बिमल चक्रवर्ती
धनबाद : आरएसएस धनबाद महानगर के स्वयंसेवक पंकज सिंह ने दैनिक देशप्राण के पत्रकार बिमल चक्रवर्ती से बातचीत करते हुए कहा कि 26 अक्टूबर 1947 को जम्मू- कश्मीर के आखिरी डोगरा शासक महाराजा हरि सिंह ने कश्मीर के विलय के लिए पाकिस्तान की जगह भारत को चुना था और विलय के दस्तावेज पर अपने हस्ताक्षर किए थे। इस समझौते के बाद जम्मू- कश्मीर की पूर्व स्वतंत्र रियासत भारत संघ में शामिल हो गई थी। उस पूरा देश ख़ुशी के मारे झूम रहा था, चारों ओर नई सुहावनी सुबह के गीत गुनगुनाए जा रहे थे, झूमे भी क्यों नहीं, गाए भी क्यों नहीं, देश को नई सुबह के साथ आजादी जो मिलने वाली थी । आजादी का उत्सव उसी प्रकार का उत्सव नजर आ रहा था, जैसे 14 वर्ष वनवास काट कर मर्यादा पुरुषोतम भगवान श्रीराम अयोध्या लोटे थे, जिनके अयोध्या आने की ख़ुशी में पूरी अयोध्या नगरी को सजाया गया था, ठीक उसी प्रकार की खुशियां ही इस राष्ट्रीय पर्व में देखने को मिल रही थी । लेकिन तभी बीच देश के शत्रु ने देश में साम्प्रदायिकता का बीज बो दिया, चारों तरफ की ख़ुशी एक साथ मायूसी में बदल गई, जिससे देश के खास से लेकर आम जनमानस तक के ह्रदय को गहरा अघात लगा। भारत माता के वक्ष-स्थल पर एक तरह से जुल्मों का आरा चलाकर उसे लहूलुहान किया गया। और देश के शत्रुओं ने देश को धर्म के आधार पर दो टुकड़ों में विभाजित करने का षड्यंत्र चला दिया, जिसके कारण षड्यंत्र इतना भयावह था, कि इस षड्यंत्र ने देश के अंदर लोगों को रक्त की होली खेलने पर मजबूर कर दिया ओर सत्ता के लालची लोगों ने देश को दो हिस्सों में बाँट दिया, एक भाग का नाम हिन्दुस्तान और दूसरे भाग का नाम पाकिस्तान रखा गया, बल्कि दोनों देशों का बंटवारा धर्म के आधार पर किया गया था। पाकिस्तान में जितने भी हिन्दू परिवार थे, उनको गाजर मूली की तरह काटा जाने लगा , माता, बहनों की इज्जत को सरेआम बेआबरू किया जाने लगा ओर पाकिस्तान में जिन हिन्दुओ की निर्मम हत्या की गई उनके शवों को ट्रेनों में लादकर भारत भेजा जाने लगा। उसके बाद भारत में भी इसका प्रतिकार किया गया । इस दौरान देश को अपनी मा की भांति प्यार करने वाले कई संगठन इस हिंसा से देश के लोगों को बचानें में लगे, जिनमें एक राष्ट्रवादी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सरसंघचालक श्री माधव सदाशिव राव गोलवलकर ने देश भर में लग रहे, संघ के संघ शिक्षा वर्गो को बीच में ही छोड़ कर लोगो की सहायता करने की बात कही, बस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं ने इस सूचना को सुनते ही सोचना बंद कर दिया ओर दिन देखा न रात देखी बस लग गए, लोगो की सहायता के लिए, इस बंटवारे के दौरान काफी संघ के कार्यकर्ताओं ने समाज की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहूतियाँ देकर भी समाज का रक्षण किया। वहीं भारत जब स्वतंत्र हुआ तब देश में छोटी-बड़ी 565 रियासतें थीं । जम्मू-कश्मीर भी उन 565 में से एक रियासत थी और महाराजा हरि सिंह उसके शासक थे। इन सभी रियासतों को भारत में विलीन कराने का श्रेय प्रथम गृहमंत्री लौहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल को ही जाता है। जूनागढ़, हैदराबाद, भोपाल जैसे पेचीदा मसले भी सरदार पटेल ने बड़ी कुशलता से और जरुरत पड़ने पर बल प्रयोग कर सुलझाए थे। जम्मू-कश्मीर का मसला भी वे बड़ी आसानी से सुलझा सकते थे। पर प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इस मसले को अपने हाथों में ले लिया और हमेशा के लिए भारत के लिए एक सरदर्द बना कर छोड़ दिया।
