सुप्रसिद्ध गीतकार और शायर शिवकुमार बिलगरामी से वरिष्ठ पत्रकार श्री राम शॉ की बातचीत

विचारों के गहन चिंतन मंथन से उद्भूत काव्य ही देर तक टिकता है

 

By SHRI RAM SHAW

नई दिल्ली । “ऐसा नहीं है कि वर्तमान में जो लिखा जा रहा है वह सब सतही और निष्प्रभावी है ।बहुत से लोग बहुत अच्छा लिख रहे हैं । लेकिन बड़ी तादाद में ऐसे रचनाकार भी हैं जो मंच के लोभ लालच में काव्य लेखन कर रहे हैं । विगत कुछ वर्षों में मंचीय कवि बनने की एक होड़ सी देखने को मिली है । कुछ लोगों को मंच पर मिली आशातीत सफलता ने नए कवियों में यह भाव पैदा किया कि वह पेशेवर कवि के रूप में भी स्वयं को स्थापित कर सकते हैं । इसी कारण वह प्रतिस्पर्धी और प्रतिक्रियात्मक साहित्य लेखन में फंस गए । इससे उनके काव्य लेखन का स्तर गिर गया । विचारों के गहन चिंतन मंथन से उद्भूत काव्य ही देर तक टिक पाता है अन्यथा उसमें हल्कापन आ जाना स्वाभाविक है ।” ये विचार सुप्रसिद्ध गीतकार और शायर शिवकुमार बिलगरामी ने व्यक्त किए ।

प्रस्तुत है वरिष्ठ पत्रकार श्री राम शॉ से बातचीत पर आधारित एक्सक्लूसिव इंटरव्यू के महत्वपूर्ण अंश :

आपकी पहचान मूलतः गीतकार और शायर के रूप में है। आपके गीत ग़ज़लों को बहुत से लोगों ने गाया है । क्या आप बताएंगे किन-किन लोगों ने आपके गीत ग़ज़लों को गाया है ?

यह सच है कि मेरी पोएट्री को बहुत से लोगों ने अपनी आवाज दी है । कुछ वर्ष पहले मेरे एक गीत – जय हिंद वंदे मातरम् – को अनुराधा पौडवाल , जसपिंदर नरूला , सुरेश वाडेकर , शान, कैलाश खेर , के एस चित्रा , साधना सरगम , महालक्ष्मी अय्यर , हेमा सरदेसाई जैसे कई मशहूर गायकों ने अपनी आवाज दी । इसके अतिरिक्त मेरे एक गीत – पृथ्वी मंथन – को उड़ीसा की सुप्रसिद्ध गायिका सुष्मिता सेन ने गाया है । इस गीत को गोल्डन पीकॉक सहित कई इंटरनेशनल अवार्ड मिले हैं । श्री गणेश स्तुति और दुर्गा स्तुति सहित मेरे कई भजनों को आख्या सिंह ने अपनी आवाज दी है और यह संस्कार म्यूजिक द्वारा रिलीज किए गए हैं । मेरी ग़ज़लों को शाद गुलाम अली रियाज खान राजेश सिंह , सतीश मिश्रा , सरिता और निशांत दक्ष और सक्षम जैसे मशहूर गायकों ने अपनी आवाज दी है । गाये गये गीत ग़ज़ल अलग अलग यूट्यूब चैनलों पर उपलब्ध हैं ।

आप काव्य लेखन का कार्य कब से कर रहे हैं । क्या आपकी कोई पुस्तकें भी प्रकाशित हुई हैं ?

