसद निर्वाचित हुए। अपने कार्यकाल में शाहनवाज़ हुसैन करीब आधा दर्जन मंत्रालयों में मंत्री रहे।
■ वर्ष 2004 में मोहम्मद तस्लीमुद्दीन किशनगंज से तीसरी बार राजद टिकट पर सांसद चुने गए थे और पूर्व केन्द्रीय मंत्री व सीटिंग सांसद शाहनवाज़ हुसैन को मुँह की खानी पड़ी थी।
■ वोटरों की तराजू पर तौले जाने के कारण तस्लीमुद्दीन और शाहनवाज़ हुसैन की राजनीतिक लड़ाई विकास के मुद्दे पर केन्द्रित रही और इस कारण वर्ष 1999 से 2009 तक के दस वर्ष किशनगंज के लिए यादगार रहे। इन दस वर्षों में किशनगंज को विकास की कई परियोजनाएं तोहफ़े में मिलीं।
■ सुरजापुरी मुस्लिम मतदाता बहुल होने के बावजूद वर्ष 1952 से वर्ष 2009 तक कोई सुरजापुरी मुस्लिम नेता सांसद चुने नहीं जा सके थे। जबकि सुरजापुरी मुस्लिम नेता मौलाना असरारुल हक़ क़ासमी कांग्रेस पार्टी सहित कई अन्य दलों के टिकट पर और निर्दलीय भी चार बार लोकसभा चुनाव लड़े थे, परंतु वे चुनाव नहीं जीत सके थे।
■ वर्ष 2009 में पहली बार किसी सुरजापुरी मुस्लिम नेता को किशनगंज लोकसभा चुनाव में सफलता मिली और वे मौलाना असरारुल हक़ क़ासमी ही थे। इस चुनाव में उन्हें कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बनाया था। जबकि राजद टिकट पर लड़े तस्लीमुद्दीन बुरी तरह चुनाव हार गए थे। वर्ष 2014 में भी मौलाना लगातार दूसरी बार सांसद चुने गए।
■ मौलाना असरारुल हक़ क़ासमी के इंतकाल के बाद वर्ष 2019 में डॉ. मो.जावेद को कांग्रेस का टिकट मिला और त्रिकोणीय मुकाबले में वे पहली बार सांसद चुने गए।
■ वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में मतदान के दिन 26 अप्रैल को वोटर किशनगंज संसदीय इतिहास का नया अध्याय लिखेंगे।