सुबोध, ब्यूरो किशनगंज
किशनगंज 06 नवम्बर ।प्रकृति पूजन, सामाजिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक और प्राचीन वैदिक संस्कृति का अनूठा संगम छठ महापर्व हैं।भगवान भास्कर, प्रकृति, जल, वायु और छठी मइया को समर्पित है छठ पर्व ।
सूर्योपासना का यह अनुपम लोकपर्व विशेष रूप से बिहार, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल धीरे-धीरे यह त्योहार अब प्रवासी भारतीयों समेत विश्वभर में प्रचलित हो गया है।छठ पूजा’ चार दिवसीय उत्सव है। इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी
और समाप्ति कार्तिक शुक्ल सप्तमी को होती है।इस दौरान व्रतधारी लगातार 36 घंटे निर्जला उपवास रखते हैं।महिलाएं एवं पुरुष पारंपरिक वस्त्र पहनकर इस उत्सव में भाग लेते है।
पारिवारिक सुख-समृद्धि तथा मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए यह पर्व मनाया जाता है।
ऐसी मान्यता है कि छठ पूजा की परंपरा वैदिक काल से चली आ रही है।भगवान सूर्य की वंदना का उल्लेख ऋग्वेद में भी मिलता है।त्रेतायुग में भी भगवान श्रीराम और माता सीता ने उपवास करते हुए सूर्यदेव की अराधना की थी।वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी छठ पर्व का महत्व है।इस दौरान सूर्य की पराबैगनी किरणें पृथ्वी की सतह पर होती हैं, जो स्वास्थ्य हेतु लाभकारी होती हैं।यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है।बल्कि सामाजिक एकता और पारिवारिक बंधनों को मजबूत करने का भी कार्य करता है।
छठ पर्व की धार्मिक, सांस्कृतिक और पारिवारिक महत्ता इसे भारतीय संस्कृति में विशिष्ट बनाती है।