काव्य लेखन में मेरी रुचि कई वर्षों से है । लेकिन पिछले 10 वर्षों से मैंने थोड़ा ध्यान देकर लिखना शुरू किया । पहले मैं हिंदी में गीत और मुक्तक लिखता था । लेकिन लगभग 10 वर्ष पहले मेरी मुलाकात हिंदी उर्दू के उस्ताद शायर स्वर्गीय सर्वेश चंदौसवी से हुई । उन्होंने मुझे ग़ज़ल लेखन की ओर प्रेरित किया । न केवल प्रेरित किया बल्कि ग़ज़ल लेखन की बारीकियों को भी बताया । मेरा पहला ग़ज़ल संग्रह – नई कहकशां – प्रकाशित हुआ । उसके बाद वर्ष 2018 में मेरा दूसरा ग़ज़ल संग्रह -वो दो पल – प्रकाशित हुआ । इस ग़ज़ल संग्रह को उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान से अदम गोंडवी सम्मान प्राप्त हुआ है इस ग़ज़ल संग्रह से 40 से अधिक ग़ज़लों को गाया गया है ।

आपकी पोयट्री में ऐसा क्या खास है कि इतने लोग आपकी पोयट्री गा रहे हैं ?

यह तो वही लोग बताएंगे जो मेरी पोएट्री गा रहे हैं । लेकिन गाने वाली पोएट्री को छंद की कसौटी पर खरा उतरना होता है । इसके अलावा लय और ताल के हिसाब से भी उसे परफेक्ट होना चाहिए । विचारों की कनेक्टिविटी और विषय में एकरूपता ऐसी विशेष बातें हैं जिन्हें गायक पसंद करते हैं । सरल , सुबोध भाषा और भावों की प्रबलता भी गायकों को पोएट्री गाने के लिए आकर्षित करती है ।

आपने कई विषयों पर लिखा है लेकिन आपका पसंदीदा विषय क्या है ?

जी हां , मैंने प्रेम , अध्यात्म , मानवीय संबंध , प्रकृति प्रेम , आधुनिक समाज , राष्ट्र प्रेम , संबंधों में बिखराव , पारिवारिक अलगाव , बिखरते संबंध , आप्रवासन , नारी उत्पीड़न , अकेलापन , शोषण , भौतिकता के प्रति अंधी दौड़ जैसे विविध विषयों पर लिखा है । लेकिन प्रेम और भक्ति पर मैंने सर्वाधिक लिखा है और यही मेरे पसंदीदा विषय भी हैं ।

आपके लेखन में एक अलग तरह की गहराई देखने को मिलती है । आपकी लिखी शिव स्तुति , राम स्तुति हनुमत ललिताष्टकम् अपने आप में अनूठी रचनाएं हैं । इनकी प्रेरणा कहां से मिलती है ?

जिनके लिए लिखते हैं वही प्रेरणा देते हैं । काव्य लेखन केवल शब्द , छन्द और भाव का सम्मिश्रण नहीं है । शब्दों और छन्दों की विशद जानकारी के अतिरिक्त भाव उत्सर्जन के लिए दैवीय कृपा भी चाहिए । आपकी कल्पना शक्ति और संवेदनशीलता आपके लेखन को विशिष्ट बनाती है ।आप जिस विषय में जितना अधिक डूबेंगे उसे उतना ही बेहतर ढंग से व्यक्त कर पाएंगे ।

इन दिनों बहुत से लोग काव्य लेखन कर रहे हैं । लेकिन सब कुछ बहुत सतही और निष्प्रभावी लगता है । इसका क्या कारण है ?

ऐसा नहीं है कि वर्तमान में जो लिखा जा रहा है वह सब सतही और निष्प्रभावी है ।बहुत से लोग बहुत अच्छा लिख रहे हैं । लेकिन बड़ी तादाद में ऐसे रचनाकार भी हैं जो मंच के लोभ लालच में काव्य लेखन कर रहे हैं । विगत कुछ वर्षों में मंचीय कवि बनने की एक होड़ सी देखने को मिली है । कुछ लोगों को मंच पर मिली आशातीत सफलता ने नए कवियों में यह भाव पैदा किया कि वह पेशेवर कवि के रूप में भी स्वयं को स्थापित कर सकते हैं । इसी कारण वह प्रतिस्पर्धी और प्रतिक्रियात्मक साहित्य लेखन में फंस गए । इससे उनके काव्य लेखन का स्तर गिर गया । विचारों के गहन चिंतन मंथन से उद्भूत काव्य ही देर तक टिक पाता है अन्यथा उसमें हल्कापन आ जाना स्वाभाविक है ।

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