◆ एक न्यूनतम समय में सबों के टीकाकरण की गारंटी हो, अन्यथा टीका लेने का कोई मतलब नहीं रह जाएगा.
◆ जनप्रतिनिधियों की भूमिका समझे सरकार, प्रशासन पर जनता को नहीं हो रहा भरोसा.
विजय शंकर
पटना : भाकपा-माले राज्य सचिव कुणाल ने ग्रामीण इलाकों में कोविड के टीका के प्रति भ्रम व हिचक की लगातार बनी स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त की है और इसके लिए मूल रूप से केंद्र व राज्य सरकार के गैरजिम्मेवाराना रुख को दोषी करार दिया है. कहा कि टीका को लेकर सरकार ने जो असंवेदनशीलता दिखलाई है, उसके कारण उसने जनता के बीच अपना भरोसा खो दिया है. प्रशासन के लोगों को देखकर लोग भाग खड़े हो रहे हैं क्योंकि उनके मन में यह बात गहरे बैठी हुई है कि टीका लेने से मौत हो जाती है.
दूसरे डोज की समयावधि के बारे में सरकार के लगातार बदलते बयान से इसे और बल मिला है. अनेक घटनाएं ऐसी भी हैं जिसमें टीका लेने के 2-4 दिन के भीतर लोगों की मौत हो गई. मृत्यु के कारणों की जांच नहीं होने से माहौल और संदेहास्पद बनता जा रहा है. ऊपर से बाबा रामदेव सरीखे लोग बेधड़क जनता के बीच मूर्खता और अंधविश्वास फैलाने में लगे हुए हैं.
जनता को समझाने-बुझाने में जनप्रतिनिधियों की बड़ी भूमिका हो सकती थी. लेकिन मोदी सरकार के रास्ते आगे बढ़ रही बिहार सरकार पंचायतों के कार्यकाल को 6 माह बढ़ाने की बजाए नौकरशाही के हवाले करने पर तुली हुई है. जनप्रतिनिधियों की भूमिका को कम करना इस भयावह दौर में आत्मघाती साबित होगा. यहां तक कि शासक गठबंधन से भी इस कदम की आलोचना हो रही है, लेकिन नीतीश कुमार अपनी जिद पर अड़े हुए हैं. और प्राप्त खबर के अनुसार सरकार ने पंचायतों को भंग भी कर दिया है.
कहा कि उदाहरणस्वरूप, जहानाबाद के कई गांवों से हमें खबर मिली है कि जब जिलाधिकारी के नेतृत्व में प्रशासन वैक्सीनेशन के गांव पहुंचा तो लोग या तो भाग खड़े हुए या फिर अपने घरों में बंद हो गए. तब प्रशासन ने हमारी पार्टी के घोषी विधायक रामबली सिंह यादव से सहयोग मांगा. स्थानीय विधायक के कहने पर लोग घरों से बाहर निकले और फिर समझाने-बुझाने के बाद टीका भी लगवाया. सरकार यदि टीकाकरण के प्रति थोड़ी भी संवेदना रखती है तो उसे जनप्रतिनिधियों को आगे करके इस अभियान को चलाना चाहिए, तभी लोगों का भ्रम व हिचक दूर होगा.
एक तरफ टीका न लेने की समस्या है तो दूसरी ओर उसकी भारी कमी का मामला बदस्तूर जारी है. सबों का टीकाकरण ही हमें कोविड से निजात दिला सकता है, लेकिन यह बेहद शर्मनाक है कि पड़ोसी उत्तर प्रदेश और हमारा राज्य इस मामले में पूरे देश में सबसे निचले पायदान पर हैं. हम अभी तक 1 प्रतिशत आबादी का ही टीकाकरण कर सके हैं. 18 वर्ष से ऊपर के लोगों के लिए टीका दुर्लभ बना हुआ है. ऑनलाइन पंजीकरण, स्लॉट अलॉटमेंट आदि ने भी इसमें काफी बाधा डाली है. 45 से 60 आयु समूह के टीकाकरण की गति भी काफी धीमी है. कोरोना के लगातार रूप बदलते रहने के कारण न्यूनतम नियत समय में ही टीकाकरण का कोई मतलब रहेगा. विशेषज्ञों का मानना है कि अभी ही कोविशील्ड टीका का असर वर्तमान स्ट्रेन पर काफी घट गया है, इसलिए टीकाकरण में देरी घातक होगी.
विगत विधानसभा चुनाव के समय प्रधान मंत्री महोदय ने मुफ्त टीका का वादा किया था, लेकिन अब वे इससे भाग रहे हैं. बिहार सरकार को उनसे वादा पूरा करने की मांग करनी चाहिए. इसी तरह, टीकाकरण के लिए केन्द्र सरकार के बजट में आवंटित 35000 करोड़ की राशि में अपने हिस्से के लिए भी केंद्र सरकार पर दबाव बनाना चाहिए.
हमारी मांग है कि न्यूनतम समय में, बेहतर होगा तीन महीने के अंदर हर आयु समूह के लोगों के टीकाकरण की गारंटी की जाए और इसके लिए जो भी आवश्यक कदम जरूरी हों, उसे तत्काल उठाया जाए. जरूरत के हिसाब से विदेशों से भी टीका आयात किया जाए. टीकाकरण प्रक्रिया का पंचायत स्तर तक विस्तार किया जाए और स्कूल, वार्ड, आंगनबाड़ी केंद्रों व चलंत टीका केन्द्रों के जरिए इसे हर हाल में पूरा किया जाए.
साथ ही, सरकार को जनता के बीच जागरुकता पैदा करने का भी गंभीर प्रयास करना चाहिए. जनता में गाय, गोबर, गोमूत्र से कोरोना के उपचार जैसे अंधविश्वासों का प्रचार करनेवालों, भ्रम, अंधविश्वास और अवैज्ञानिक सोच फैलाने वालों के खिलाफ कड़े कदम उठाए जाएं.