अंतर्राष्ट्रीय संस्थान ईफ्री संयुक्त राष्ट्र अमेरिका, हार्वेस्ट प्लस बिहार तथा उड़ीसा एवं कृषि विज्ञान केंद्र भोजपुर के संयुक्त तत्वावधान में केवीके, कोईलवर में संगोष्ठी

संजय श्रीवास्तव
आरा। अंतर्राष्ट्रीय संस्थान ईफ्री संयुक्त राष्ट्र अमेरिका, हार्वेस्ट प्लस बिहार तथा उड़ीसा एवं कृषि विज्ञान केंद्र भोजपुर के संयुक्त तत्वावधान में केवीके के नवीन प्रक्षेत्र सक्डी कोईलवर में किसानों के लिए एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कृषि विज्ञान केंद्र के हेड डॉक्टर प्रवीण कुमार द्विवेदी ने जानकारी दी कि इस कार्यक्रम का उद्देश्य वर्तमान जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में तकनीक एवं फसल प्रणालियों में हो रहे परिवर्तन तथा भोजन में पोषक तत्वों की भूमिका के ऊपर किसानों के विचार एवं इनके लिए आने वाले समय में अनुसंधान कार्य करने के लिए किसानो की सहभागिता से कार्यक्रम की रूपरेखा तय करना है।

इस कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि डॉक्टर सुरेश बाबू, वरिष्ठ वैज्ञानिक इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च सिस्टम, संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ डॉ वीरेंद्र मेंडाली वरिष्ठ कार्यक्रम प्रबंधक हार्वेस्ट प्लस बिहार एवं उड़ीसा राज्य तथा डॉक्टर रविंद्र गिरी, कार्यक्रम प्रबंधक बिहार के साथ ही रोहित रंजन सामुदायिक विकास पदाधिकारी हार्वेस्ट प्लस उपस्थित थे। डॉ सुरेश बाबू ने जानकारी दी कि इनका अंतरराष्ट्रीय संस्थान पूरे विश्व में विभिन्न देशों में वहां के नीति निर्धारक संस्थाओं के साथ मिलकर खेती के बेहतर प्रबंधन एवं कुपोषण उन्मूलन पर कार्यक्रम कर रहा है । भारत वर्ष में भी भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली, कृषि विश्वविद्यालय एवं कृषि विभाग के साथ मिलकर इसी दिशा में कार्य करना प्रारंभ कर चुका है। इसमें उनकी सहयोगी संस्थान हार्वेस्ट प्लस की भी महत्वपूर्ण भूमिका है इनके समस्त कार्यक्रमों में किसानों की सक्रिय सहभागिता रहती है। इसके लिए आज के कार्यक्रम में किसानों से भी उनके विचार जाने जाएंगे जिसके आधार पर भविष्य के कार्य योजना का प्रारूप तैयार किया जाएगा। आपने बताया कि किसानों के स्तर पर भी कई प्रकार के प्रयोग किए जाते हैं जो भविष्य के शोध के लिए आधारशिला का काम करते हैं। आपने यह भी जानकारी दी कि क्षेत्र में कुपोषण एवं जलवायु में हो रहे परिवर्तन के साथ फसलों के विविधीकरण पर इनका विशेष ध्यान है जिससे कि किसानो के खाद्य सुरक्षा के साथ ही उनकी आर्थिक उन्नति भी संभव हो।

डॉ वीरेंद्र ने बताया कि आज पूरे विश्व में डिजिटल क्रांति चल रही है और सोशल मीडिया के माध्यम से सूचनाओं का निरंतर प्रवाह जारी है आवश्यकता है कि उन सूचनाओं का अपने कृषि कार्यों में प्रयोग कर कृषि को और बेहतर कैसे बनाया जाए, इस पर एक बार पुनः विचार करना आवश्यक है। आपने यह भी साझा किया कि वर्तमान समय में पूरे बिहार में 2 लाख से ज्यादा किसान पौष्टिकता से युक्त अनाजों एवं अन्य फसलों की खेती कर रहे हैं और इनका बाजार भी धीरे-धीरे विकसित हो रहा है जिससे किसानों को आने वाले समय में बेहतर लाभ मिलने की प्रबल संभावना है।

डॉ रविंद्र गिरी ने जानकारी दी कि आज धान गेहूं के अतिरिक्त मक्का बाजरा रागी के नवीन प्रभेद अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के द्वारा विकसित किया जा रहे हैं और भारतवर्ष में भी विभिन्न विश्वविद्यालय एवं शोध संस्थानों के द्वारा इनके ऊपर अनुसंधान किया गया और नवीन प्रभेदो का विकास किया गया है, एवं इनका जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम से जुड़े गांवों तथा जीविका दीदी के माध्यम से विभिन्न क्षेत्रों में प्रदर्शन भी किया गया। इनका उपयोग करने में एवं उत्पादन में किसी भी प्रकार की चुनौती नहीं है। इनका उपयोग करके आपके शरीर में जिंक आयरन विटामिन ए जैसे आवश्यक भोजन के घटकों का प्रचुर आपूर्ति संभव हो रहा है जो हमारे कुपोषण को कम करने में काफी ज्यादा प्रभावि है ।

कार्यक्रम का संचालन करते हुए रोहित रंजन जी ने जानकारी दी कि यहां पर इस वर्ष अभी खरीफ के मौसम में मक्का धान बाजरा एवं रागी का प्रत्यक्षण किया गया है जिसके परिक्षेत्र का भी भ्रमण टीम के द्वारा संयुक्त रूप से किया गया एवं किसानों से बातचीत के क्रम में यह बात सामने आई कि इसका उत्पादन भी बहुत अच्छा है और खाने में भी यह काफी स्वादिष्ट है।कार्यक्रम में उपस्थित किसानों ने पिछले वर्ष उत्पादित चावल बाजरा एवं गेहूं के बारे में बताया कि इसके उत्पाद का वे सभी अपने दैनिक भोजन के रूप में उपयोग कर रहे हैं। श्री संजीव कुमार सिंह जलपुरा, श्री अजब नारायण सिंह मोहकमपुर, श्री आदित्य सिंह खेसरहिया , श्री पंचानंद सिंह डुमरिया ,अभिमन्यु कुमार सिंह देवरिया, श्री रतन कुमार बिक्रमगंज अमित कुमार सिंह देवरिया ने अपने अनुभव साझा करते हुए जानकारी दी कि जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम की शुरुआत के बाद उत्पादकता में 30 से 35% तथा वार्षिक आय में तीस से चालीस हजार रूपयो की वृद्धि हुई है ।

श्री अंकित कुमार उपाध्याय तकनीकी सहायक सिआरए कार्यक्रम ने जानकारी दीपूर्व में जहां दो ही फसल खेतों में लगा रहे थे वहां पर 3 से 4 फसले भी अब इनके द्वारा ली जा रही है। फसलों के बेहतर जल प्रबंधन के लिए मक्का बाजरा की फसल के साथ ही सब्जियों की खेती बेड प्लांटर मशीन के द्वारा ऊंचे एवं चौड़े बेड पर पर की जा रही है जिससे जिसे जहां एक तरफ पानी की बचत हो रही है वहीं उत्पादन में भी वृद्धि हो रही है और कुछ क्षेत्र में धान एवं गेहूं की सीधी बुवाई की लोकप्रियता बढ़ रही है क्योंकि इसमें प्रति हेक्टेयर औसतन आठ से नौ हजार रुपए की बचत फसल की उत्पादन लागत में में हो रही है।

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