आशा और लता मंगेशकर दोनों बहनें भारत की दो महान गायिकाओ में सुमार
आशा और लता मंगेशकर भारत की दो महान गायिकाएं हैं। रिश्ते में बहन हैं। अब तो लता मंगेशकर दुनियां छोड़कर जा चुके है पर आशा भोंसले की आवाज अब भी जिंदा है। भगवान करे लता जैसी ऊंचाई पर आशा भी जाए और उनकी पहचान सदैव याद दिलाती रहे।बदलते समय में आशा जी की आवाज को वह मुकाम मिल जायेगा। अयोध्या में भगवान श्री राम की प्राण प्रतिष्ठा के साथ योगी सरकार ने राम पथ पर लता मंगेशकर चौक बनाकर और उसे बड़े सितार से सजाकर लता मंगेशकर के प्रति पीएम नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सुर साम्राज्ञी लता को सच्ची श्रद्धांजलि दी है और उन्हें अमरत्व प्रदान दिया है।
दोनों को लेकर कई किस्से प्रचलित हैं। उनकी तुलना होती है। उनकी प्रतिस्पर्धा को चटखारे लेकर सुनाया जाता है। जहां तक तुलना का सवाल है तो यह बात बेमानी है। दोनो के गीत अलग अलग किस्मों की रहीं।
गुलजार ने एक बार कहा था कि एक चांद है तो दूसरी सूरज। कैसे तुलना हो सकती है? गुलजार जी ने अपना यह तर्क बिलकुल सटीक दिया था।
आशा के प्रशंसक लता से आशा को आगे बताते हैं। उनका कहना है कि जितनी वैरायटी आशा के गायन में हैं, वह लता के गायन में नहीं मिलती। आशा ने बहुत संघर्ष किया है। उन्हें वो अवसर नहीं मिले हैं, जो लता को मिले हैं। तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद आशा ने यह मंजिल हासिल की है। आशा ने जितने प्रयोग किए हैं, लता ने भी नहीं किए हैं। खैर, ये प्रशंसकों की अंधभक्ति हैं। संगीत प्रेमी तो दोनों बहनों के शुक्रगुजार हैं कि उन्होंने अपनी मधुर आवाज से मंत्र-मुग्ध किया है।
दोनों बहनों का स्वभाव एक-दूसरे के विपरीत हैं। लता अंतर्मुखी हैं। कम बातें करती हैं। अपने आपको उजागर नहीं करतीं जबकि आशा बहिर्मुखी हैं। ‘लोग क्या कहेंगे’ पर विचार नहीं करतीं। प्रयोग करने में नहीं हिचकिचातीं। आशा और लता के संबंध खट्टे-मीठे रहे हैं।
बचपन में लता ने बड़ी बहन का फर्ज अच्छे से निभाया। जब आशा ने 16 वर्ष की उम्र में शादी कर ली, तो लता नाराज हो गईं। दोनों के बीच लंबे समय तक अबोला रहा। शादी असफल रहीं तब जाकर लता पिघलीं। हालांकि दोनों के बीच हल्की-सी दरार आ गई।
लता इस बात से खुश हैं कि आशा ने उनकी छाया से निकलकर अपनी पहचान बनाई। दोनों को लेकर कई किस्से बनाए गए जिस पर ये दो महान गायिकाएं ठहाका लगाती हैं। ‘साज’ नामक फिल्म को दोनों बहनों के रिश्ते पर आधारित बताया गया था जिसे आशा ने ‘बकवास’ करार दिया था।
दोनों बहनों ने कई गीत साथ गाए। 1951 में रिलीज हुई ‘दमन’ में पहली बार उन्होंने साथ गाना गाया था। इसके अलावा मन भावन के घर आए (चोरी-चोरी- 1956), सखी री सुन बोले पपीहा उस पार (मिस मैरी- 1957), ओ चांद जहां वो जाए (शारदा- 1957), मेरे मेहबूब में क्या नहीं (मेरे मेहबूब- 1963), ए काश! किसी दीवाने को (आए दिन बहार के- 1966), जब से लागी तोसे नजरिया (शिकार- 1968), मैं हसीना नाजनीना कोई मुझसा नहीं (बाजी- 1968), मैं चली- मैं चली (पड़ोसन- 1968), मन क्यूं बहका (उत्सव, 1984) में दोनों ने साथ गाया।
(साभार)