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नयी दिल्ली :   इस्पात मंत्री राम चन्द्र प्रसाद सिंह ने आज उद्योग भवन में, भारतीय इस्पात अनुसंधान और प्रौद्योगिकी मिशन (एसआरटीएमआई) द्वारा प्रस्तुत “लौह और इस्पात उद्योग में प्लास्टिक अपशिष्ट उपयोग” शीर्षक वाली रिपोर्ट के निष्कर्षों पर विचार करने के लिए इस्पात मंत्रालय के सभी अधिकारियों की एक बैठक की अध्यक्षता की । इसमें रिपोर्ट पर एक  विस्तृत प्रस्तुति दी गई। यह देखा गया है कि कोक बनाने, ब्लास्ट फर्नेस आयरन बनाने, इलेक्ट्रिक आर्क फर्नेस स्टील बनाने जैसी विभिन्न प्रक्रियाओं में प्लास्टिक कचरे के उपयोग के लिए लौह और इस्पात उद्योग बड़े पैमाने पर काम कर सकता है और कचरे को सम्पदा में  परिवर्तित करने के माननीय प्रधान मंत्री के दृष्टिकोण को सही मायने में साकार कर सकता है।

माननीय इस्पात मंत्री ने मामले को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के साथ उठाने का निर्देश दिया ताकि स्टील क्षेत्र को भी प्लास्टिक कचरा प्रबंधन नियम 2016 के तहत अंतिम उपयोगकर्ता के रूप में शामिल किया जा सके और आगे विचार-विमर्श और बढ़ावा देने के लिए एक राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया जा सके।

चूंकि अधिकांश प्लास्टिक अपशिष्ट, उद्योग द्वारा उपयोग किए जाने वाले कोयले की तुलना में, उच्च ऊर्जा के अलावा कार्बन और हाइड्रोजन का स्रोत हैं और राख, क्षारीय पदार्थों  आदि से मुक्त हैं | इसलिए प्लास्टिक कचरे के उपयोग से इस  कचरे के कुशल और सुरक्षित निपटान के बड़े राष्ट्रीय मुद्दे को संबोधित करने के अलावा इस्पात उद्योग को कई तरह से मदद मिलेगी जैसे आयातित कोयले पर निर्भरता कम होना,  , ग्रीन हाउस गैस  उत्सर्जन को कम करना, दक्षता में सुधार करना आदि। एकल उपयोग वाले प्लास्टिक सहित सभी प्रकार के प्लास्टिक का उपयोग लौह और इस्पात उद्योग में किया जा सकता है। दुनिया भर के कई देश जैसे जापान, यूरोप आदि स्टील बनाने में इस तरह के प्लास्टिक का उपयोग काफी समय से कर रहे हैं।

यह उम्मीद की जाती है कि 1 किलोग्राम प्लास्टिक का उपयोग लगभग 1.3 किलोग्राम कोयले की जगह ले लेगा और लौह और इस्पात उद्योग में वर्तमान क्षमता के आधार पर हर साल लगभग 2-3 मिलियन टन प्लास्टिक कचरे का उपभोग करने की क्षमता है जो  2030-31 तक 8 मिलियन टन से अधिक हो जायेगी | इस प्रकार, लोहा और इस्पात उद्योग प्लास्टिक कचरे का प्रमुख उपयोगकर्ता हो सकता है। वही ।आज भारत में प्रति व्यक्ति प्लास्टिक की खपत लगभग 13.6 किलोग्राम है, जबकि विश्व औसत लगभग 30 किलोग्राम है। भारत हर साल लगभग 18 मिलियन टन प्लास्टिक की खपत कर रहा है। यह संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी जैसे उन्नत देशों की तुलना में बहुत कम है जहां प्रति व्यक्ति खपत 80-140 किलोग्राम के बीच भिन्न है। इस प्रकार, यह अनुमान  है कि भारत में भी, भविष्य में प्रति व्यक्ति खपत में वृद्धि हो सकती है और लौह और इस्पात उद्योग आने वाले समय में सबसे पर्यावरण के अनुकूल तरीके से प्लास्टिक कचरे का सबसे अच्छा अंतिम उपयोगकर्ता होगा।प्लास्टिक कचरे का उपयोग आज हमारी दुनिया के सामने सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है। यह सबसे महत्वपूर्ण पर्यावरणीय और नैतिक मुद्दों में से एक बन गया है। फूड रैपर, प्लास्टिक बैग और पेय की बोतलें जैसे सिंगल-यूज प्लास्टिक लैंडफिल, नदियों को तेजी से भर रहे हैं, और उन्हें बस इतनी तेजी से नष्ट  नहीं किया जा सकता है। इस प्रकार, लोहा और इस्पात उद्योग संसाधन दक्षता को बढ़ावा देगा और एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा ।

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