कृषि ग्रोथ कई वर्षो से निगेटिव, फिर विकास दर 2.5 फीसदी कैसे

नवराष्ट्र मीडिया ब्यूरो 

पटना । भाकपा-माले विधायक दल के नेता महबूब आलम ने कहा है कि 25 फरवरी को बिहार विधान मंडल में महामहिम राज्यपाल का अभिभाषण और उपमुख्यमंत्री द्वारा पेश आर्थिक सर्वे झुठ का पुलिंदा है. एक बार फिर सरकर आंकड़ों की बाजीगरी के जरिए बिहार के सच को मानने से इंकार कर रही है.
राज्य सरकार का दावा है कि कोविड महामारी व लॉकडाउन के बावजूद राज्य सरकार के व्यय में 13 प्रतिशत वृद्धि हुई. प्रति व्यक्ति आय में भी बढ़ोतरी हुई है और विकास दर 2.5 फीसदी रही. यह पूरी तरह झूठ व हास्यास्पद है.
राज्य में कृषि विकास लगातार कई वर्षों से निगेटिव है, फिर ऐसा क्या हुआ कि उसी को आधार बनाकर सरकार 2.5 फीसदी विकास का दावा कर रही है. दरअसल, कृषि नहीं बल्कि कृषि से जुड़े क्षेत्रों यथा मछली उत्पादन, वानिकी सहित अन्य सेक्टरों में मात्रा में हुए थोड़े बदलाव को प्रतिशत में बहुत बढ़ा-चढ़ाकर सरकार दिखला रही है.
कंस्ट्रक्शन क्षेत्र को भी वह इसका आधार बना रही है, जो पूरी तरह से लूट-खसोट का क्षेत्र बन गया है. उद्योग पूरी तरह से बिहार में ध्वस्त हैं. इसलिए उसका भी कोई योगदान नहीं हो सकता है.

यदि विकास दर सच में 2.5 फीसदी है; तो बेरोजगारी, गरीबों की संख्या आदि में बिहार नंबर एक पर क्यों है? पोषण, स्वास्थ्य का सबसे खराब हाल क्यों है, जैसा कि नीति आयोग की रिपोर्ट ने खुलासा किया था. जाहिर सी बात है कि विकास दर का यह दावा पूरी तरह अवास्तविक है, जिसका रियल सेक्टर के ग्रोथ से कोई लेना देना नहीं है.

सरकार का यह भी दावा है कि उसने राजकोषीय घाटे व ऋण दायित्वों का बखूबी पालन किया, गलत है. कैग की रिपोर्ट वित्तीय वर्ष 2019-20 के बारे में कहती है कि राज्य में सार्वजनिक ऋण लगातार बढ़ रहा है, लेकिन कैपिटल व्यय लगातार निगेटिव दिशा में है. इसका मतलब है कि सार्वजनिक ऋण पूंजी के निर्माण में नहीं लगाया जा रहा है. सरकार इस सच को भी छुपा रही है.

कोराना काल में सरकार का दावा है कि वह लोगों के साथ खड़ी थी, जबकि पूरी दुनिया ने देखा कि किस प्रकार दूसरी लहर के दौरान राज्य सरकार पंगु बनी रही. स्वास्थ्य व्यवस्था के कमजोर ढांचे ने कई लोगों की जिंदगियां खत्म कर दी. सरकार का दावा है कि कोरोना संक्रमण से मृत व्यक्ति के परिवार को 4 लाख का अनुदान दिया जा रहा है, लेकिन उसने यह संख्या नहीं बताई. दरअसल, सरकार कोविड लक्षणों से मरने वालों की असली संख्या लगातार छुपाती रही और केवल उन्हीं को कोरोना के कारण मृत पाया जिनका टेस्ट पॉजिटिव था. हमारी पार्टी ने विधानस सभा के अंदर अपनी रिपोर्ट सरकार को दी थी, जिसमें हमने सरकारी रिपोर्ट की तुलना में 20 गुना अधिक लोगों की मौत की जांच की थी. सरकार इसपर पूरी तरह खामोश है.

