बंगाल ब्यूरो

कोलकाता, 15 अप्रैल । पश्चिम बंगाल में चुनावी दंगल के बीच लड़ाई दिलचस्प हो गई है। राज्य की पुरुलिया क्षेत्र खास तौर पर जनजातीय बहुल क्षेत्र है, वहां तृणमूल और भाजपा के बीच सीधे मुकाबले के आसार हैं। वामदलों या कांग्रेस की ओर से फिलहाल यहां उम्मीदवार का ऐलान नहीं किया गया है। भाजपा ने यहां से मौजूदा सांसद ज्योतिर्मय सिंह महतो को दोबारा टिकट दिया है। वह धुआंधार चुनाव प्रचार कर रहे हैं। सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने उनके खिलाफ शांति राम महतो को चुनावी मैदान में उतारा है। सीधी लड़ाई इन्ही दोनों के बीच होनी है इसलिए शांतिराम महतो, ज्योतिर्मय सिंह महतो पर क्षेत्र के विकास की अनदेखी का आरोप लगा रहे हैं जबकि ज्योतिर्मय सिंह सत्तारूढ़ पार्टी पर केंद्रीय फंड के गबन का आरोप मढ़ रहे हैं।

2019 का जनादेश : बीजेपी के ज्योतिर्मय सिंह महतो छह लाख 68 हजार 107 वोट हासिल कर जीते थे।
तृणमूल कांग्रेस की मृगांका महतो को चार लाख 63 हजार 375 वोट मिले थे। कांग्रेस के नेपाल महतो को महज 84 हजार 477 वोट मिले थे।

 

उल्लेखनीय है कि पुरुलिया लोकसभा क्षेत्र पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले में है। 1995 में यहां आसमान से हथियारों की बारिश हुई थी। पुरुलिया शहर कासल नदी के उत्तरी छोर पर बसा हुआ है। यह अपने लैंडस्केप के लिए जाना जाता है। पुरुलिया जिले का मुख्यालय पुरुलिया ही है। यहां की साक्षरता दर 65 फीसदी है।

इस सीट का मिजाज अलग रहा है। यहां से कांग्रेस को तो एकबार जीत मिली लेकिन सीपीएम को जीत कभी नहीं मिली। यहां से फॉरवर्ड ब्लॉक और ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक विजयी होते रहे हैं। 1957 में पुरुलिया से आईएनडी के विभूति भूषण दास गुप्ता सांसद चुने गए थे। उन्होंने कांग्रेस के महतो नागेंद्र नाथ सिंह देव को हराया था। 1962 में लोकसेवक संघ के भजाहारी महतो सांसद चुने गए थे। 1967 में आएनडी के बी महतो सांसद चुने गए। 1971 में पहली बार यहां से कांग्रेस को सफलता मिली और देबेंद्र नाथ महतो यहां से सांसद चुने गए थे।

1977 में एफबीएल के चितरंजन महतो को सफलता मिली थी। चितरंजन 1980, 1984 और 1989 तक पुरूलिया से लगातार सांसद चुने जाते रहे। 1991 में यहां पर उप चुनाव हुआ जिसमें फॉरवर्ड ब्लॉक (एफबीएल ) के बी महतो सांसद चुने गए लेकिन 1991 में ही फॉरवर्ड ब्लॉक के चितरंजन महतो को फिर से जीत मिल गई। 1996, 1998, 1999 में फॉरवर्ड ब्लॉक के बीर सिंह महतो यहां से सांसद चुने जाते रहे। इसके बाद फॉरवर्ड ब्लॉक में विभाजन हो गया और 2004 में बीर सिंह महतो ने ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक से ताल ठोंकी और सांसद बने। 2006 के उपचुनाव में ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक के नरहरि महतो विजयी हुए थे। 2009 में एआईएफबी के नरहिर महतो ही सांसद चुने गए। 2014 में ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस ने यह सीट कम्युनिस्टों से छीन ली और एआईटीसी के डॉक्टर मृगांका महतो यहां से जीते थे।

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