बंगाल ब्यूरो

कोलकाता। 2021 के विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी के खिलाफ जबरदस्त एंटी इनकंबेंसी और भाजपा के पक्ष में माहौल को देखते हुए पार्टी राज्य की सत्ता तक पहुंचने में कोई भी कोर कसर बाकी रखना नहीं चाहती। इसीलिए बंगाल की सभ्यता संस्कृति और भले मानस के बीच घुल मिल जाने के लिए पार्टी ने बंगालियत को न केवल अपनाया है बल्कि उसे अपनी आदर्श नीतियों और सांगठनिक सोच में भी ढालना शुरू कर दिया है।

खबर है कि बंगाल में आम जनमानस के बीच पार्टी की पैठ सुनिश्चित करने व सांगठनिक‌ जड़ें और गहरी करने का सूत्रधार राज्य के उन सभी जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं को बनाया गया है जो जीवन पर्यंत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े रहे हैं। यानी राज्य में भाजपा की सरकार बनने की पटकथा नीव की ईंट बनकर संघ के स्वयंसेवक लिख रहे हैं। यही वजह है कि बंगाल में भाजपा ने जिन 13 कद्दावर नेताओं को जमीनी तौर पर जनसंपर्क और सांगठनिक जड़े मजबूत करने के लिए भेजा है वे सारे संघी बैकग्राउंड से हैं। बंगा‌ल के आम लोगों के बीच स्वीकार्यता ही भाजपा का मूल लक्ष्य है। यही वजह है कि पिछले दिनों पीएम नरेंद्र मोदी ने भी विश्वभारती विश्वविद्यालय के समारोह में गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की कुछ कविताएं बांग्ला में पढ़ी थीं। दशहरा के दौरान भी भाजपा की ओर से आयोजित विजया सम्मिलनी के मौके पर भोजन की फेहरिस्त में बंगाली व्यंजनों की भरमार थी। इसके अलावा बंगाली थीम पर सांस्कृतिक कार्यक्रम भी हुए।

बंगाल में जमीनी स्तर पर पैठ बनाने के लिए भाजपा ने पांच संगठन महासचिवों तथा आठ मंत्रियों को मैदान में उतारा है। आरएसएस से भाजपा में आए इन महासचिवों को माइक्रो मैनेजमेंट में माहिर माना जाता है। इनमें सुनील बंसल, भीखूभाई दलसानिया, रवींद्र राजू , पवन राणा व रत्नाकर शामिल हैं। इसके अलावा आठ मंत्रियों संजीव बालियान, गजेंद्र सिंह शेखावत, नित्यानंद राय, अर्जुन मुंडा, नरोत्तम मिश्रा, मनसुख मांडविया, केशव प्रसाद मौर्य और प्रह्लाद सिंह पटेल को भी बंगाल के सभी हिस्सों में प्रचार के लिए भेजा गया है।
सूत्रों का कहना है कि शाह के निर्देश पर ये सभी नेता बांग्ला सीखने के साथ बंगाली संस्कृति, खानपान की आदतें भी डाल रहे हैं जो आने वाले दिनों में इन्हें आम लोगों के बीच संपर्क बढ़ाने में मददगार साबित होंगे।

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