भूमि विवादों में प्रशासन भूस्वामियों के पक्ष में ही खड़ा रहता है न कि गरीबों को जमीन पर अधिकार दिलाने में. उलटे आज बरसो-बरस से बसे गरीबों को उजाड़ने का ही अभियान चल रहा है. भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की बात करने वाली सरकार के हर विभाग में संस्थाबद्ध भ्रष्टाचार चरम पर है. 1990 में इंदिरा आवास में 3000 रु. कमीशन था, अब यह बढ़कर 30 हजार हो गया है. नल-जल, मनरेगा आदि तमाम योजनाएं भ्रष्टाचार की चपेट में हैं. कुलपतियों की नियुक्ति में भ्रष्टाचार है. मनरेगा में सबसे कम काम वाले राज्यों में बिहार शामिल है.

‘सशक्त महिला-सक्षम महिला’ का राग अलापने वाली सरकार यह बताए कि अब तक वह आशाकर्मियों को सरकारी कर्मचारी क्यों नहीं मानती? उन्हें न्यूनतम मानदेय भी क्यों नहीं देती? कोरोना काल का पारिश्रमिक रसोइयों को क्यों नहीं दिया गया? क्या इन तबकों को सशक्त किए बिना महिलाओं को सशक्त किया जा सकता है? महिला सशक्तीकरण के दावे की कलई गायघाट शेल्टर होम कांड ने एक बार फिर से बेनकाब कर दिया है.

‘युवा शक्ति-बिहार की प्रगति’ का नारा देने वाली सरकार 19 लाख रोजगार का जवाब दे, जिसकी घोषणा उसने चुनाव के समय की थी.

‘हर खेत तक सिंचाई-पानी’ के बारे में यदि सरकार सचमुच चिंतित होती तो अब तक सोन नहर प्रणाली का जीर्णाद्धार हो जाता, कदवन जलाशय योजना चालू हो जाता. कहीं भी किसानों के फसलों का बाजिब दाम नहीं मिल रहा है. इस वर्ष खरीफ में 44 लाख 91 हजार मैट्रिक धान की अधिप्राप्ति सफेद झूठ है. डबल इंजन की सरकार आज तक बाढ़-सुखाड़ का स्थायी समाधान नहीं कर सकी, अब अलग से बाढ़ नियंत्रण प्रभाग बना रही है. तटबंध निर्माण की प्रक्रिया महज लूटने-खाने की योजना भर है. मक्का व धान तथा अन्य खाद्य पदार्थों से इथेनॉल बनाकर सरकार बिहार को बर्बाद कर रही है. यह राज्य की जनता को भुखमरी की तरफ धकेल देना है.

सरकार बिजली में व्यापक सुधार का दावा करती है, लेकिन यह नहीं बताती कि कैसे आज तेजी से बिजली का निजीकरण किया जा रहा है. किसानों को कृषि के लिए आज तक मुफ्त बिजली नहीं मिली.

शिक्षा व्यवस्था का तो सबसे खराब हाल है. नामांकन के आधार पर सरकार अपनी पीठ थपथपाती है, लेकिन इस बीच कई स्कूल बंद कर दिए गए, लाखों पद शिक्षकों के खाली पड़े हैं. शिक्षकों को गैरशैक्षणिक कार्य में लगा दिया गया है. बिहार की शिक्षा व्यव्स्था आज पूरी तरह रसातल में जा चुकी है.

बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं में विस्तार का दावा ढोंग व छलावा है. स्वास्थ्य व्यवस्था को ठीक करने की बजाए सरकार अब ‘सबके लिए अतिरिक्त स्वास्थ्य सुविधा’ उपलब्ध कराने का ढोंग कर रही है. डॉक्टरों, नर्सों, कंपाउंडर, ड्रेसर आदि के लाखों पद अब भी खाली पड़े हैं.

सामाजिक न्याय, बराबरी, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि जरूरतें पूरी किए बिना सामाजिक सुधार ढोंग है.

मदरसों को लंबे अर्से से अनुदान बंद है. किशनगंज में अभी तक एएमयू की शाखा शुरू नहीं हो सकी है.
पूरे राज्य में दलितों-महिलाओं-अल्पसंख्यकों-गरीबों पर हमले बढ़े हैं, सामंती-अपराधियों का तांडव बढ़ा है. ऐसा लगता है कि बिहार में आज कोई शासन ही नहीं रह गया है.

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