नेहरू को कश्मीर के नेता शेख अब्दुल्ला से बहुत अधिक स्नेह था और अब्दुल्ला के हाथ में राज्य की धुरी सौंपने की योजना नेहरू की थी। नेहरू ने शेख अब्दुल्ला के प्रति स्नेह के चलते कश्मीर मसले को सरदार पटेल से छीना और उसे सुलझाने के बजाय और भी पेचीदा बना दिया। महाराजा हरि सिंह को नेहरू की इस मंशा का पता चल गया था, इसलिए वे उनके रहते भारत के साथ विलय को लेकर चिंतित थे। इधर पाकिस्तान सरकार जिन्ना के नेतृत्व में महाराजा पर दबाव बना रही थी, ताकि वे उनके राज्य को पाकिस्तान के साथ मिला दे। पर महाराजा उसके लिए भी तैयार नहीं थे। क्योंकि उनको राज्य के हिन्दू प्रजा की चिंता थी ।
पाकिस्तान ने युद्ध का सहारा लेकर कबाइलियों को कश्मीर पर आक्रमण करने के लिए उकसाना शुरू कर दिया। अब महाराजा खुद को बड़ी मुश्किल में फंसा हुआ पा रहे थे। ऐसे नाजुक दौर में महाराजा की सहायता के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सामने आया और महाराज को यह समझाने का सफल प्रयास किया कि भारत के साथ राज्य का विलय करने में भी उनकी और राज्य की जनता की भलाई है। राज्य की स्थिति बेहद नाजुक हो चुकी थी। सरदार पटेल और महात्मा गांधी ने भी महाराजा को मनाने का प्रयास किया, पर महाराजा नेहरू की अधिसत्ता को मानने के लिए तैयार नहीं थे। ऐसी स्थिति में गृहमंत्री सरदार पटेल ने राज्य के प्रधानमंत्री मेहरचंद महाजन के माध्यम से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सरसंघचालक माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर जिनको श्री गुरुजी भी कहा जाता था, को सन्देश भेजा कि वे महाराजा को भारत में विलय के लिए मनाने का प्रयास करें। श्री गुरुजी ने, बिना किसी विलम्ब के सरदार का प्रस्ताव स्वीकार किया और अपने सारे कार्यक्रम रद्द कर, वे नागपुर से दिल्ली होते हुए सीधे श्रीनगर पहुंचे। मेहरचंद महाजन और पंडित प्रेमनाथ डोगरा जी के मध्यस्थता से श्री गुरुजी और महाराजा हरि सिंह के बीच बैठक तय हो गई। 26 अक्टूबर 1947 को, महाराजा हरि सिंह ने भारत के साथ विलय के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर कर दिए और इस प्रकार जम्मू-कश्मीर की रियासत भी सम्पूर्ण रूप से भारत का एक अभिन्न हिस्सा बन गई। महाराजा हरि सिंह को मनाने में संघ के सरसंघचालक श्री गुरूजी ने इस प्रकार बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके बाद किस प्रकार संघ के स्वयंसेवकों ने श्रीनगर के हवाई अड्डे की रात-रात में मरम्मत कर भारतीय सेना के उतरने की व्यवस्था की। किस प्रकार अपनी जान पर खेलकर संघ के निडर स्वयंसेवकों ने दुश्मन की सीमा में गिरे गोला-बारूद के बक्से उठाकर अपनी सेना के शिविर में पहुंचाये, जो लोग संघ पर आए दिन उंगलियां उठाते हैं, वे जान लें कि संघ के कारण ही जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा बना है। संघ के स्वयंसेवकों ने जो बलिदान दिए उसके कारण पाकिस्तान के जम्मू-कश्मीर को जितने के मनसूबे कामयाब नहीं हो सके।