धार्मिक एवं आध्यात्मिक चिंतक और कायस्था फाउंडेशन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अजीत सिन्हा ने सनातन धर्म के मूल सर्वव्यापी अपरंपार उर्जा के परम स्त्रोत निराकार में ‘सदाशिव’ को और साकार स्वरूप में ‘श्री हरि’ (नारायण /विष्णु) को दुनिया (संसार) का मालिक(परमात्मा) बताया है जिसमें अखिल ब्रह्मांड समाहित है और इसके अंतर्गत भूलोक सहित कई लोक हैं जैसे विष्णु लोक, शिव लोक, ब्रह्म लोक, पाताल लोक, यम लोक इत्यादि। और इसी ब्रह्मांड में कई ग्रह – नक्षत्र भी हैं जिसमें सूर्य, चंद्रमा इत्यादि भी समाहित है।
विदित हो कि विष्णु के नाभि कमल से ब्रह्मा की प्रकटीकरण हुई है जिन्हें सृजन का अधिकार दिया गया और ब्रह्मा के रौद्र (क्रोध) से शिव की प्रकटीकरण हुई है जिनमें संहार करने की शक्ति है और यहां पर यह जानना जरूरी है कि शिव – शंकर सदाशिव के एक महत्वपूर्ण अंश हैं न कि सदाशिव ही शिव हैं। श्री हरि विष्णु ने अपने अंतर्गत ब्रह्मांड के जीवों के पालन – पोषण के अधिकार को रखा है।
श्री हरि विष्णु, ब्रह्मा, शिव त्रिदेवों की केंद्रीय शक्ति के रूप में श्री चित्रगुप्त की प्रकटीकरण ब्रह्मा जी के एक हजार वर्षो की घोर तपस्या के उपरांत हुई है जिनमें त्रिदेवों की शक्ति संचित है और इनके अंतर्गत सभी लोकों सहित सम्पूर्ण ब्रह्मांड का विधान (कानून) है इस हेतु वे विधाता कहे जाते हैं कहने का तात्पर्य यह है कि श्री चित्रगुप्त वैसे विधाता हैं जिन पर संसार में व्याप्त 84 लाख योनियों के भाग्य निर्भर है क्योंकि ये सभी के भाग्य के लेखक हैं और साथ में इनके अंतर्गत प्राणियों सहित जीवों का भाग्य-दुर्भाग्य भी रहता है जिसे वे अपने 14 यमों के माध्यम से संपादित कराते हैं। किसको कैसी जीवन जीनी है, किसको कितने सुख – दुःख प्राप्त होने हैं, किसको किस गति के अंतर्गत इस दुनिया से प्रस्थान करनी है?, किसको मोक्ष नसीब होनी है, किसको मान – सम्मान, पद – प्रतिष्ठा, यश – अपयश कितनी प्राप्त होनी है यह व्यक्ति के कर्मों की गणना के उपरांत त्रिदेवों सहित श्री चित्रगुप्त की इच्छा को देखकर ही निर्गत की जाती है और इसमे अंतिम फैसला श्री चित्रगुप्त ही लेते हैं। परमात्मा व विधाता के फैसले में प्राणियों का हस्तक्षेप नहीं होता है और प्राणियों के सत्कर्म ही उन्हें देवों के कोप – प्रकोप से बचाते हैं और उनकी रक्षा होती है और अच्छे कर्म करने वालों को सद्गति प्राप्त होती है और वे ही विष्णु लोक, शिव लोक और ब्रह्म लोक को प्राप्त करते हैं या जन्म – मरण के बंधन से मुक्त हो जाते हैं।
जब से पृथ्वी है या जीवन है तब से सनातन धर्म है जो सद्गति प्राप्त करने के मार्ग को धारण करना सिखाती है और इस धर्म की निर्भरता वेद – पुराण, उपनिषद्, श्रुति इत्यादि पर है इसलिये सभी मानव को इसका अध्ययन कर इसे धारण करना चाहिए।
बोकारो (झारखण्ड) से अजित सिन्हा की रिपोर्ट