महागठबंधन चुनाव हारा है, लेकिन तेजस्‍वी ने मैदान जीत ली है, एम-वाई समीकरण कर गया काम

वीरेंद्र यादव, वरिष्‍ठ पत्रकार

लोकसभा का चुनाव परिणाम आ गया है। 12 सीटों के साथ जदयू के नीतीश कुमार ने केंद्रीय राजनीति में अपनी भूमिका बढ़ा ली है। अकेले दम पर बहुमत से काफी पीछे छूट गयी भाजपा के लिए नीतीश की बैसाखी काफी महत्‍वपूर्ण हो गयी है। लेकिन इस चुनाव ने केंद्रीय राजनीति में तेजस्‍वी यादव की भूमिका भी बढ़ा दी है।
निश्चित रूप से इस चुनाव में महागठबंधन ने 31 सीटों पर हार का सामना किया है। लेकिन 9 सीटों पर जीत कम बड़ी उपलब्धि नहीं है। महागठबंधन ने अपनी 1 सीट बरकरार रखी है, लेकिन 8 नयी सीटों पर जीत दर्ज की है। इसमें 2 सीट जदयू से छीनी है, 5 सीट भाजपा से और 1 सीट रालोमो से छीनी है। इस जीत में सबसे बड़ी भूमिका तेजस्‍वी यादव की रही है। एनडीए के चुनाव अभियान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार और गृहमंत्री अमित शाह जैसे नेताओं ने संभाल रखा था। प्रधानमंत्री ने खुद 20 चुनावी सभाओं को संबोधित किया। इसके बावजूद एनडीए को 9 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा। जबकि तेजस्‍वी यादव ने अकेले चुनाव को लीड किया और बड़ी जीत हासिल की । पिछले लोकसभा चुनाव की तुलना में इस बार मार्जिन को काफी कम कर दिया है। इसका मतलब है कि पूरे प्रदेश में तेजस्‍वी के नेतृत्‍व में राजद और महागठबंधन का आधार बढ़ा है, नयी जातियों में पैठ बढ़ी है, विश्‍वास पैदा हुआ है। इसका लाभ निश्चित रूप से विधान सभा चुनाव में महागठबंधन को मिलेगा। लोकसभा चुनाव में महागठबंधन के उम्‍मीदवार चुनाव हारे हैं, लेकिन तेजस्‍वी यादव ने मैदान जीत ली है। महागठबंधन के लिए यही सबसे बड़ी उपलब्धि है। महागठबंधन जिस एम-वाई समीकरण पर अपनी राजनैतिक रोटी सेंकती रही है , इस बार के चुनाव में भी इस समीकरण ने मजबूती से काम किया मगर फर्क यह रहा कि यह समीकरण महागठबंधन को जिताने के लिए नहीं बल्कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को हराने के लिए पुरी ताकत से वोट किया ।

इधर, एनडीए की राजनीति अं‍तरविरोधों में उलझ कर रह गयी है। जिस लोजपा के पास संगठन के नाम पर सिर्फ चिराग पासवान हैं, उसके सभी उम्‍मीदवार चुनाव जीत जाते हैं। जबकि सबसे बड़ी संगठनबाज पार्टी भाजपा के 17 में से 5 उम्‍मीदवार चुनाव हार जाते हैं। जदयू के 16 में से 4 उम्‍मीदवार चुनाव हार जाते हैं। माना यह भी जाता है कि भाजपा और जदयू के पास अपना आधार वोट भी है। दरअसल बिहार के संदर्भ में लोकसभा का चुनाव भाजपा के लिए खतरे की घंटे भी है। भाजपा के 5 उम्‍मीदवारों का हार जाना यह बताता है कि जदयू के कार्यकर्ताओं ने भाजपा के साथ धोखा किया है। प्रधानमंत्री ने औरंगाबाद, काराकाट, पाटलिपुत्र और बक्‍सर में सभाएं की थीं और सभी सीटों पर भाजपा हार गयी। यह इस बात का प्रमाण भी है कि शाहाबाद और मगध में प्रधानमंत्री भी बेअसर रहे।

2020 में विधान सभा चुनाव के बाद से भाजपा जदयू यानी नीतीश कुमार को ढो रही है। जबकि नीतीश समय के अनुरूप भाजपा के गर्दन और गोड़ पकड़ने में परहेज नहीं करते हैं। इसी राजनीति के आधार पर वे 20 वर्षों से सत्‍ता में कायम हैं। भाजपा को भरोसा ही नहीं है कि वह अपने दम पर कभी सत्‍ता में आ सकती है। इसलिए हर चुनाव के समय नीतीश कुमार को साथ लेने को बाध्‍य हो जाती है। लेकिन बिहार का जो राजनीतिक समीकरण बन गया है, उसमें भाजपा कार्यकर्ताओं का आत्‍मविश्‍वास टूटता जा रहा है। उनका संघर्ष गोईठा में घी सूखाने के समान है। यही हाल रहा तो नीतीश कुमार को ढोते-ढोते भाजपा खुद लाश बन जाएगी। इस खतरे से भाजपा के हर कार्यकर्ता को सचेत रहना चाहिए।

https://www.facebook.com/kumarbypatna

By admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *